गलती किसकी?
गलती किसकी?
शालिनी नाम था उसका, मात्र अठारह साल की थी वो। अस्पताल में उसके पार्थिव शरीर को लेने आई उसकी माँ, हाथ में कागज़ में लपेटे नोटों का बंडल लिये, कोने में रोती बिलखती बैठी थी। और बार बार मन ही मन सवाल कर रही थी कि आखिर गलती किसकी है?
शालिनी उस समय मात्र 17 बरस की थी, जब उसके पिता की कैंसर से मृत्यु हुई थी। बैंक में जो रकम थी वो पूरी इलाज में खर्च हो गई थी। रिश्तेदारों और दोस्तों ने मदद करने से इंकार कर दिया, तो मजबूरी में इलाज के लिये एक सुनार से ब्याज पर पैसे लिये थे। एक तो पिता का साया उठ गया था, दूसरे कर्जा सिर पर चढ़ गया था। चंद महीनों बाद शालिनी, उसकी माँ और 10-12 साल के दो छोटे भाई बहन सभी दाने- दाने के मोहताज हो गये थे। जहाँ चार लोगों के दो वक्त के खाने का ही इंतजाम नहीं हो पा रहा था, वहाँ काहे की पढ़ाई और कैसा भविष्य? सभी बच्चों को फीस ना भर पाने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया।
घर चलाने के लिये माँ मोहल्ले की औरतों की कुर्तियाँ और ब्लाऊज सिलने लगीं। अब जैसे तैसे रूखी रोटी और नमक- प्याज का इंतजाम होने लगा था। जब सबको लगने लगा कि अँधेरा छँट गया है, तभी ज़िन्दगी ने एक झटका और दे दिया।
पतंग उडाते समय शालिनी का भाई छत से गिर गया था, आनन-फानन में अस्पताल लेकर गये। लेकिन वहाँ सफेद कोट पहने खुद को भगवान मानने वाले डॉक्टरों ने बिना एक लाख रुपये जमा कराये इलाज ही शुरू नहीं किया। बहुत मिन्नतें की, बहुत गिड़गिड़ाये पर पैसों की ख़नक सुनने के शौकीन कानों तक गरीबों की पुकार पहुँच ही ना पाई। मजबूरन सरकारी अस्पताल लेकर गये। वहाँ डॉक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया। उनके मुताबिक अस्पताल पहुँचाने में देरी के कारण ज्यादा खून बहने से मौत हुई थी। लेकिन सच तो ये था कि पैसों की कमी से उसका भाई छिन गया था।
सालभर के भीतर बाप और भाई दोनों को खो चुकी शालिनी को अब अपनी माँ और बहन की चिंता सता रही थी। माँ की बढ़ती खाँसी और कमजोर होता शरीर, बहन की उदास आँखें और धूल चढ़ी किताबें सब चीख चीखकर शालिनी को परेशान कर रहे थे। रातों में सोते सोते अचानक से एक भयानक ख्वाब उसे जगा देता था। वो थक चुकी थी, इस सन्नाटे, इस उदासी और आँसुओं से। फिर एक दिन उसने सोच लिया - मैं नहीं पढ़ पाई, मेरा कोई भविष्य नहीं बन पाया पर मैं अपनी छोटी की ज़िंदगी अंधेरों में नहीं खोने दूँगी।
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कुछ दिनों बाद उसने अपनी माँ को बताया कि उसे एक घर में बच्चे संभालने का काम मिला है। अब से वहीं रहना होगा, खाना और कपड़े मालकिन की ओर से होगा और 8 हजार रुपये महीना की तनख्वाह है। माँ के पूछने पर कि नौकरी किसने बताई? तो शालिनी ने कहा - "उस प्राईवेट अस्पताल में एक नर्स दीदी से बात हुई थी, उन्होनें ही बताया था।"
शालिनी की माँ ने ज्यादा सवाल किये बिना उसे नौकरी की इजाज़त दे दी। ये सोचकर कि चलो, एक आदमी का खाना भी बचेगा और 8 हजार रूपये महीना की पगार भी।
