गन्तव्य
गन्तव्य
गोरे रंग पर नीले रंग की साड़ी निशा पर खूब फब रही थी तिसपर लम्बे घने अधखुले केश उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे! कान और गले में पहने हुए हीरे के टाॅप्स और लाकेट मेघ के मध्य बिजली की तरह चमक रहे थे! लम्बी, पतली छरहरी निशा को देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह चालीस पार की औरत है ! दिल्ली से लखनऊ जाने वाली फ्लाइट पर अपना सिक्योरिटी चेकप करा रही थी उतने ही देर में कितनी ही बार उसके पति रवि का काॅल आया फिर निशा सिक्योरिटी चेकप के बाद अपने पति को आस्वस्त कर दी कि आप घर जा सकते हैं सब ठीक है! निशा एयर बस में बैठी थी तो कितनी ही नज़रें उसे निहार रही थी लेकिन वो अपनेआप में मगन बस से उतरकर फ्लाइट के गेट के सामने से जाती हुई सीढ़ियों के नीचे खड़े कर्मचारी को अपना बोर्डिंग कार्ड दिखाकर सीधे अपनी सीट पर जा बैठी और रवि को काॅल करके मोबाइल ऑफ कर एक नाॅवेल निकालकर पढ़ने लगी !
अभी पुस्तक की तीसरी लाइन तक ही पहुंची थी कि बगल की सीट से किसी चिरपरिचित आवाज़ ने उसकी तंद्रा तोड़ दी !
अरे निशा तुम..?
निशा आवाज़ तो पहचान गई फिर भी अपनी बगल वाले सीट के व्यक्ति को देखते हुए कुछ आश्चर्य से अरे अवि तुम हो..?
अवि - कैसी हो निशा ..?
निशा - ठीक हूँ और तुम..?
अवि - बीस वर्षों के बाद तुम्हें देख रहा हूँ लेकिन वैसी की वैसी ही हो.... बिल्कुल भी नहीं बदली तुम..... हाँ बस बदल गया है......
कहते कहते रुक गया अभिषेक!
निशा - तुम भी नहीं बदले अवि
अवि - चल झूठी
निशा - हा हा हा हा हा हा हा.. सच्ची...
अवि - भूल गई थी न मुझे बिल्कुल..?
निशा - कुछ बातें अनकही ही रहने दो!
अवि - मैं समझ सकता हूँ और अपने बारे में बताओ..?
निशा मोवाइल आॅन करके अपने पति और बच्चों की तस्वीरें अवि को दिखाती है!
अवि - अरे वाह तुम्हारा कितना सुन्दर परिवार है!
निशा - अब तुम बताओ अपने बारे में..
अवि - निशा मैं तुम्हारे इतना लकी नहीं हूँ!
निशा - कुछ परेशान होती हुई क्या हुआ अवि..?
तब तक फ्लाइट में अनाउंस होने लगा और एयर होस्टेस इशारों से कभी दोनों हाथ आगे करके तो कभी आड़े - तिरछे , ऊपर - नीचे करके समझा रही है , फ्लाइट उड़ान भरने की तैयारी में थी और निशा अवि की बाते सुन कर तरह-तरह की काल्पनिक शंशय से परेशान होकर अतीत में चली गई......
कितना प्यार करता था अवि मुझसे और मैं उससे, कितनी कसमें खाईं थीं हमने साथ जीने और मरने की, एक पल भी देखे बिना चैन नहीं मिलता था हमें उसके बिना बीस पच्चीस वर्ष काटना....... उफ..... कितना रोई थी मैं जब अवि मेडिकल की पढ़ाई के लिए बाहर गया था! फिर भी एक आशा थी कि अवि सिर्फ मेरा है और पढाई पूरी करने के बाद तो हम दोनों की शादी हो ही जायेगी! लेकिन अवि की मम्मी को तो किसी अमीर घराने की डाॅक्टर बहू चाहिए थी इसलिए मुझसे अपने लड़के को छोड़ने की गुहार लगाने लगीं थीं! मैं तब भी नहीं मानी तो उन्होंने मुझे और मेरे परिवार को भला बुरा कहा जो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और मैं अपनी मम्मी पापा के पसंद से शादी कर ली!
तभी अनाउंस हुआ कि अब आप अपनी कुर्सी की पेटी खोल सकते हैं और निशा अतीत से वापस वर्तमान में आ गई और अभिषेक की तरफ़ मुखातिब होकर बोली... अब सुनाओ अवि
अवि - निशा मैं और अनन्या पति पत्नी तो हैं लेकिन सिर्फ समाज में दिखावे के लिए इस रिश्ते को ढो रहे हैं ! मेरी बीवी को अपने परिवार और बच्चों से अधिक अपने कैरियर , अपने आॅफिस और अपने बाॅस की फिक्र रहती है मैं बहुत ही मानसिक परेशानी से जूझ रहा हूँ निशा , तलाक भी नहीं ले पा रहा हूँ कि हमारी गल्तियों की सजा निर्दोष बच्चों को झेलनी पड़ेगी!
