गाँव - 3.9

गाँव - 3.9

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कुज़्मा सुनता रहा, करीब-करीब ख़ौफ़ से उसकी ठहरी हुई पागल आँख़ों को उसके टेढ़े मुँह को, जिससे दृढ़तापूर्वक शब्द निकल रहे थे, देखते हुए सुनता रहा और ख़ामोश रहा. फिर उसने पूछ लिया-

“भाई, तू मुझे ईसा की ख़ातिर बता, इस शादी से तेरा कौन-सा फ़ायदा होने वाला है ? मैं समझ नहीं पाऊँगा, ख़ुदा गवाह है, नहीं समझ पाऊँगा. तेरे देनिस्का को मैं फूटी आँखों नहीं देख सकता. यह नई किस्म का आदमी, नया रूस, पुराने सभी से ज़्यादा साफ़-सुथरा होगा. तू यह न देख कि वह शर्मीला , भावना प्रधान है और बेवकूफ़ होने का ढोंग करता है -यह ऐसा बेशरम जानवर है कि पूछो मत ! मेरे बारे में कहता है कि मैं दुल्हन के साथ रहता हूँ...”

“ओह, तू तो हर बात बढ़ा-चढ़ाकर कहता ,” तीखन इल्यिच ने मुँह बनाते हुए उसे टोका. “ ख़ुद ही कहते रहते हो : लोग बदकिस्मत हैं, बदकिस्मत लोग हैं ! और अब - जानवर !”

“हाँ, कहता हूँ, और कहता रहूँगा !” कुज़्मा ने जोश में कहा. “मगर मेरा दिमाग़ चल गया है. अब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है : कभी लगता है – बदकिस्मत , कभी...मगर तू सुन : तू तो ख़ुद ही उससे, देनिस्का से नफ़रत करता है. तुम दोनों एक-दूसरे से नफ़रत करते हो. वह तेरे बारे में सिवा इसके कुछ नहीं कह सकता, कि “तू हत्यारा है, लोगों का ख़ून चूसता है,”और तू उसे खूनी कहकर गाली देता है. वह बेशर्मी से गाँव भर में डींगें मारता फ़िरता है, कि वह राजा का संबंधी है.”

“हाँ, जानता हूँ मैं,” फिर से तीखन इल्यिच ने टोका.

“और दुल्हन के बारे में, जानते हो क्या कहता है ?” कुज़्मा उसकी बात सुने बगैर कहता रहा,

“उसका, समझते हो न, इतना नाज़ुक गोरा रंग है चेहरे का, और वह जानवर, जानते हो, क्या कहता है ?” – “एकदम भट्ठी का चमकता ढक्कन है, कमीनी !” हाँ, और तू आख़िर में एक बात अच्छी तरह समझ ले - वह गाँव में रहने वाला नहीं है, उस आवारा को, अब फ़न्दा डालकर गाँव में नहीं रोक सकते. कैसा होगा वह घर का मालिक, कैसे चलाएगा परिवार ? कल सुना है, गाँव में घूम-घूमकर फ़टी आवाज़ में गा रहा था : ख़ूबसूरत, जैसे जन्नत की परी, शैतान जैसी है – बदनीयत और दुष्ट...”   

“जानता हूँ,” तीखन इल्यिच चीख़ा.“नहीं रहेगा गाँव में, किसी हालत में नहीं रहेगा ! शैतान ही जाने उसे. और यह कि वह अच्छा मालिक नहीं है, तो क्या तू और मैं अच्छे मालिक हैं ! मुझे याद है, तुझसे काम की बात कर रहा था, शराबख़ाने में, याद है ? और तू बटेर की आवाज़ सुन रहा था...और आगे क्या, आगे क्या होगा ?”

“कैसे क्या ? और यहाँ बटेर कहाँ से आ गया ?” कुज़्मा ने पूछा.

तीखन इल्यिच मेज़ पर उँगलियों से ठक-ठक करते हुए कठोरता से, चुनौती भरी आवाज़ में बोला :

“याद रख : पानी को काटेगा, पानी ही रहेगा. मेरी बात हमेशा सच होती है. एक बार मैंने कह दिया – करूँगा ही. अपने गुनाह के बदले मोमबत्ती नहीं जलाऊँगा, बल्कि भला करके जाऊँगा. चाहे मैं थोड़ा ही दूँगा, मगर इस थोड़े के लिए ख़ुदा मुझे याद रखेगा.”

कुज़्मा अपनी जगह से उछला :

“या ख़ुदा, या ख़ुदा !” वह ऊँचे सुर में चीख, “कैसा है हमारा ख़ुदा ! कैसा हो सकता है देनिस्का,अकीम्का, मेन्शोव, सेरी का, तेरा और मेरा ख़ुदाा ?”

