एकता
एकता


“बेटा, सुबह से देख रही हूँ, तुम भूगोल की पुस्तक को लेकर बैठे हो। तुम्हें विज्ञान अधिक पसंद है न? फिर अचानक से आज भूगोल में रूचि कैसे बढ गई ?”
"माँ, भारत के मानचित्र में नदियों को देख रहा हूँ। नदियां जो उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम बहती है, वो हमारे राज्यों की सीमाओं को निरुपित कर रही हैं। इस बार परीक्षा में अधिकांश प्रश्न इसी मानचित्र से पूछे जायेंगे ।" बेटे ने सहजता से जवाब दिया।
" तुम्हें नदियों की रुप-रेखा को अच्छी तरह से समझना जरूरी है । हमारे देश में ऐसा कोई भी राज्य नहीं है जिसमें नदियां न हो। जैसे, उत्तराखंड से गंगा... उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल से होते हुए अंत में समुद्र में मिल जाती है। इसी प्रकार काबेरी... कर्णाटक, तामिलनाडू और केरल से होते हुए समुद्र में मिलती है और ब्रह्मपुत्र... तिब्बत की पठार से निकल कर अरुणाचल प्रदेश,आसाम, मेघालय से होते हुए समुद्र में समा जाती है। अर्थात् सभी नदियां अंत में समुद्र से ही मिल जाती है। नदियों का पानी मीठा होता है और समुद्र का पानी खारा।
इस बार तू नवमी कक्षा का फाइनल परीक्षा देगा। मुझे बता, मीठे पानी को भला खारे पानी से दोस्ती हो सकती है क्या ? बेटा, इस प्रश्न को लेकर मैं अक्सर उलझ जाती हूँ। "
" यही तो समझना है , ये नदियां हमें राष्ट्रीय एकता का संदेश देती है। चाहे हम किसी भी प्रांत के हों , हमारे रहन-सहन , बोली-चाली में कितनी भी भिन्नता हों , पर... हम सभी एक ही राष्ट्र रुपी बगान के रंग -बिरंगे फूल हैं। मीठा पानी को खारा पानी से मिलना वैसा ही हुआ ना जैसे प्रकृति हमें कश्मीर से कन्याकुमारी तक जुड़े रहने का सन्देश दे रही है | माँ ,यही तो विभिन्नता में एकता का होना है ।" बेटे ने मुस्कुराते हुए कहा |
बेटे के मुँह से ऐसी बातें सुनकर माँ की आँखें खुली की खुली रह गईं। माँ को अपना अकूत किताबी ज्ञान बेटे की समझदारी के सामने आज बौना दिख रहा था । उसका नन्हा शंकर देखते-देखते कब शंकराचार्य बन गया, उसे जरा सी भनक तक नहीं लगी ! अपने शंकर के सर पर हाथ रखते हुए वह बुदबुदाई, ‘अरे...तू सच में बड़ा हो गया !