घायल पंछी
घायल पंछी




विवेक के सामने पूरा खुला आसमान था उड़ने के लिये पर लगता था मानो उसके पंख कतर दिये गये हों। उड़ना तो क्या वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। मन बहुत अशांत था। गिरते-संभलते किसी तरह पार्क में पड़ी बेंच पर बैठ गया।
ठंडी बयार ने मन को सुकून दिया तो बीती यादों ने आ घेरा। बीस वर्ष की ज़िन्दगी में उसने केवल एक ही भूल की थी। संजना को दिल से चाहा और विवाह किया। बदले में मिले तन और मन पर रिसते घाव। जो हर दिन हरे हो जाते। ऊपर से गंदी भाषा और गालियों की बौछार।
"पापा, यह लीजिये सबूत का वीडियो। अदालत में मैं गवाही दूँगा माँ के ख़िलाफ़।" बेटे अनुज ने आ कर तन्द्रा तोड़ी।
कुछ देर सोच कर बेटे को गले लगा लिया, "नहीं बेटा, बड़ों के झगड़े में बच्चे नहीं पड़ते। तुम घर लौट जाओ। माँ और बहन का ख्याल रखना।"
अपना सब कुछ गँवा कर आँसुओं के साये में विवेक अपनी मंज़िल तलाशने निकल पड़ा।