“रुक,” कठोरता से तीखन इल्यिच ने कहा, “ यह किस अकीम्का की बात हो रही है ?”

“मैं जब लाचार पड़ा था,”कुज़्मा उसकी बात सुने बगैर कहता रहा, “ क्या मैंने उसके बारे में बहुत सोचा ? बस एक ही ख़याल था : उसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता और सोच नहीं सकता !” कुज़्मा चीख़ा, "सिखाया नहीं गया मुझे !”

और, अपनी चंचल, आहत दृष्टि से चारों ओर देखते हुए, बटन खोलते और बन्द करते हुए, वह कमरे में चहलकदमी करता रहा और तीखन इल्यिच के ठीक मुँह के सामने रुका.

“याद रख, भाई,” उसने कहा, और उसके जबड़े लाल हो गए. याद रख हमारा दाना-पानी उठ गया है और कितनी भी मोमबत्तियाँ हमें नहीं बचा सकतीं. सुन रहे हो ? हम दुर्नोव्कावासी हैं !”

और उत्तेजना के मारे शब्द न मिलने के कारण वह चुप हो गया. मगर तीखन इल्यिच अपनी ही किसी सोच में मग्न था और अचानक वह सहमत हो गया:

“सहीं है. किसी काबिल नहीं हैं लोग. तू सिर्फ इतना सोच...”

और नए ख़याल में मगन उसमें जोश भर गया :

“तू सिर्फ इतना सोच : पूरे एक हज़ार सालों से ज़मीन जोत रहे हैंं मैं कहता हूँ. बल्कि ज़्यादा ही. मगर सही तरह से जोतना एक को भी नहीं आता ! अपना एक भी काम नहीं करना आता. नहीं जानते कि खेतों में कब निकलना चाहिए. बोना कब चाहिए, कब काटना चाहिए !” जैसा लोग करते हैं, वैसा ही हम भी करते हैं. बस इतना ही मालूम है. याद रख.” भौंहे नचाते हुए वह कठोरता से चीख़ा, जैसे कभी कुज़्मा उस पर चिल्लाया था. “जैसा लोग करते है, वैसा ही हम भी करते हैं. रोटी बनाना एक भी लुगाई को नहीं आता. ऊपर की पर्त गिर जाती है जहन्नुम में, और उसके नीचे – खट्टा पानी.”

कुज़्मा बौखला गया,उसके ख़याल गड्ड्मड्ड हो गए.

“वह पगला गया है ,” उसने सोचा, भावरहित आँखों से भाई का पीछा करते हुए, जो लैम्प जला रहा था।

और तीखन इल्यिच उसे सँभलने का मौका दिए बगैर कहता रहा।

“लोग ! झूठे, आलसी, जली-कटी सुनाने वाले, इतने बेशर्म कि एक भी आदमी दूसरे पर भरोसा नहीं करता. याद रख,” वह दहाड़ता रहा, बगैर इस बात पर ध्यान दिए कि जलाई हुए बत्ती भभक रही है, उसमें से उठता हुआ धुँआ छत तक पहुँचने ही वाला है. “हम पर नहीं, एक दूसरे पर. और वे सब ऐसे ही हैं, सभी !” वह रोनी आवाज़ में चीखा और उसने लैम्प पर काँच चढ़ा दिया.

खिड़कियों के पीछे नीला आसमान दिखाई दे रहा था. गड्ढों और बर्फ़ के ढेरों पर ताज़ी सफ़ेद बर्फ़ गिर रही थी. कुज़्मा उसकी ओर देखते हुए ख़ामोश रहा. बातचीत ने ऐसा अप्रत्याशित मोड़ ले लिया था कि कुज़्मा का आवेश भी ठण्ड़ा हो गया. यह न जानते हुए कि वह क्या कहे. भाई की वहशी आँखों में देखने का इरादा न करते हुए वह सिगरेट बनाने लगा. 

“पगला गया है,” उसने हताशा से सोचा. “हाँ, वही रास्ता है. क्या फ़र्क पड़ता है.

सिगरेट पीते हुए तीखन इल्यिच भी शान्त हो गया. वह बैठ गया और लैम्प की लौ की ओर देखते हुए हौले से बुदबुदाया :

“और तू, ‘देनिस्का’… सुना तूने कि मकार इवानोविच बंजारे ने क्या किया था ? अपने दोस्त के साथ मिलकर रास्ते में एक औरत को पकड़ लिया, क्ल्यूचिकी की चौकी में घसीट कर ले गए और चार दिनों तक उस पर बारी-बारी से बलात्कार करते रहे...ख़ैर,अब वे जेल में हैं...”

