गोल्ड मैडल- दंगल
गोल्ड मैडल- दंगल
"लड़कियों तुम अब अकादमी में ट्रेनिंग के लिए आ चुकी हो, अब तुम्हारा काम है तुमने अब तक जो सीखा है उसे भूल जाओ और जो मैं सिखाऊं उस पर ध्यान दो।" कोच ने रेसलिंग की ट्रेनिंग के लिए आई लड़कियों की और देखते हुए कहा।
गीता के लिए ये एक बिलकुल नई बात थी, उसके पिता महावीर फोगाट स्वयं कुश्ती के नेशनल चैम्पियन थे उनके सिखाए से वो नेशनल चैम्पियन बनकर स्पोर्ट्स अकादमी तक आ पहुँची थी, अब ये कोच सर कुछ अलग ही बात कर रहे है, अब तक का सीखा सब बेकार था, ये बात समझ से बाहर थी।
"क्या हुआ गीता, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम मेरी बातें समझ नहीं रही हो या समझना नहीं चाहती हो?" कोच थोड़ा नाराज होते हुए बोले।
"नहीं सर ऐसा कुछ नहीं है........." गीता तेजी से बोली।
"ऐसा कुछ नहीं है तो बहुत अच्छा है, अगर दिमाग में कुछ और ही कहानी चल रही है तो उसे तुम दो दिन में भूल जाओगी, चलो अब वार्म अप पर लग जाओ।" कोच उसे हाथ से इशारा करते हुए बोला।
शाम को एक पी सी ओ से फोन कर गीता ने सारी बात अपने पिता महावीर फोगाट को बताई तो कुछ देर चुप रहने के बाद महावीर फोगाट बोले, "सुन गीता कोच की बात सही है, वो तेरे अंदर रेसलिंग का जो टेलेंट है उसे भूलने के लिए नहीं कह रहे बल्कि तुझे उस टेलेंट को साथ लेकर कुछ नई बाते सीखने के लिए कह रहे है। जो वो सिखाते है उसे सीख और जो अब तक सीखा है उसे और बेहतर कर। गुरु की बात पर भरोसा करना जरूरी है, उसके सिखाए रेसलर इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में गोल्ड भी जीतेंगे और कुछ सिर्फ अकादमी में मजा-मस्ती करके वापिस घर भी आ जाएंगे, अब तू खुद डिसाइड कर कि आज तक तूने जो सीखा है उसे अकादमी में और बेहतर करेगी या खाली हाथ वापिस घर आओगी।"
"समझ गई, अब मन में कोई शक नहीं बचा, कोच की बात सुनूँगी और एक गोल्ड तो देश के लिए जीतूंगी ही, अब फोन रखती हूँ पापा।" गीता ने फोन रखते हुए कहा।