तुम जब से मेरी जिंदगी से क्या गई मेरी जिंदगी बेरंग हो गयी.!
हम क्यों नहीं अपने मन माफिक जिंदगी जी पाते निशा ..?
निशा - इसी का नाम जिंदगी है!
अपने रिश्ते को ठीक कर लो अवि तुममें काबिलियत है !
अवि - तुम नहीं समझोगी!
निशा - मुझसे अधिक कौन समझेगा अवि, मैं भी एक औरत हूँ और औरतों की मानः स्थिति को अच्छी तरह से समझती हूँ ! स्त्रियाँ बिल्कुल पानी की तरह होती हैं! वे पुरुषों की प्रतिस्पर्धा में भले ही ही बर्फ की तरह ठोस बन जायें पर प्रेम के ताप से पिघल ही पड़ती हैं , तुम कोशिश करो न ठीक करने की मुझे विश्वास है जरूर ठीक हो जायेगा! वैदिक मंत्र और सिंदूर इतने भी कमजोर नहीं होते!
अवि - सोच रहा है कि क्या वाकई निशा के रिश्ते को वैदिक मंत्र और उसके माँग में भरे सिंदूर मजबूती प्रदान कर रहे हैं, क्या वाकई निशा अपने रिश्ते से खुश है या फिर.....
अवि - जो हो नहीं सकता है मैंने उस बारे में सोचना ही छोड़ दिया है निशा !
निशा - तुम इतनी जल्दी हार कैसे मान सकते हो..?
अवि - तुम्हें न पाना मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी हार थी निशा उसके बाद तो जीतने की लालसा ही नहीं बची! फिर बात बदलते हुए खैर छोड़ो मैंने अपनी सुनाकर तुम्हें भी परेशान कर दिया तुम मस्त रहो!
निशा - मन ही मन में सोच रही है अब मैं कैसे मस्त रह सकती हूँ अवि.... लेकिन अवि को ढाढस बंधाती हुई बोली तुम्हारी भी समस्याओं का समाधान हो जायेगा अवि कोशिश तो करो !
अवि - मन ही मन में सोच रहा है कि निशा वास्तव में खुश है या फिर एक्टिंग कर रही है खुश होने की , या फिर स्त्रियाँ सच में पानी की ही तरह होती हैं, या फिर पत्थर दिल! जिस निशा को मैं इतनी दूरियाँ के बावजूद भी अबतक नहीं भूल पाया हूँ वो मुझे कैसे भूल सकती है इतनी आसानी से! फिर उसका दिल नहीं माना तो पूछ ही लिया निशा से -
अच्छा एक बात सच - सच बताना निशा तुम तो अपने रिश्ते से खुश हो न या तुम भी सामाजिकता निभा रही हो.?
निशा - हम जैसी औरों पर निर्भर स्त्रियों को अपनी खुशियों का खयाल ही कब रहता है , वो तो कभी पिता, कभी पति, और कभी अपनी संतानों में अपनी खुशियाँ न्यौछावर कर देतीं हैं और उनकी खुशियों में ही अपनी खुशियाँ ढूढ लेतीं हैं!
अवि - इसे संस्कार कहते हैं जो हर स्त्रियों में नहीं पाई जाती निशा !
निशा - संस्कार नहीं अवि समझौता,
रिश्तों को को चलाने के लिए सिर्फ प्रेम ही काफी नहीं होता रवि इसके लिए सूझबूझ, त्याग तथा समझौतों की जरूरत होती है !
रवि - इतनी समझदार तुम कब से हो गयी निशा?
निशा - जबसे सर पर आँचल रखा, पीघर घर की चाबियों का गुच्छा अपने कमर में बांध ली.....
निशा बोल रही थी अवि सुन रहा था चाह रहा था कि यह सफर कभी खत्म न हो
तभी विमान से अनाउंस होता है... अब विमान अपने गन्तव्य को पहुंचने वाली है कृपया अपनी कुर्सी की पेटी बांध लें.................
निशा कुर्सी की पेटी बांध रही है अपने गन्तव्य तक पहुंचने के लिए...
अवि - अच्छा एक बात बताओ निशा इतने दिनों में तुम्हें मेरी कभी भी याद नहीं आई..?
निशा - भूली ही कब थी!
अवि - फिर तुम कैसे खुश हो अपने रिश्ते से....?
निशा - मैंने तो तुम्हारी निशा की उसी दिन हत्या कर दी थी जिस दिन मेरी शादी हुई अब तो जो निशा है वह रवि की पत्नी है और अपने बच्चों की माँ है!
फ्लाइट लैंड कर गई ! दोनो का ही यह सफर निश्चित ही खूबसूरत रहा, दोनों ही चाह रहे थे कि यह सफर कुछ देर और साथ चलता, लेकिन दोनों ही अपने - अपने गन्तव्य को चले गए !