“तीखन इल्यिच,” कुज़्मा ने प्यार से कहा, “तू क्या कह रहा है ? किसलिए ? शायद, तेरी तबियत ठीक नहीं है. एक बात से दूसरी पर कूद रहे हो, अभी एक बात पर ज़ोर देते हो, एक मिनट बाद दूसरी कहने लगते हो...क्या बहुत पीते हो ?”

तीखन इल्यिच ख़ामोश रहा. उसने सिर्फ हाथ झटक दिए, और लौ की ओर घूरती उसकी आँखों में आँसू थरथरा गए।

“पीते हो ?” हौले से कुज़्मा ने दुहराया।

“पीता हू,” तीखन ने धीमे से जवाब दिया. “हाँ, पीने लगा हूँ. तू सोचता है कि यह सोने का पिंजरा मुझे आसानी से मिल गया है ? सोचता है कि पूरी ज़िन्दगी जंज़ीर से बँधे कुत्ते की तरह गुज़ारना, वह भी बुढ़िया के साथ,आसान था ? किसी के लिए भी, भाई मेरे दिल में दया नहीं थी...मगर मुझ पर भी ज़्यादा लोगों को रहम न आया. तू सोचता ह, मैं नहीं जानता कि कितनी नफ़रत करते हैं लोग मुझसे ? तू सोचता है, अगर इस क्रान्ति के दौरान इन किसानों को चाबुक मिल जाता तो मुझे बेरहमी से मार न डालते ? ठहर, थोड़ा ठहर, होगा, और भी हंगामा होगा. हमने उन्हें चीरकर रख दिया है.”

“और हैम के लिए, गला दबा देना ?” कुज़्मा ने पूछा.

“हा, दबा देना.” तीखन इल्यिच पीड़ा से बोला।

“यह तो मैं यूँ ही बात-बात में कह रहा हूँ...”

“हाँ, सचमुच दबा देंगे।”

“मगर यह हमारा काम नहीं है. उन्हें ख़ुदा को जवाब देना होगा।”

और भौंहे ऊपर उठाकर, वह सोच में पड़ गया, आँखें बन्द कर लीं।

“आह !” गहरी साँस लेकर दर्द से वह बोला, “आह, मेरे प्यारे भाई ! जल्दी-जल्दी ही हमें भी उसके तख़्त के सामने इन्साफ़ पाने के लिए खड़ा रहना पड़ेगा ! शाम को मैं यह इबादत की किताब पढ़ता हूँ और रोता, कराहता हूँ पढ़ते हुए. अचरज होता है ! कैसे इतने प्यारे लब्ज़ चुने होंगे. हाँ, ज़रा रुक...”

और वह फ़ुर्ती से उसने, आईने के सामने चर्च की जिल्द वाली मोटी किताब निकाली, थरथराते हाथों से ऐनक पहनी और आँसुओं से भीगी आवाज़ में,जल्दी-जल्दी, मानो डरते हुए कि कोई उसे बीच ही में न टोक दे, पढ़ने लगा:

“रोता हूँ और कराहता हू, जैसे ही सोचता हूँ मौत के बारे में और देखता हूँ ताबूत में लेटा हुआ, ख़ुदा का बनाया हमारा ख़ूबसूरत जिस्म, बदसूरत, बेआवाज़, बिनशक्ल का...असल में आदमी की भागदौड, ज़िन्दगी – एक सपना, एक परछाईं है. क्योंकि हर व्यक्ति, जिसने धरती पर जन्म लिया है, यहीं मिल जाता है, किसी ने लिखा : जब दुनिया पा लेते हैं, तो कब्र में घर बसा लेते हैं. जहाँ राजा और रंक एक साथ रहते हैं...”

“राजा और रंक,” तीखन इल्यिच ने गंभीरता से दुहराते हुए सिर हिलाया. “ख़त्म हो गई ज़िन्दगी, प्यारे भाई ! मेरे पास थी एक रसोइन, समझ रहे हो ना, गूँगी. मैंने उस बेवकूफ़ को परदेस की बनी हुई एक शाल दी,और उसने लेकर उल्टा पहनना शुरू किया...समझ रहे हो ? बेवकूफ़ी से और लालच से. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में सीधी पहनने से दुख होता है। त्यौहार आने दो, इंतज़ार करूँगी और जब त्यौहार आया तो उसके तार-तार हो गए थे...ठीक ऐसे ही मैंने भी...अपनी ज़िन्दगी के साथ किया, बिल्कुल ऐसे ही।”


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