Kumar Vikrant

Comedy Drama

3  

Kumar Vikrant

Comedy Drama

गड़बड़ -झाला

गड़बड़ -झाला

3 mins
554


छोटी दीवाली की संध्या, सारा शहर रोशनी में नहाया हुआ, जगमगाता हुआ। हर दुकान में ग्राहकों की भीड़, दुकानदार अपना सड़ा-गला सामान ग्राहकों को भिड़ाने में व्यस्त और ग्राहक बिना किसी झाँय-झाँय के दाम चुकाकर दुकान से बाहर निकलने को बेताब।

चौराहे की चायनीज सामानों की दुकान का भी यही आलम था। चायनीज बल्ब, चायनीज लड़ियों और दूसरे चायनीज साज-सज्जा के सामानों की जबरदस्त बिक्री हो रही थी। सामान खरीदने वाले और ख़राब सामान की शिकायत लेकर आये ग्राहकों की चिल्ल-पौ मची हुई थी।

दुकान के तीन काउंटरों पर तीन हट्टे - कट्टे लड़के खड़े हुए थे और ग्राहकों भीड़ को भली-भांति संभाल रहे थे। उसी भीड़ में आकाश भी खड़ा था, हाथ में तीन खराब चाइनीज लड़ियों के गुच्छे लिए।

"सर लड़ियाँ आपको चेक कर के दी थी, ये चायनीज माल है बिना गारंटी का, ये न तो वापस होंगी न बदली जाएंगी।" काउंटर पर खड़ा लड़का मुस्करा कर बोला।

"भाई मैं सौ लड़ियाँ ले गया था, ये लिहाज कर के ही इन्हें बदल दो।" आकाश लड़ियों को काउंटर पर रखते हुए बोला।

"सर यहाँ से लोग पाँच सौ-पाँच सौ लड़ियाँ ले जाते है, यही अदला-बदली करते रहे तो दुकान में ख़राब सामान के ढेर लग जायेंगे।" दूसरे काउंटर पर खड़ा लड़का बोला।

"भाई मैं ये लड़ियाँ तुम्हारे मुंह मांगे दाम पर ले गया था, बिना किसी मोल-भाव के......." आकाश चिड़चिड़ाहट के साथ बोला।

"ये बदली नहीं जायेगी, मैं इन्हें चेक करवा सकता हूँ....... ठीक हो गयी तो तुम्हारी तक़दीर, नहीं तो ये नुकसान तुम्हें झेलना पड़ेगा।" काउंटर पर खड़ा लड़का बदतमीजी के साथ बोला और उसने आकाश की लड़ियाँ तीसरे काउंटर पर खड़े लड़के की और उछाल दी।

आकाश तीसरे काउंटर पर चला आया और लड़ियाँ चेक करते लड़के को देखने लगा।

तभी ग्राहकों की भीड़ को चीरते हुए वो दुकान में आ घुसी, छह फुट ऊँची, चेहरा गुस्से से लाल, साथ में एक मरियल सा लड़का जो हाथ में ख़राब लड़ियों का गुच्छा लिए हुए था। उसने गुच्छा उस लड़के के हाथ से छीनकर काउंटर पर पटका और काउंटर पर खड़े लड़के से बोली-

"क्यों रे तूने इस बच्चे को लड़ियाँ बदलने से मना किया.........?"

"हाँ मना किया, लड़ियाँ बदली नहीं जाएगी।" लड़का अक्खड़ आवाज में बोला।

"चुपचाप लड़ियाँ बदल दे......नहीं तो........" वो गुर्रा कर बोली।

"नहीं तो क्या कर लेगी तू?" काउंटर पर लड़का बदतमीजी के साथ बोला। तब तक दुकान में मौजूद ग्राहक उस महिला की ओर देखने लगे।

"क्या कर लुंगी मैं......?!” महिला ने अपने पैर से कीचड़ से सनी मजबूत चप्पल निकालते हुए कहा। देखते ही देखते उसने काउंटर पर खड़े लड़के का गिरेबान पकड़ कर उसके चेहरे पर तीन-चार चप्पल जड़ दी।

पिटे लड़के के मुँह से गन्दी गालियाँ निकली और जवाब में उसके मुंह पर और चप्पलें पड़ी। काउंटर पर खड़े दूसरे लड़के भी पिटते लड़के की मदद को दौड़े लेकिन महिला की चप्पल रूपी खड्ग का शिकार होकर धराशाई हो गए और दुम दबा कर दुकान के कोनों में जा छुपे। पिटता लड़का भी तब तक महिला से छूट कर दुकान के दूरस्थ कोने में जा खड़ा हुआ और अपने चेहरे पर लगी चप्पल का कीचड़ साफ़ करने लगा।

उस महिला ने ख़राब लड़ी का गुच्छा दुकान में दे मारा और पहले वाले लड़के से बोली, "चुपचाप पैसा वापिस कर......"

बेइज्जत हुए लड़के ने गल्ले में हाथ डाला और सौ-सौ के दो नोट उस महिला के हाथ पर रख दिए। उसके बाद वो महिला दनदनाती हुई उस मरियल से लड़के को घसीटते हुए दुकान से बहार निकल गयी।

सारे ग्राहक इस अचानक हुए हादसे से उभर भी नहीं पाए थे कि अब तक भेड़ बना आकाश भी भेड़िये का रूप धारण करते हुए बोला, "लगता है यही भाषा समझते हो तुम लोग, मुझे पैसा नहीं चाहिए........लड़ी बदल दे बस।"

"बदल दे भाई........आज तो दिन ही खराब है अपना......." काउंटर पर खड़ा लड़का अपने मुंह से चप्पल की मार से लगी कीचड़ को साफ़ करते हुए बोला।


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