एक माँ का संघर्ष कहानी
एक माँ का संघर्ष कहानी
एक गांव में एक छोटा सा परिवार रहता था। उसमें माँ राधा एक स्कूल में टीचर थी। और पिता जी एक डा. थे। उनके 2 बेटी और 1 बेटा साथ रहते थे। सभी अच्छे पढ़े लिखे और उतम शिक्षा प्राप्त की और एक बेटी और बेटे की शादी हो जाती है, सभी कुछ अच्छे से चल ही रहा था कि एक दिन अचानक समय ने करवट ली। और दो बच्चों की शादी के बाद दोनों ही अपने -अपने पद से रिटायर हो गए थे। रिटायर के बाद उनकी एक बेटी बीन शादी के रह गयी थी। तो सभी ने सोचा इसकी पढाई खत्म हो जाती है ।तो इसकी भी कर देगे। परन्तु ईश्वर को मंजूर तो कुछ और ही था ।
जैसे ही ज्योति की पढाई खत्म हुई तो उसके माँ -पा ने रिश्ता पक्का कर दिया और ज्योति को लडके वाले देखने आने वाले ही थे कि अचानक कुछ ऐसा हुआ सब कुछ बिखरा -बिखरा सा हो गया।
ज्योति का असिडेन्ट हो गया और उसे अस्पताल ले जाया गया तो डा. बोले की एक साइड बिल्कुल बेकार हो चुका है। तुरन्त आपरेशन करना होगा ये सुनते ही सबके होश उड गए। और ज्योति के पापा जी इस बात को नहीं सहन कर पाये तो उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। माँ अकेली क्या करती फिर भी हार नहीं मानी और हिम्मत करके दोनों को देखा और दोनो का आपरेशन कराया गया ऐसे समय में वो एक दम अकेली हो चुकी थी।
जिस बेटी की शादी हो गई थी वो बहुत दूर थी तो आने में 3/4दिन लगते थे, तो वो भी नहीं आ पाई थी,उनका साथ देने और बहू ने जब ये देखा तो मोड़ के अलग हो गई और बोली मेरे से नहीं होता ये बिमार लोगों का काम करना और बेटे ने भी अपनी पत्नी का साथ दिया माँ को अकेला छोड़ दिया। माँ फिर भी अपनी बेटी और अपने पति की सेवा में लगी रही दिन देखा ना रात हर समय दोनों के लिए खड़ी थी। वो तो ईश्वर की कृपा थी की उनकी पेंशन आने लगी जिस से माँ घर और दोनो के इलाज का खर्चा चला रही थी। माँ का प्यार और प्रेम तब मेरे को समझ आए और ये भी पता चला कि रिश्ते कैसे होते हैं।
माँ को ना अपने खाने का होश ना ही सोने का जैसे कि वो सब कुछ भूल गई हो। माँ की आँखों में दूर -दूर तक नीद नहीं होती थी और ना ही उनके साथ कोई साथ देने वाला और पूछने वाला था कि आपने खाना खाया या नहीं या ये बोलने
वाले की आप थोड़ा आराम कर लो।
ऐसे ही दिन बीत रहे थे काफी संघर्ष के बाद पापा जी थोड़े समय बाद ठीक हूए और माँ की मेहनत रंग लाई।
फिर पापा जी बोले तुम ऐसे कब तक रहोगी पहले थोड़ा आराम करो ज्योति भी ठीक हो जाएगी। माँ पापा जी की ये बात सुन के पहले तो थोड़ी सी मायूस हुई फिर पापा जी को हौसला बुलंद कराते हुए बोली हाँ जी जैसा ईश्वर की मर्जी फिर पापा जी ने माँ को खाना खाने के साथ बैठने को बोला तो दोनों ने कुछ खाया। परन्तु ज्योति की हालत में कोई ज्यादा सुधार नही था।
डा. ने भी आपरेशन के बाद दोनों को घर भेज दिया था। माँ ने पापा जी को नहीं बताया की ज्योति अभी भी ठीक नहीं और अपने आप ही उसे देखती थी। माँ का आँचल में और उनके प्यार के साथ हिम्मत और हौसला से पापा जी काफी ठीक हो गए थे।
ज्योति भी होश में आ गई थी तो मांँ को थोड़ी राहत ही मिली थी की फिर से एक दम ऐसी घटना घटी की मां के होश उड गए तब माँ ने अपनी बेटी को बताया तो वो बोली माँ मै बच्चों के पेपर बाद आती हूँ ऐसे में वो चुप थी उन्हें कुछ समझ नहीं आया क्या करे, माँ फिर ईश्वर के स्मरण करते हुए हिम्मत की और ज्योति को फिर अस्पताल में भर्ती किया गया तो डा. ने कहा कि अब ये कुछ नहीं बोल और चल सकती है। आप परेशान ना हो धीरे -धीरे ही ठीक होगी। डा. हौसला बुलंद कराते थे पर ज्योति की हालत में कोई सुधार नही था।
फिर माँ ने पापा जी को सब बताया और बोली अब ज्योति हमारे साथ ऐसे ही रहेगी डा. ने बोला हैं। ऐसे ही सिलसिले चलते रहे माँ घर और बहार और ज्योति को देखती । अब दोनों ने अपने आप में एक हिम्मत और हौसला बुलंद कराते हुए बोले कोई नहीं जब तक है जैसी भी है, है तो हमारे साथ ना और फिर क्या था दोनों एक दूसरे का सहारा बनकर अपनी बेटी को देखते और एक बेटी को कमजोर ना पड़े उस से कुछ नहीं बोल कर उसकी खुशी के लिए कभी -कभी मुस्करा कर दिखा देते।
माँ के इतने संघर्ष के बाद पापा जी और ज्योति तीनों एक साथ मिलकर रहने लगे।
एक माँ जितना संघर्ष कर सकती है इतना कोई नहीं कर सकता हैं।
ऐसी हर माँ को बारम्बार नमन मेरा, माँ तो माँ होती है ना।