Hansa Shukla

Drama

4.8  

Hansa Shukla

Drama

गूंगी

गूंगी

9 mins
1K


सरला को दोपहर के खाने पर आवाज़ देने के बाद मुझे याद आया की वह अब हमारे बीच नहींं रही। मेरे मन में जब मैं शादी होकर 50 साल पहले इस घर में आई थी वह साडी बातें फ्लैशबैक की तरह चलने लगी । धीरे-धीरे  मैं घर के सभी सदस्यों को जानने लगी थी। गूंगी (सरला) मेरी छोटी ननद थी। उसे पहली बार देखने पर लगा कि भगवान ने इससे ज्यादा अन्याय शायद ही किसी पर किया हो ऐसा इसलिये कि वह बेहद खुबसुरत और व्यवहार कुशल थी, जब तक पता न चले कि वह बोल नहींं पाती तो ऐसा लगता, काश यह सर्वगुण संपन्न लड़की मेरे घर की बहु बने। गोरा रंग, औसत ऊँचाई, छरहरा बदन, तराशी हुये नैन-नक्श, कुल मिलाकर इतनी खुबसुरत की जो एक बार देखे वो उसे पलट कर जरूर देखता। हर काम सलीकेे से करने की उसकी आदत, चाहे वो बरतन साफ करे, झाड़ू-पोछा या कपड़े धोना, बचे कपड़ों की कतरनों से भगवान का आसन या भगवान के कपड़े बनाना, पुराने बोरे से मटकी के कवर या उसमें रंगीन ऊन मिलाकर मेज कवर। अगहन के महीन में चावल आटे की ऐसी रंगोली कि अच्छे-अच्छे देखते रह जाये, कुल मिला के एक कुशल लड़की के सभी हुनर थे उसमें। 

ससुराल आये अभी ज्यादा दिन नहींं हुये थे इसलिये उसके बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहींं थी, पर उसके पास जाने का एक भी मौका मैं नहींं छोड़ती थी। उससे बात करने का बड़ा मन करता था, लेकिन उसके इशारे मुझे समझ में नहींं आते थे। वक्त के साथ धीरे-धीरे मैं उसकी भाभी कम सहेली ज्यादा बन गई और उसके इशारों की बातें जो घरवाले न समझे, उसे मैं समझने लगी, तब मुझे उसके जीवन का वह अध्याय पता चला जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहींं कर सकतीं थी। अपना नाम स्लेट पर उसने लिखा 'सरला'। घर में बहुत कम उसे उसके नाम से बोला जाता था सब उसे ' गूंगी' ही कहते थे। सरला महज चौदह वर्ष की थी तो मेरे जमींदार ससुर ने एक सामान्य घर में उसकी शादी बड़े धुमधाम से की उन्हे पता था समकक्ष घर में गूंगेपन के कारण उसकी शादी कर पाना बहुत मुश्किल है। उसका गूंगापन वह एक कमीं थी, जो उसके सारे खुबियों को छुपा देती थी। कम उम्र की शादी थी इसलिये गौना शादी के दो साल बाद होना तय हुआ चूंकि ननदोई पास के ही गाँव से थे, इसलिये कभी-कभी दोनो का मिलना हो जाता था। गौना होने के एक माह पूर्व ही ननदोई जी की मृत्यु उल्टी-दस्त में हो गई। सरला तो बावरी सी हो गई, उसके साथ जान देने को तैयार थी लेकिन घर वालों के प्यार और ज़िद ने उसे बचा लिया। सरला पहले बड़ी भाभी के यहाँ रही, भाभी के सारे काम में हाथ बटाती या कह सकते है की घर का सारा काम वहीं करती थी लेकिन जब बड़ी भाभी के अपने बच्चे जवान हुये तो उनका व्यवहार सरला के प्रति बदलने लगा और एक दिन ससुरजी से स्पष्ट बोली पिताजी अब सरला को छोटे भाई-बहनों के पास रहना चाहिये हमारे यहाँ साल में एक-दो माह के लिये रह सकती है, उससे ज्यादा नहींं।

