Kumar Vikrant

Inspirational

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गन्ही बाबा

गन्ही बाबा

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जो मनोरम समुद्री यात्रा तीन दिन में खत्म होनी थी, वो कब तीन महीने की भयानक समुद्री यात्रा में बदल गई उस स्टीमर के ३५० गिरमिटिया मजदूर यात्रियों इसका अहसास तक न था। यात्रा जारी रही, कलकत्ता के बंदरगाह से चलते समय गुलामी से आजादी का सपना स्टीमर के ३५० गिरमिटिया मजदूर यात्रियों ने देखा था वो रोज टूटता रहा।

राम बाबू और सोमी का विवाह भी वो बेमेल विवाह था जिसके शिकार उस स्टीमर के अधिकांश यात्री थे, कलकत्ता के वेयर हॉउस में सारे गिरमिटिया यात्रियों के जोड़े बना कर उनके विवाह कर स्टीमर में लाद दिया गया था । सोमी भी राम बाबू की तरह आरकाटियों के चक्कर में पड़कर पहले कलकत्ता पँहुचे और बाद में अग्रीमेंट हुआ और अब सब इस दड़बे जैसे स्टीमर पर थे, मंजिल का कुछ पता नहीं था।

अक्सर समुंद्री तूफ़ान आते और सारे गिरमिटिया यात्रियों को स्टीमर के तहखाने ठूस दिया जाता। अक्सर यात्री बीमारी से मर जाते, लेकिन कोई दाह-संस्कार नहीं, लाश को सीधे समुंद्र में फेक दी जाती। 

अंग्रेज सुपरवाइजर विल्किनसन की निगाह में हर भारतीय मजदूर औरत उसकी मिलकियत थी और वो रोज उनकी अस्मत को तार-तार करता था, सोमी की हुई। राम बाबू उसका पति था लेकिन बेबस था और सोमी की इज्जत से खिलवाड़ को रोज देखता रहा।

पूरे साढ़े तीन महीने बाद स्टीमर फिजी की धरती से जा लगा और सारे गिरमिटया झोक दिए गए प्लान्टेशन में मजदूरी करने के लिए। प्लान्टेशन के हालात भी बहुत बुरे थे। वहाँ भी वही जुल्म और जबरदस्ती जारी रही, सोमी की खूबसूरती वहाँ भी उसकी दुश्मन बनी और प्लान्टेशन के सुपरवाइजर की गलत निगाह की शिकार बनी, उसकी इज्जत से फिर खिलवाड़ हुआ।

आज सुबह से सोमी रो रही है, राम बाबू की कायरता के लिए उसे कोस रही है। राम बाबू को प्लान्टेशन में मजदूरी के लिए जाना है। पूरे दिन काम के बाद राम बाबू लोटा तो सोमी को न पाकर परेशान हुआ। पूरे दो दिन की तलाश के बाद भी सोमी न मिली लेकिन समुन्द्र के किनारे उसकी लाश मिली।

राम बाबू अब तक पूरी तरह टूट चुका था। अब वो गुमसुम सा इधर-उधर भटकता रहता। किसी ने बताया अफ्रीका में गाँधी जी गिरमिटिया मजदूरों के अधिकारों के लिए वहाँ की नस्लवादी सरकार से लड़ रहे है; एक दिन उनकी निगाह हम फिजी के गिरमिटिया मजदूरों पर भी पड़ेगी और वो हमे भी इस गुलामी से आज़ाद कराने आएंगे।

राम बाबू को एक उम्मीद बंधी; वो फिर काम पर लगा और गन्ही बाबा की प्रतीक्षा करने लगा कि दिन गन्ही बाबा आएंगे और उसे आजाद करा कर भारत वापिस भेज देंगे। दिन हफ्तों में बदले, हफ्ते महीनो में, महीनो सालो में लेकिन गन्ही बाबा न आये, राम बाबू की आस टूटने लगी। उस दिन वो काम पर भी न गया, उसने गन्ही बाबा के बारे में जितना जाना था उसे ही अपने जीवन का आधार बना कर आज़ादी की लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया और अकेला ही घर से निकल पड़ा।


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