गरीब की दिवाली
गरीब की दिवाली
दिवाली की सुबह अनीता अपने जमा किए हुए पैसों को छिपा कर गिन रही थी ।
उस के पास चौदह सौ रूपये जमा हो चुके थे । अपने पास इतने रूपये देखकर उस की आँखें चमक उठी ।
उस के सामने रंग बिरंगे अनार, इंद्रधनुषी फुलझड़ियां और आसमान में बिखरती हवाइयां झिलमिलाने लगी ।
तभी साथ वाले कमरे में उसे छोटू का जिद भरा स्वर सुनाई पड़ा । वह मां से कह रहा था, "मुझे पूरे पांच सौ रुपए चाहिए । दो सौ रुपए का तो एक ही पैकेट आता है । "
मां कह रही थी, दोपहर तक तेरे पापा आ जाएंगे । वह बाजार से बहुत सी आतिशबाजी लेते आएंगे ।
नहीं, मैं अपने लिए खुद खरीदूंगा, छोटू अड़ गया था ।
माँ ने हार कर उसे पांच सौ रुपए दे दिए । अनीता जब रसोई में गई तो माँ ने उसे के हाथ में दो सौ रुपए पकड़ा कर कहा, यह ले अनीता, तू भी अपने लिए कुछ खरीद लेना । मेरे पास यही दो सौ रुपए बचे थे ।
अनीता पहले तो यह सोचने लगी कि मेरे हिस्से में दो सौ रुपए ही आए, जबकि छोटू को पांच सौ रुपए मिल गए, लेकिन फिर उस ने सोचा, चलो, वह मुझ से छोटा है ।
: rgb(255, 255, 255);">जिद कर के पांच सौ रुपए ले लिए, फिर भी मेरे पास अब पूरे सोलह सौ रुपए हो गए । माँ के पास तो रुपए समाप्त हो गए हैं, पाप आएंगे तब शायद कुछ रुपए मिल जाएं । तभी मोबाइल बज उठा । मोबाइल पर बात करते हुए उन के चेहरे पर परेशानी झलक रही थी । क्या बात है माँ ? अनीता ने पूछा । माँ ने जवाब दिया तुम्हारे पापा का फोन था, वह किसी कारण वश आज नहीं आएंगे । अनीता का मन भी इस खबर से मुरझा गया । तब तो दिवाली का मजा नहीं आएगा, उसने सोचा, माँ के पास पैसे भी नहीं बचे हैं, मिठाई और दीये कहाँ से आएंगे ? छोटू आँगन में था
वह हवाई उड़ाने के लिए खाली बोतल जमीन में गाड़ रहा था । अनीता ने उस के पास जाकर सब कुछ बताया और पूछा, अब क्या करें ?
अनीता ने जल्दी से कहा, माँ अभी रास्ते में होंगी । वह रुपए उधार लेने गई हैं । छोटू अभी फैसला कर ही रहा था कि उसे सामने वाले घर से अपने सहपाठी किशन की आवाज सुनाई दी, " छोटू, चलो, हम पटाखे लेने जा रहे हैं । रुपए लेकर आ जाओ । छोटू का हाथ जेब में पड़े पांच सौ के नोट तक चला गया, जिससे वह सिर्फ अपने लिए आतिशबाजी खरीदना चाहता था । उस ने सामने खड़े किशन को देखा, फिर बहन के बढ़े हुए हाथ को देखकर अनायास ही अपना हाथ बहन को पकड़ा दिया । दोनों उस रास्ते पर चले दिए, जिस पर अभी- अभी माँ गई थी।
इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि "छोटी-छोटी बचत ही समय पर बहुत काम आती है । "