गांव की शाम और गांव की जिंदगी
गांव की शाम और गांव की जिंदगी
गांव में रहने का मौका हमें बहुत पड़ा है।
साडे 3 साल थोड़ा पिछड़ा गांव का,20साल हम समृद्ध गांव में रहे। हॉस्पिटल कैंपस में रहते थे।
मगर जैसे पूरा गांव ही हमारा घर हो कभी भी मन में कोई डर नहीं रहता था। मेरे बच्चे तो आधी रात को वे दोनों बेटियां हाथ पकड़कर के हॉस्पिटल अपने पापा को लेने चली जाती थी कोई डर नहीं लगता था।
क्योंकि डर जैसा कुछ था ही नहीं सब अपने ही लगते थे।
गांव की शाम बड़ी सुहानी होती है सब बाहर बैठ कर के बातें करते हैं।
दिन भर अपने काम में व्यस्त रहने वाले शाम को पंचायती करते हैं।
और मौज मजे करते हैं कहीं गाने डांस भी चलते हैं। नर्मदा नदी के किनारे का यह गांव बहुत ही सुंदर है।
कहीं उस परिवेश में जो भी गाने डांस होते हैं वे चलते हैं अच्छा लगता है। वहां के हर प्रोग्राम में भले हो गणेश उत्सव हो भले कृष्ण जन्मोत्सव गरबे मंदिर के कोई फंक्शन सब में प्रमुख बना कर बुलाते थे बहुत मजा आता था जब हम वहां से ट्रांसफर होकर आए तो पूरा गांव हमको विदा देने आया था और बहुत भावभीनी विदाई दी थी। यादगार समय रहा करने आया था।
शहर से कहीं अलग सब एक दूसरे से जुड़े हुए मुझे तो ऐसा ही लगा। अपवाद सब जगह होते हैं हम जहां रहते थे वहां भी थे।
मगर उनसे निपटना हमको आता था इसलिए हमारे रास्ते में कोई नहीं आया।
पार्टी पॉलिटिक्स भी बहुत चलती है गांव का प्रमुख अच्छा हो तो गांव काफी प्रगति कर जाता है।
मेरे रहने वाले दोनों गांव में काफी प्रगतिशील थे।
और काफी प्रगति करी। तिलकवाड़ा अब तहसील हो गया है।
छाणी गांव तो अब बड़ौदा के अंदर ही शामिल हो गया है सबसे ज्यादा खेती आलू की उपज केले केउपज, और अमेरिकन मकई वही होती थी बहुत समृद्ध गांव था वहां 20साल रहे।
बहुत ही सुंदर मंदिर ऐतिहासिक मंदिर और बहुत अच्छे लोग भी बहुत अच्छी होती थी सब कुछ अच्छा सा स्कूल भी अच्छे थे और बड़ौदा में मिक्स होने के बाद तो वहां की सड़कें सब काफी अच्छी हो गई है। गांव के दिन और शाम सभी बहुत अच्छे हैं आज भी मेरे बच्चे तो गांव को बहुत याद करते हैं मैं भी इतने साल वहां रहे तो कभी लगा ही नहीं कि हम गांव में रहते हैं सब सुख सुविधाओं से संपन्न नगर पालिका वाला कस्बा था