समय का पहिया तो सारे गम भुला देता है, सरला भी अब सामान्य हो गई थी। पिताजी पुनः उसे गाॅव ले आये। कभी उसके ब्याह की बात सेाचते लेकिन बीस के दशक में विधवा-विवाह वो भी गूंगी लड़की का नामुमकिन सी बात थी। मंझले भाई-भाभी के साथ सरला गाॅव में रहने लगी। इस समय तक स्थितियां सामान्य थीं। सभी भाई-बहन सरला को एक-दो माह के लिये अपने घर ले जाते लेकिन ज्यादा समय गाॅव में ही रहती थी। मेरी बड़ी ननंद का बच्चा होने वाला था, सरला को बच्चे व घर के देखभाल के लिए ले गये। बड़ी ननद अस्पताल से घर आ गई, जुड़वा बच्चों को जन्म देने के कारण माँ और बच्चे दोनो कमजोर थे इसलिये ननदोईजी ने सरला को कुछ दिन और छोड़ने का आग्रह किया। सरला रूक तो गई लेकिन जिस बात का डर था वही हुआ, सरला और ननदोईजी के बीच सम्बन्ध बन गये, शायद सरला ने मना भी किया हो लेकिन वह ठहरी गूंगी चीख-चिल्ला भी नहींं सकती थी, बहन से यह बात इसलिये नहींं कही होगी के उसे बुरा न लगे। लेकिन स्वस्थ होने पर जब बहन अपने कमरे से निकलने लगी तो एक नारी होने के नाते उसने भाप लिया की सरला और उसके पति के बीच सब कुछ सामान्य नहींं है, पर कहे तो किसे? गूंगी बहन के चहरे में एक चमक सी थी, रिश्ते के बंधन के अलावा नारित्व का यह सुख उसे शायद पहली बार प्राप्त हुआ, बड़ी बहन अपने पति की कमजोरी से शायद पहले से ही वाकिफ थी। मन तो किया कि सरला का हाथ पकड़कर घर से निकाल दे या पति से कहे इतनी बड़ी दुनिया में क्या मेरी ही बहन मिली, एक बार उसकी बेबसी पर भी तरस नहीं आया। 

लेकिन बहन के लिये उसने इस कड़वी सच्चाई को भी स्वीकार कर लिया,उसे लग रहा था कि सरला की दूसरी शादी तो नहीं हो सकती, अगर उसे थोड़ा सुख मिल रहा है तो मुझे इस स्थिति से समझौता कर लेना चाहिये शायद त्याग के साथ एक कारण यह था कि तीन छोटे बच्चों की देख-रेख और घर का सारा काम सरला बहुत अच्छे से सम्भाल लेती थी। वक्त निकलते गया और शादी होकर मेरे आने के बाद ये सारी बाते मुझे लगभग एक साल बाद पता चली पर सरला से मेरा एक अलग लगाव था कारण मुझे नहींं पता लेकिन लगता दुनिया की सारी खुशियां मैं उसकी झोली में डाल दूँ। शादी के बाद चार साल में मेरी भी दो लड़कियां हुई मैं साल भर में पाँच-छः माह के लिये सरला को अपने पास ले आती थी। चालिस वर्ष की उम्र में भी वह कभी खुश होती तो उसके चहरे पर ख़ुशी के साथ वह मासुमियत दिखती जो चार साल के बच्चे को मनचाहा खिलौना मिलने पर मिलती है और जब वह नाराज होती तो बहुत चिल्लाती थी, अपनी अलग ही आवाज में, सब बहुत नाराज होते पर मुझे लगता शायद बेबसी के कारण उसका गुस्सा सामान्य से थोड़ा ज्यादा होता था और इसलिये उसकी नाराजगी पर मुझे कभी गुस्सा नहीं आया। पूरे घर में शायद मैं और मेरी दोनो लड़कियां थी जो गुस्सा होने पर सरला को मनाती थी परिवार के अन्य सदस्य जब सरला का नाम न लेकर उसे गूंगी कह कर बुलाते थे, ऐसे में सरला की भावना को समझ पाए सोचना भी व्यर्थ था। 

वक्त के साथ बच्चे बड़े हो गये, बड़ी ननद के तीनों लड़कों की शादी हो गई, मेरी बड़ी लड़की भी ससुराल चली गई। सरला अब ज्यादा समय हमारे ही साथ रहती। लड़कों की शादी के बाद बहन के घर जाना उसने खुद धीरे-धीरे बंद कर दिया। मेरी छोटी बेटी की भी शादी तय हो गई, वह अपनी सरला बुआ से छेड़-छाड़ भी करती थी और प्यार भी, सरला भी उसे बहुत प्यार करती थी। 

