Dr Lata Agrawal

Abstract

2.8  

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गरीब का लंच बॉक्स

गरीब का लंच बॉक्स

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“क्या हो रहा है ये सब हाँ ! चलो सब अपनी - अपनी जगह पर बैठो।”

टीचर ने क्लास में पहुँचते ही देखा बड़ा शोर मचा हुआ है। सभी बच्चे अपने स्थान से अलग खड़े हैं। मीरा खड़ी रो रही है। सभी बच्चे उसे चोर- चोर कहकर चिढ़ा रहे हैं।

“ सर ! मीरा ने निक्कू का लंच बॉक्स चुरा लिया।:

“क्यों मीरा ?”

“नहीं सर ! जे मेरा है , मैं सच्ची के रई।” मीरा अपने हाथ में लंच बॉक्स को कस कर पकड़े थी।

“दिखाना अपना लंच बॉक्स।”

टीचर ने देखा इतना मंहगा लंच बॉक्स ...ये तो तुम्हारा नहीं हो सकता। 

“मेरा है सर मेरे पप्पा लाये हैं।

“तुम लोग.. , ठीक से खाने को तो हैं नहीं , इतना अच्छा लंच बॉक्स अफोर्ड नहीं कर सकती ...झूठ बोलती हो। सरकारी योजना के तहत इतने अच्छे प्रायवेट स्कूल में प्रवेश मिल गया वरना तुम लोग तो ...। “

“सर! मेरी बात मानो, जे मेरा ही डिब्बा है, मैं झूंठ नई बोल रई।”

“अगर सच कह रही हो तो बताओ क्या है तुम्हारे लंच बॉक्स में ?”

मीरा खोमोश हो गई।

“बताओ जब तुम्हारा लंच बॉक्स है तो तुम्हें पता होना चाहिए क्या है उसमें ? जैसे निक्कू बतायेगा क्या है उसके लंच बॉक्स में ?”

“हुंम्म ... ! मम्मी से सुबह चीज रोल रखने को कहा था वही होगा।” 

निक्कू अकड़ता हुआ बोला।

“अब तू बता ,....(मीरा खामोश थी) ये ऐसे नहीं बोलेगी, ला लंच बॉक्स खोलकर देखते हैं, अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा।”

“नहीं, मैं अपना डिब्बा खोलने नहीं दूंगी।”

“मुझे मना करती है ...तब तो पक्का तू ही चोर है, कहते हुए टीचर ने मीरा को जोर से थप्पड़ जड़ दिया थप्पड़ की झनझनाहट से लंच बॉक्स मीरा के हाथ से छूटकर जमीन पर जा गिरा। लंच बॉक्स खुलकर जमीन पर फ़ैल गया था उसमें से बासी रोटी के टुकड़े जमीन पर मीरा की बेगुनाही का सुबूत दे रहे थे।

क्लास के बाहर निक्कू का ड्रायवर खड़ा था ,

“सर जी ! यह निक्कू बाबा का लंच बॉक्स , घर पर ही भूल आये थे, देने आया हूँ।”


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