गुरु घंटाल
गुरु घंटाल
यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष और हर छात्र अपने करियर के प्रति गंभीर हो चुका था। इन छात्रों में से ९० प्रतिशत ऐसे छात्र भी थे जिन्हें करियर के साथ-साथ एक अदद जीवन साथी की तलाश भी थी। इस विषय में लड़कों की हालत बहुत ही खराब थी, पिछले चार साल से यूनिवर्सिटी में वही कन्याएं थी जिनकी गालियां और जूतियाँ खाकर उनके बारे में लड़कों के अरमान ठंडे हो चुके थे, बड़ी निराशा के साथ सबने अपनी-अपनी परास्नातक कक्षाओं के अंतिम वर्ष में प्रवेश लिया।
लव मैरिजेस के बारे में अपने परिवार के विचारो को मै अच्छी तरह जानता था, इसलिए लव मैरिज का ख्याल बहुत पहले छोड़ चुका था। यूनिवर्सिटी में किसी लड़की के साथ नाम ना जुड़ना बहुत अपमान की बात थी, अपनी इमेज की लुटिया डूबने से बचाने के लिए मै जरूरतमंद आशिकों को मुफ्त की सलाह दिया करता था। मेरी सलाह से जिन आशिकों की नैया पार हो गयी थी वो मुझे गुरु कहने लगे और जिनकी खोपड़ियां लड़कियों की जूतियो से पिट चुकी थी वो मुझे गुरु घंटाल कहकर भला बुरा कहा करते थे।
खैर लड़कों के भाग्य से एम कॉम के फ़ाइनल ईयर में दो लड़कियों ने एडमिशन लिया। पहले ही दिन लड़कों ने उनके नाम जान लिए, नाम थे उनके निशा और अदिति। दोनों लगभग पाँच फ़ीट सात इंच लंबी थी, अमीर परिवारों से थी। अदिति बहुत खूबसूरत थी, सरल स्वभाव की थी, इसके विपरीत निशा सामान्य चेहरे-मोहरे की और मगरूर भी थी। उसके कपडे उसके मोटे होते शरीर को छिपा नहीं पाते थे।
एक हफ्ते के भीतर यूनिवर्सिटी के जूनियर-सीनियर सभी आशिक़ अदिति के पीछे थे, लेकिन अदिति ने एक महीना गुजरने के बाद भी किसी को घास न डाली तो, आशिकों के होंसले पस्त होने लगे।
ऐसे ही पस्त हाल आशिकों का एक झुंड यूनिवर्सिटी की कैंटीन में बैठा सिर धुन रहा था।
मुझे आते देख उन आशिकों में से एक बोला— "क्या कहते हो गुरु अदिति के बारे में ?"
मैं कुछ बोलता इससे पहले ही उनमें से एक तेज आवाज में बोला— "अबे काहें का गुरु है ये गुरु घंटाल, इसे बाहर रखो इस मामले से।"
मैंने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा— "बेटा तुम सब गलत ट्रैक पर चल रहे हो, सब के सब उसके पीछे एक अनार सौ बीमार की तरह लगे हो और उसका दिमाग खराब कर रहे हो। अबे वो लड़की खूबसूरत है, उसका पहले से ही बॉय फ्रेंड होगा। तुम लोग उसे छोड़कर सामान्य चेहरे-मोहरे वाली निशा पर अपनी आशिक़ी ट्राई करो।"
मै अपनी मुफ्त की सलाह देकर मुफ्त की चाय पीकर कैंटीन से फूट लिया।
आने वाले एक सप्ताह में नजारा बदल गया था, यूनिवर्सिटी के सारे बदसूरत और स्मार्ट आशिक निशा के पीछे लग चुके थे और वो उन सबको बड़ी बेरुखी दिखा रही थी। जितना निशा की बेरुखी बढ़ती उतनी आशिकों की फौज उसकी और ज्यादा चापलूसी करती। सत्र का अंत आते-आते निशा ग्रुप के सबसे स्मार्ट लड़के प्रतीक को हाँ बोल चुकी थी और अदिति का नाम भी एक सामान्य चेहरे-मोहरे वाले पढ़ाई में अव्वल अपने ही एक चेले राहुल से जुड़ने लगा था।
सत्र खत्म और हम सब की राहें जुदा।
पिताजी और भाइयों ने आगे की पढाई की अनुमति न दी और मुझे हमारे पुश्तैनी कारोबार में लगा दिया। उनके आदेश पर मैं गुलफाम नगर की अपनी पारिवारिक मिठाई की दुकान संभालने लगा। दो साल बाद मुझे प्रतीक और राहुल की शादी के कार्ड मिले दोनों की शादियां एक सप्ताह के अंतराल पर दिल्ली में अलग स्थानों पर हो रही थी।
प्रतीक की शादी पहले थी, वो एम बी ए कर के एक अंतर्राष्ट्रीय बैंक में मैनेजर था। मुझे देखते ही निशा ने नफरत से मुँह घुमा लिया, मैंने कारण पूछा तो प्रतीक बोला— "नफरत करती है ये तुमसे कि तुमने मेरे जैसा लड़का उसके पीछे लगाया, अगर तुम ऐसा न करते तो उसे मुझ से भी बेहतर लड़का मिल सकता था।" मैं सिर पीटकर वापिस चला आया।
अगले सप्ताह राहुल की शादी में गया तो राहुल और अदिति दोनों खुश होकर मिले। दोनों मिलकर दिल्ली में एक कंसलटेंसी चला रहे थे।
अदिति खुश होकर बोली— "आपके जैसे भले आदमी की वजह से यूनिवर्सिटी के सारे लफंगे मेरे पीछे से हटे और राहुल जैसा अच्छा लड़का मिला।"
इससे पहले मैं कुछ बोलता राहुल मेरी और देखकर बोला— "भला आदमी और ये ! पूरा गुरु घंटाल है ये !"
मैंने खा जाने वाली निगाह से राहुल को देखा और मुस्करा कर दोनों से विदा ली।

