Akanksha Gupta

Abstract

4.5  

Akanksha Gupta

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गुल्लक

गुल्लक

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शिरीष घर पहुंचा। जूते बाहर निकाल दिए। बाहर रखें डिब्बे में अपना फोन,घड़ी,पर्स और उंगली की अंगूठी निकाल कर रख दी। पास ही रखे हुए टब में पैर धोये और सीधे बाथरूम में नहाने घुस गया। 

जब वह नहाकर बाहर निकला तो उसकी पत्नी अंजली खाना तैयार कर रही थी। उसकी बड़ी बेटी अंशु अपना होमवर्क पूरा कर रही थी और उसके पास पानी का गिलास रखा था। वह अपना होमवर्क करने में व्यस्त थीं।

आज शिरीष की छोटी बेटी दीया वहां नही थी। आमतौर पर दीया शिरीष के बाथरूम से निकलते ही उसके पीछे पीछे घूमने लगती थी लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ।

जब उसने अंजली से इस बारे मे पूछा तो अंजली ने बताया कि दीया अपने कमरे में थी। जब शिरीष कमरे में गया तो देखा, दीया अपनी गुल्लक से पैसे निकाल कर गिन रही थी।

वन....टू....थ्री....फोर.....। शिरीष को यह देख कर हंसी आ गई। दीया बार बार पैसे गिनती और फिर गुल्लक मे डाल देती। कुछ देर तक शिरीष देखता रहा लेकिन जब उससे रहा नहीं गया तो वह दीया के पास बैठ गया।

“आप ये क्या कर रहे हो बेटा?” शिरीष ने प्यार से पूछा तो दीया ने उलटे ही एक सवाल दाग दिया- “ पापा ये कितने रूपीज है?”

“बेटा ये थाउजेंड रूपीज है। क्या हुआ बेटा?” शिरीष ने प्यार से पूछा।

“पापा आप तो बैंक में जॉब करते हो ना, तो मेरी गुल्लक के सारे रूपीज हमारे प्राइम मिनिस्टर की गुल्लक में डाल दो। फिर हमें बाहर खेलने को मिलेगा।” दीया ने भोलेपन से कहा।

उसकी बात सुनकर शिरीष की आंखे नम हो गई और उसने दीया को गले लगा लिया।


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