ग़रीब की बेबसी
ग़रीब की बेबसी
लीला अपने दो बहनों के साथ अपने माँ और बाबा के साथ रहती थी। दूसरों के खेतों में काम करते थे वहाँ से मज़दूरी में धान मिलता था चार लोगों के परिवार को पूरा नहीं होता था। बाबा ने गाँव के सूद देने वाले एक मुनीम से पैसे उधार ले रखा था।
लीला की माँ बीमार हो गई तो इलाज के लिए पैसे नहीं थे, लीला को जमींदार के पास पैसे लेने भेजा तो वो अपनी हवस का शिकार बनाने कोशिश की, तो लीला ने जमींदार को हंसिया से घायल करके वो भाग आती है। घर आकर बहुत रोई, बाबा मुझे अब कभी उस दरिंदे के पास मत भेजना।
लीला की बड़ी बहन गीता ने उसे बहुत प्यार से चुप कराया। समझाया, लीला ये दुनिया ऐसे ही ज़ालिम है। यहाँ हम ग़रीबों की इज़्ज़त को तार-तार कर देतें हैं, लीला उस दिन रोते-रोते सो गई।
नींद खुलती है तो लीला देखती है उसकी माँ अंतिम सांसे ले रही हैं और गीता और बाबा उसके पास बैठे रो रहे हैं। लीला दौड़कर, माँ-माँ चींख कर माँ को झंझोड़ कर जगाने की कोशिश करती है।
आखिर माँ परलोक चली जाती है, अब लीला, गीता और छोटी। वो तो इतनी छोटी थी के मरना क्या होता है ये भी नहीं जानती थी। वो अपनी मस्ती खेल रही थी।
बाबा अब माँ के क्रियाक्रम के लिए भी तो पैसे चाहिए थे। बेचारा अपना सूखा कंकाल सा शरीर को घसीटते हुए मुनिम के पास जाता है। ‘महाराज मुझे कुछ पैसे ब्याज पर दे दो, धान की फसल की मजदूरी जैसे ही मिलेगी मैं आपके पास ले आऊंगा पैसा।’
पर मुनिम बहुत लालची था वो गाँव में गरीब लोगों को ब्याज पर पैसा तो देता था मगर उनका ख़ून तक चूस लेता था। कभी उनकी ज़मीन हड़प लेता था। कभी ग़रीब की बेटियों को अपने यहाँ दिहाड़ी मज़दूर के नाम पर बंधक बनाकर रख लेता था, और उन बच्चियों को शहर में कोठों पर बेच देता था, वहाँ से मोटी रकम ले लेता था।
किशन मुनीम से कहता है मेरी पत्नी की लाश घर में पड़ी है मुझे जमींदार ने भी पैसा नहीं दिया महाराज आप मना मत करना। मुनीम बहुत घाघ था वो उसकी बड़ी बेटी का सौदा करता है, तू अपनी गीता को मेरे यहाँ दिहाड़ी मज़दूरी के लिए भेज देगा।
किशन मन ही मन उस का घाघपन समझ रहा था। कैसा कमीना है कि इस समय भी मोलतोल कर रहा है, बेचारा किशन मरता क्या नहीं करता उसने हां भर दी। मुनीम ने अपनी सबसे खास औरत कमला ऐसे सारे सौदे वही करती थी। मालिक का इशारा मिलते ही झट से पैसे निकाल कर देती है।
भारी मन से किशन घर आता है जैसे-तैसे कुछ दो-चार लोग मिलकर लीला की माँ का अंतिमसंस्कार कर देतें हैं। अब वो घर में अपनी मासूम बेटियों को देखकर फूट-फूट कर रो पड़ता है।
किशन सोचता है,
गीता 12 साल की है ईश्वर ग़रीबी दे तो बेटियां न दे, क्यों ग़रीब की बेटियों पर गीद्ध दृष्टि रखतें है, मुनीम, जमींदार या हो गाँव के लोफ़र लड़के इधर-उधर ताकझांक करते रहते हैं, अब तो माँ भी नहीं रही के बच्चियों की देखभाल कर सके।
कुछ दिनों बाद कमला मुनीम के यहाँ वाली औरत किशन के झोपड़ी में आ धमकती है। किशन और तीनों बेटियां शाम को धान के खेत से मज़दूरी करके लौटते हैं। कमला कहती है, मुनीम ने तेरी बेटी गीता को बुलाया है। लीला छोटी थी पर वो बहुत सयानी थी। उस औरत कमला को भी जानती थी, फौरन उठ खड़ी हुई, गीता जीजी कहीं नहीं जा रही है। कमला के साथ एक दो लठैत भी थे। किशन बेबस हाथ जोड़कर कमला से कहता है, ‘मुनीम जी से थोड़ी मौहलत दे दे मै उनका पैसा सूद समेत लोटा दूंगा। मेरी बच्ची छोटी है।’ मगर ज़ालिमों के सामने फटी जेब वालों की कहाँ चलती है।