पुण्य फल
पुण्य फल
छोटू पटेल और छिदराम की पक्की दोस्ती गांव में कृष्ण, सुदामा की दोस्ती के नाम से मशहूर है। माँ नर्मदा के प्रति दोनों की अटूट श्रध्दा है, गाँव से जब नर्मदा परिक्रमा के लिए तीर्थ यात्रियों की बस जाने को हुई तो छोटू पटेल ने बहुत कहा,
“छिदराम ! चल भाया म्ह दूँ थारा बित्त्ल का पिसा ...माई की परिक्रमा हो जायेगी, काई किस्मत का थोड़ा घना फेर होयगा तो माई की किरपा से मिट जाएगा।”
“भाया मेरे, इ बेर तो फसल धोखा दे गई , नी जा सकूं, ... पण माई की किरपा हुई तो अगली बेर हम दोई भायला संग चालंगा।” उसूल के पक्के छिदराम को मित्र की कृपा लेकर तीर्थ करना गंवारा न था। आज जब महीने भर की अपनी यात्रा पूरी कर छोटू पटेल लौटा तो अपने मित्र को गले लगा बोला,
“भाया थारी घणी याद की ही ...तू भी चल देतो तो थारी भी यात्रा पूरी हो जाती , माई की किरपा बरसती, थारा संकट टल जाता।”
“भाई परिक्रमा तो मैं कर ली।” छिदराम ख़ुशी और आत्मविश्वास से बोला।
“तू परिक्रमा कर ली ...पण कदी भाया ...! तू तो गयो नी हमारे संग।”
“मेरो भाया, मैं थारा संगे नी गयो तो काई मैं तो यहीं रे के नी रोज माई रा घाट जातो ,उटे पड़ी पन्नी रा बीन के भेली करिन वहां से हटाके कचरा पेटी म डालतो जिसे वा पन्नी माई में नी गिरे और माई को स्रोत बराबर बहतो रे।” इसे रोज माई के दरसन भी पालिए और माई की सेवा भी कर ली। सुनू हूँ आज पन्नी के कारण माई में खूब प्रदुसन फ़ैल रियो है तो सोच्यों मैं माई की येई सेवा कर लूँ।”
“सच्ची मेरे भाया थारो पुण्य तो परिक्रमा से भी बडो है ,कहावत है नी जनम देवे वारे से जिनगी देवे वारो बडो होय। नर्मदा माई हम सबके जिनगी देवे वारी है और तू वा माई की जान बचाई है।”
