Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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vishwanath Aparna

Abstract

3.4  

vishwanath Aparna

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गर्व या पश्चाताप

गर्व या पश्चाताप

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इसे क्या कहें किस्मत, तकदीर या ऊपर वाले की इच्छा !

आज की परिस्थितियां आनंद पिक्चर की वो डायलॉग फिर से दोहरा गई “जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है जहाँपनाह, जिसे न आप बदल सकते हैं, न मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं, जिनकी डोर उस ऊपर वाले के हाथों में है। कब, कौन, कैसे उठेगा, यह कोई नहीं जानता।।”

हमेशा मैं ईश्वर को परम ही मानी । परमेश्वर के आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता।

तो फिर हमारी क्या बिसात की उनकी अनुमति के बिना हम प्राणवायु लेने की जुर्रत कर सकें।

मैंने अपनी किस्मत को लेकर या अन्य किसी भी तरह की परिस्थितियों में कभी भी उस परमेश्वर से कोई शिकवा शिकायत दर्ज नहीं किया।

आज हम जो कुछ भी है उसकी अनुमति से ही है।

सबकुछ लिखा जा चुका है तय है ।

जन्म से लेकर मृत्यु तक।

आपका हर पड़ाव पहले से ही लिखा जा चुका है।

आज मनुष्य का ईश्वर की सृष्टि में निमित्त मात्र होने का एहसास कराना भी कदाचित उस परमेश्वर की रचना का अंश है।

आज इस हाहाकार की परिस्थितियों में भी सभी यंत्रवत परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।

विकसित और विकासशील कहने वाले धरे के धरे रह गए।।ऐ तब हुआ जब मनुष्यों ने ईश्वर की अवहेलना करना प्रारंभ किया।

और अब आपकी आज्ञा कहने, नतमस्तक होने के सिवा अब मनुष्य के पास कुछ नहीं बचा।

फिर भी वह हम जैसा निर्दयी नही है यही कहूंगी।

ऐ हमारे ही कर्मों का प्रसाद मानके ग्रहण करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं।

शायद सबने कुछ न कुछ परिस्थितियों से सीख लिया है और सीख भी रहे हैं।

इन परिस्थितियों का शिकार मैं भी हूं।

मगर उपर वाले के यहां देर है अंधेर नहीं। हौसला भी वही दे रहा, माध्यम भी वही दे रहा।

ऐ भी लिखा जा चुका है।ऐ भी तय था।

इस सबक का भी कोई तो सबब होगा ? (लोगों के मुखौटे के पीछे का चेहरा दिखा)

परिस्थितियों को स्वीकार करने के सिवा और कोई मार्ग नहीं था।

कोई भी क्षण अपने नियंत्रण में नहीं है ऐ तो प्रमाणसिद्ध हो गया था।

ऐ और अटूट हो गई जब तीन दिन पहले खबर मिली कि कल्याणी के पिताश्री ने अंतिम सांस ली और वे अंत्येष्टि

के लिए गंतव्य तक पहुंचने में असमर्थ रहे।

तीनों बहनों ने विडियो कान्फ्रेसिंग के जरिए अंतिम बार पिता के दर्शन कर लिए।

कोई शिकायत नहीं है उन्हें ऊपर वाले से।

ऐ भी एक पहलू है जिंदगी का। कठिन परिस्थितियों में हम कैसे अपने आप को नियंत्रित कर सकें।

बिल्कुल साकारात्मकता थी कल्याणी के बातों में।

बस एक ही बात उसने कहा हां पिन्नी( मौसी) हमने विकास कर ली।दंभ ही तो था मनुष्य जाति को।

अब इसे क्या कहें।

मनुष्य अपने विकसित होने पर गर्व करे या विकसित होने के लिए जिन प्रतिबंधित मार्गों को चुन कर विकसित हुए उस पर पश्चाताप करें ?

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।


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