अगले दिन शालिनी चली गई। शहर से दूर एक बड़े से घर में। वो सचमें एक नर्स और उसके डॉक्टर पति का ही घर था। लेकिन यहाँ वो बच्चे संभालने नहीं, बल्कि अपनी कोख किराये पर देने आई थी, जी हाँ वो एक सेरोगेट मदर बनने आई थी। अमीर घरों की औरतें जो शरीर खराब होने के डर से बच्चे पैदा नहीं करना चाहतीं, वो गरीब लड़कियों की कोख किराये पर लेते हैं। पैसा हो तो इस दुनिया में सबकुछ खरीदा जा सकता है। शालिनी भी उन्हीं गरीब लड़कियों में से एक थी, जिनका शरीर ये अमीर लोग अपनी संतानोत्पत्ति के लिये खरीदते हैं।
डॉक्टर ने सेरोगेसी के लिये अपने घर में एक क्लीनिक बना रखा था, क्योंकि कुँवारी कन्याओं को सेरोगेट मदर बनाना गैर-कानूनी जो था। पर इन पढ़े-लिखे लोगों के पास हर नियम-कानून की धज्जियाँ उड़ाने का दिमाग होता है।
शालिनी जिनके बच्चे के लिये सेरोगेट मदर बनने गई थी, वो एक बेहद अमीर विदेशी जोड़ा था। शालिनी के नौ महीनों का रहने-खाने-दवाई आदि सबका खर्चा वो जोड़ा उठा रहा था। शालिनी को बच्चे के जन्म के बाद 5 लाख रुपये देने का कॉन्ट्रैक्ट था।
वक्त बीतता गया। शालिनी की कम उम्र होने के कारण डिलीवरी में कुछ दिक्कतें आ गईं थीं। आखिरी महीने में डॉक्टर ने बताया कि वो माँ और बच्चे में से किसी एक को ही बचा सकते थे। उस विदेशी जोड़े ने बच्चा बचाने को कहा। शालिनी को ऑपरेशन के लिये ले जाया गया। अब शालिनी समझ चुकी थी कि वो शायद अब ज़िंदा नहीं बचेगी, उसने अपनी माँ को फोन करके अस्पताल बुलाया और पूरी बात बताई। माँ की आँखों में बेटी का त्याग देखकर आँसू आ गये थे। उनकी बेटी इतनी बड़ी कब हो गई, उसने माँ और बहन की जिम्मेदारी में अपनी जान दाँव पर क्यों लगा दी जैसे कई सवाल थे। लेकिन अब जबाव देने का समय बीत चुका था।
ऑपरेशन थिएटर से बाहर आकर डॉक्टर ने उस विदेशी जोड़े से कहा - "बधाई हो, बेटा हुआ है। एक स्वस्थ और सेहतमंद।"
फिर कोने में बैठी शालिनी की माँ डरी सहमी माँ से कहा - "हमें माफ कर दीजिये हम आपकी बेटी को नहीं बचा सके। इसके बदले आपको कॉन्ट्रैक्ट से दो लाख ज्यादा रुपये दिये जायेंगें। माताजी, हम आपका भला चाहते हैं इसलिये कह रहे हैं, आपकी बड़ी बेटी तो अब वापस नहीं आ सकती। अब उसका भविष्य बनाईये जिसके लिये आपकी बेटी ने जान दी है, छोटी को पढ़ाईये और समय पर शादी कर देना। सात लाख रुपये आपकी सोच और हैसियत से बहुत ज्यादा हैं, चुपचाप स्वीकार कर लीजिये, पुलिस के पास गईं तो कुछ नहीं मिलेगा। आपके पास कोई सबूत भी नहीं है हमारी गलती साबित करने का।" - इतना कहकर डॉक्टर शालिनी की माँ का जबाव सुने बिना ही बेशर्मी की मुस्कान बिखेरता आगे बढ़ गया।
शालिनी की माँ नजरों से दूर जाते डॉक्टर को देखती रहीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि - " गलती किसकी थी? उनकी और उनकी बेटी की जो वो गरीब थीं? उस विदेशी जोडे की जिसने अपना बच्चा किराये पर पैदा करवाया था? हमारे देश की लचर कानून व्यवस्था की जहाँ अपराधी हर नियम की खुलेआम धज्जियाँ उडाते हैं? या उन डॉक्टरों की जो ज्यादा पैसों के लालच में गरीबों की बेटियों को फँसाते हैं, उन्हें इस बात का भी ख्याल नहीं रहता कि लड़कियों का शरीर और स्वास्थ्य माँ बनने की इजाज़त दे रहा है या नहीं? आख़िर गलती किसकी थी? "
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