मुझे संरक्षण दो
मुझे संरक्षण दो
नवल जब किनारे पर पहुँचा तो एक बार उसे अंदेशा हुआ कि वह गलत जगह पर आ गया है। ये छिछला गंदा नाला है।
वह लौटने लगा तो एक आवाज़ कानों में पड़ी।
"कहाँ जा रहे हो ? तुम सही जगह पर आए हो।"
नवल ने चौंककर इधर उधर देखा। आसपास कोई नहीं था।
"मैं नदी बोल रही हूँ। जिसे तुम नाला समझ कर भाग रहे थे।"
नवल को बहुत आश्चर्य हुआ। वह हिम्मत कर बोला।
"नदी कैसे बोल सकती है ?"
"क्या करूँ ? वैसे तो मेरा स्वभाव शांति से बहते रहना है। मैं तो अब तक अपने किनारे बसे लोगों को खुशहाल देख कर खुश रहती थी। बिना भेदभाव सबको अपना जल देती थी। लेकिन मेरी चुप्पी का यह नतीजा निकला कि लोगों ने शहर भर की गंदगी मुझमें डालना शुरू कर दिया। मैंने उसे भी अपने जल से निर्मल कर दिया।"
नवल को यकीन हो गया था कि यह नदी ही है। वह ध्यान से उसकी बात सुन रहा था।
"मैं चुप थी, तुम लोगों ने इसका गलत फायदा उठाया। अब तो फैक्टॅरियों की गंदगी, प्लास्टिक, सीवेज सब कुछ आराम से मेरे अंदर डाल देते थे। मैं उद्गम से स्वच्छ निर्मल निकलती हूँ पर यहाँ आते आते गंदा नाला हो जाती हूँ।"
नवल ने कहा।
"पर माँ आपकी सफाई के लिए तो कितने प्रोजेक्ट चल रहे हैं।"
"उसका नतीजा तो तुम्हारे सामने है बेटा। सरकारों ने बड़े बड़े वादे किए। तुम लोगों ने माँ बनाकर पूजा। पर मेरी तकलीफ़ कुछ ही लोग देख पाए। वो भागीरथ बन कर इस बार मुझे तारने का प्रयास कर रहे हैं। पर उनकी भी कौन सुनता है।"
"बात तो आपकी ठीक है। इतने सालों के प्रोजेक्ट कुछ भी नहीं कर सके।"
नदी ने आगे कहा।
"मेरे भीतर इतना कचरा जमा हो गया है कि मैं छिछली होती जा रही हूँ। बरसात में अक्सर उफान पर आ जाती हूँ। तब सब कहते हैं कि नदी कहर ढा रही है। बताओ मैं क्या करूँ ?"
नवल सब सुनकर गंभीर था।
"माँ हम आपकी संतानें हैं। आपकी भक्ति करते हैं।"
"बेटा मुझे भक्ति नहीं संरक्षण चाहिए। मुझे पूजने की जगह मुझे इस गंदगी से मुक्त करो। बस यही कहने के लिए आज अपनी चुप्पी तोड़ी है।"
नदी चुप हो गई। नवल एक संकल्प के साथ वहाँ से चला गया।