गुनहगार
गुनहगार
"मम्मी, मैं अब यहाँ नही रह सकती। मम्मीजी-पापाजी आये दिन ताने मारते हैं। कल ही कह रहे थे- "हमने तो अपनी बेटी की शादी में उसके ससुराल के रिश्तेदारों को सोने की चेन दी थी। एक तुम्हारे यहाँ ? अनुज ने जाने क्या देखा और अब तो अनुज भी उन लोगों का साथ देने लगे हैं।"
"बेटा, अब तुम्हें ही निभाना है। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।"
"नहीं मम्मी, मैं घर आ रही हूँ।"
"ऐसा गज़ब न कर बेटा। वो फिर भी तेरे पति का घर है। यहाँ तो भाई-भाभी है। मायके में लड़कियाँ दो चार दिन ही अच्छी लगती है।"
"माँ,फोन पर दीदी है क्या ? कह दिजीये उनसे।"
"हाँ बेटा, मैं उसे समझा रही हूँ।"
"लाइये आप फोन मुझे दे।"
"दीदी आप बेधड़क यहाँ आ जाइये। ये घर जितना आपके भाई का है, उतना ही आपका। जुल्म करने वाले से ज्यादा जुल्म सहने वाला गुनहगार होता है।"