सरला अब पचपन पार हो गई थी, भाई-बहन के नाम पर अब सरला और मेरे पति ही रह गये थे। दूसरे भाभियों या बहनों के यहाँ सरला का जाना लगभग बंद ही हो गया, बहुयें तो नहींं चाहती थी कि सरला उनके यहाँ जाये। सरला का मन भाई-बहन के बच्चों के घर जाने और एक-दो रात रहने का करता था, बचपन से सबको खिलाई थी इसलिये सबसे उसे बहुत प्रेम था लेकिन वे झूठे मुंह भी सरला को ले जाने के लिये तैयार नहीं थे। सभी के व्यवहार से दुखी सरला समझ गई थी मेरे घर के अलावा कोई ऐसा घर नहींं जहाँ वह दो दिन भी वह रह सके। लेकिन वो भी तो इंसान थी चिड़िया भी दिन भर दाना-तिनका इकट्ठा कर घर लौटती है, वैसे ही सरला का भी मन करता कभी दो-चार दिन के लिये गाॅव वाले घर जाये, न जा पाने का गुबार मेरे पर निकलता। 

धीरे-धीरे उसने स्थिति से समझौता कर लिया। अचानक दिन ब दिन वह कमजोर होते जा रही थी, खाना भी कम हो रहा था। कभी-कभी दर्द से कराहती, पूछने पर कहती पेट में दर्द होता है, लेकिन किसी डाॅक्टर के पास जाने को तैयार नहींं होती। दोनो बेटियां होली के समय मायके आई तो बोली माँ बुआ के पास से बदबू आने लगा है छोटी ने तो डाॅक्टर के पास जाने के लिये उसे बहुत मनाया लेकिन वह तैयार ही नहीं हुई। दो-चार दिन रूककर दोनो अपने घर चली गई। फिर मैं, सरला और उसके भैय्या सरला कभी दर्द में कराहती, कभी चीखती चिल्लाती पर हम लोगों की कोई मदद नहींं लेती। धीरे-धीरे खाना उसने बिल्कुल बंद कर दिया, सिर्फ पानी और एकाध बार दूध पीती। इतनी कमजोर हो गई थी कि कमरे में ही सवेरे से नहा धोकर एक जग में पानी रखवा लेती, जिसे दिन भर पीती थी और रात में दूध। एक दिन सवेरे जब मैं उसके कमरे में पानी रखने गई तो इशारे से बोली छोटी को बुला लेना मुझे लगा ऐसे ही कह रही होगी, उस दिन दोनो बेटियों से फोन में मेरी बात नहीं हुई, अन्यथा दोनो रोज बुआ की तबियत जरूर पूछती थी। 

मुझे भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा था बीच-बीच में उसके कमरे में जाकर देखती थी। आज सरला न कराह रही थी और न चिल्ला रही थी, उसके चेहरे पर एक अलग शांति थी, जैसे किसी से कोई गिला-शिकवा न हो। मुझे प्रणाम कर अपने सारी गल्तियों के लिये माफी मांगी और तुलसीदल मुंह में डालने बोली, अपने भाई को प्रणाम कर उनसे माफी मांगी तथा गंगाजल की कुछ बुंदे हम उसके मुंह में डाल पाये थे कि उसका हाथ जो मेरे हाथ में था सहसा पकड़ ढ़ीला होकर गिर गया।  

सरला आज हम सबसे दूर चले गई थी, आई तबसे गूंगी सुनने की इतनी आदत हो गई थी कि आज पूरे घर में गूंगेपन का एहसास हो रहा था। लग रहा था जिसे सब गूंगी कहते थे, कितनी शांति से चली गई शायद कोई मुँह वाला होता तो कितना चिल्लाता। ऐसी तकलीफ को उसने कैसे सहन किया, आँखों से आंसू निकलते जा रहे थे। घर में ऐसी शांति थी कि लग रहा था हम सब गूंगे हो गये है, सारे क्रिया कर्म हो गये कुछ रिश्तेदारों ने तो घड़ियाली आंसू भी नहींं बहाये, उल्टा मुझे कह रहे थे, अच्छा है तुम ने भी उस गूंगी की सेवा से मुक्ति पायी , क्या पता डाॅक्टर के यहाँ जाती और कितने दिन जीती उसके तो न पति न बच्चे जिसके जाने का उसे गम हो, भगवान जो करता है अच्छे के लिये करता है, अच्छा है अपने जिद्द में रही पर कोई इलाज न करवाया, उससे तुम्हारा बोझ हलका हो गया। रिश्तों को बदलते देखकर लग रहा था कि गूंगी तो उन सबसे बहुत अच्छी थी। ये मुंह वालों की ऐसी चुभने वाली बातों को सुनकर लग रहा था कि काश भगवान इन्हे गूंगा कर दे या मुझे बहरा, मेरे घर में रह गई तो कभी न भर पाने वाली सरला (गूंगी) की कमी।  


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama