पिता
पिता
पिता घर की शान है।
पिता बिन वह वीराना मकान है।
चहकता है घर पिता की चहलकदमी से।
बच्चों के भविष्य की बुनियाद है पिता।
बिन माली के बगिया सूनी लगती है।
एक पिता से तो हर फरियाद पूरी होती है।
बचपन की मुस्कुराहट है पिता।
संतानों के सपनों का आधार है पिता।
अपना सब कुछ वार देता है पिता
संतानों का सपना पूरा करने।
नींव मजबूत हो तो मकान मजबूत होता है।
पिता का हाथ हो सिर पर तो हर दिन
खुशियों का बाजार लगा होता है।
पिता ख्वाहिशों का बैंक बैलेंस है
जो संवार देते बच्चों का जीवन।
पिता बिना बच्चों की मुस्कान चली जाती है।
समय से पहले बचपन भूल जिम्मेदारिया
ं घेर लेती है।
पिता से ही खुशियां महकती घर आंगन में।
पिता बच्चों की आस है पूरी जो कर दे वह प्यास है।
कोरे पन्ने में लिख दे किस्मत वह सिर्फ़
पिता ही कर सकता है।
कोरोने की महामारी में कितने घर बिखरते देखा।
अपने ही पिता और भाई को खुद से दूर जाते देखा।
नन्हे नन्हे बच्चों के खिलते चेहरे पर उदासी देखी।
पिता पर हक होता है और किसी पर वह बात कहां।
जो मचलते थे हर चीजों के लिए आज खामोश है जुबा।
शिकायत भरी नजर पिता को ढूंढती है।
पिता संतानों के लिए सर्वोपरि है।
पिता बगिया का माली होता है।
बिना माली के बगिया कहां हरी-भरी रहती।
पिता जैसा कोई नहीं इस जहां में।