एकाकिनी
एकाकिनी
हमारी एक मित्र हैं वे एक क़िस्सा सुना रही थीं कुछ समय पहिले का। उनकी रिश्तेदारी में एक शादी हुई थी। दोनों ही परिवार पुराने विचारों के थे ।माँ बाप ने अच्छा परिवार देखकर शादी तय कर दी। लड़के की राय नहीं ली गई ,न ही उससे कुछ पूछा गया और न ही उसे लड़की दिखाई गई।
लड़की की शादी विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के से हुई। दोनों ही परिवारों का कुल ऊँचा था ,मैथिल ब्राह्मण थे। धूमधाम से शादी हुई ,लड़की विदा हुई।
शादी तो लड़के ने कर ली पर लड़की पसंद नहीं आयी । सुहाग रात को ही देखकर छोड़ दिया । दूसरे ही दिन लड़का विदेश लौट गया। पत्नी को साथ नहीं ले गया।
लड़की सीधी सादी सुशील और घर के कामों में निपुण थी। पर सुसराल वालों ने भी उसकी क़द्र नहीं की। लड़की का जीवन दुखमय हो गया। सुसराल में सारा काम उसको करना पड़ता था ,कोई उसका ध्यान रखने वाला नहीं था। वह किसी तरह अपने दिन काट रही थी। उसे पीहर भी नहीं भेजा गया।
लड़का विदेश से बीच बीच में आता था ,पर तीन चार दिनों में ही लौट जाता था। पत्नी से कोई बात नहीं होती थी। इसी तरह कुछ समय गुज़र गया। एक बार लड़का आया, कुछ दिन रहा ,फिर विदेश चला गया। पत्नी गर्भवती हो गई।
ससुरालवालों को यह बात पता चली तो उन्होंने लड़की की ताड़ना की , उसे मारपीट की ,घर से निकल जाने को कहा। सीधी सादी लड़की को बदचलन कहा। वह बेज़बान कुछ बोल भी नहीं पाई ।
पति को ख़बर लगी तो उसने कहा कि उसे घर से न निकालो, मेरा ही बच्चा है उसके गर्भ में। बस उसके बाद सुसराल वाले चुप हो गए।
समय पर लड़की ने सुंदर से पुत्र रत्न को ज़न्म दिया। लड़का बड़ा हुआ ,अपनी माँ की देखभाल करने लगा। लड़का पढ़ाई में होशियार था ,अच्छे से पढ़ लिखकर बढ़िया सी नौकरी में लग गया। अब वह पच्चीस-छब्बीस वर्ष का लड़का मॉं की अच्छे से देखभाल कर रहा था। मॉं उसी के साथ रहती थी ,उसे ससुराल के कष्टों से मुक्ति मिली।
वह एक रात उसका सौभाग्य था या दुर्भाग्य ? पति के हाथों छली गई पर बेटे से मान सम्मान मिला।
यदि पुत्री पैदा होती तो भी क्या ऐसा ही होता ? बात पहले की है आज की नहीं। आज का ज़माना पलट गया जहाँ कन्या स्वावलंबी होकर अपने पैरों पर खड़ी हैं, अपना मान सम्मान ख़ुद अर्जित कर रही हैं।
