anuradha nazeer

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4.6  

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एकमात्र रास्ता

एकमात्र रास्ता

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बात बहुत पुरानी है।एक राजा अपना देश को हरा-भरा रखना चाहता था। प्रजा सुखी थी। राज्य समृद्ध था । लोग सुखी थे। राजा धर्मा और न्याय संगीत राज्य चला रहा था। प्रजा सुखी थी लेकिन इस खुशी में बाधा डालने आया डाकू बहुत ही क्रूर था। लोग इन लोगों के पैसे लूटता था। राजा ने उस डाकू के सिर के लिए 10000 मुद्राएं की घोषणा कर दी ।लोग उसे ढूंढते रहे। लेकिन उसका अता पता नहीं था ।राजा ने सोचा अब भगवान और भक्ति ही एकमात्र रास्ता है ।

उसने अपने मंत्री को बुलाकर कहा मुझे एक ऐसे साधु महात्मा के दर्शन करा दो ।जिससे मुझे भावांतर और भक्ति भरे सखी व्यक्ति होने पर उसे अपने राज्य का आधा हिस्सा देने के लिए तैयार हूं ।मंत्री लालची था ।खोज में निकला। लेकिन उसे कोई नहीं मिला। ऐसे में चोर मंत्री के सामने आ गया। मंत्री ने उसे धमकाया। राजा ने तेरे सिर के लिए 10,000 मुद्राएं घोषित किया है ।

तुम एक काम करो यह बसम और रुद्राक्ष अपना लो। राजा आधा राज्य देगा। उसे मुझे दे देना। मैं तुझे 2000 मुद्राएं देता हूं ।

चोर राजा के सामने आया। पहले दस हज़ार मुद्राएं दान देने वाले राजा राज्य का आधा हिस्सा भी देने तैयार हुए। लेकिन साधू ने मना कर दिया ।राजा के जाने के बाद मंत्री उस पर चिल्लाया "तुम पागल हो गए क्या?" चोर ने कहा "मुझे बसम और रुद्राक्ष मिला है ।जिसके सामने राजा भी सिर झुकाते हैं ।अब मेरे लिए सब कुछ शिवजी हैं।"







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