एक प्यार ऐसा भी
एक प्यार ऐसा भी
हर वर्ष नवरात्रि में रूपा कन्या पूजन करती थी। इस बार भी अष्टमी के दिन वह कन्या पूजन संपन्न कर शाम में दुर्गा मां के दर्शन करने जा रही थी। रास्ते में सिग्नल पर उसकी गाड़ी रुकी तो कार की खिड़की के कांच पर ठक_ ठक कीआवाज आई। उसने देखा एक लगभग पांच छ साल की लड़की उससे इशारे में पैसे मांग रही थी। उसने सोचा यह अच्छा मौका है पुण्य कमाने का। आज कन्या पूजन है इसकी भी मदद करके मैं कुछ पुण्य कमा लूं। अपने पास रखें मिठाई के डिब्बे से मिठाई निकालकर उसे देना चाहा पर उसने तो लेने से इनकार कर दिया। उमा ने उससे पूछा_" क्या तुम्हें मिठाई अच्छी नहीं लगती"? उसने उत्तर दिया _"मुझे अभी भूख नहीं है। आप मुझे कुछ पैसे दे दो"।
पर पैसे क्यों ? ये पैसे मैं अपने बापू को देना चाहती हूं। अच्छा तो तुम अपने बाबू से बहुत प्यार करती हो ?अरे ,नहीं _नहीं प्यार तो मैं सिर्फ अपनी मां से करती हूं। बापू तो रोज शराब पीकर मेरी मां को मारते हैं और अगर उनके पास शराब के पैसे न हो तो उस दिन तो वो मां से बहुत झगड़ा करते हैं और बुरी तरह से उसे पीटते हैं। आज मैं यह पैसे उन्हें दे दूंगी तो वह नशे में मां को शायद नहीं मारेंगे। उसकी बात सुनकर उमा को आगे कुछ उससे पूछने की हिम्मत न हुई। उसने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी हथेली पर रख दिए।