एक परिवार ऐसा भी
एक परिवार ऐसा भी
मैं परिवार की प्यासी थी, पर ये महामारी शायद मेरी तकदीर बदलने ही आई थी, आप हंसिए मत..आप क्या जानें ये अभागन एक नर्क सी ज़िस्त जी रही थी। गरीब घर की बेटी हूँ, बीस साल की उम्र में ब्याह दी गई थी। ससुराल में सबसे बड़ी, बड़ा परिवार घर काम की सारी ज़िम्मेदारी मेरे सर पर। सास-ससुर दो देवर और दो ननंद, पति और मुझे मिलाकर आठ लोगों का परिवार। हर कोई गैरजिम्मेदार ये घर नहीं कैद कहूँ या जहन्नुम यही था मेरा एकमात्र आशियाना था, मेरा और कोई ठौर ठिकाना नहीं था। न इस घर से निकलकर कहीं जा सकती थी। ज़िंदगी जी नहीं रही उम्र काट रही थी।
घर के हालात बद से बदतर है सास-ससुर के स्वभाव का पूछो ही मत उपर से दोनों बिमार, ससुर जी की छोटी सी किराने की दुकान थी उम्र के चलते अब वो घर पर ही है, अब इसी दुकान में तीन लोग बैठते है, मेरे पति और दो देवर। आज के ज़माने में हर कोई ऑनलाइन शोपिंग कर लेते है और बड़े-बड़े मौल के आगे छोटी सी हाट की क्या बिसात। उपर से घर की जिम्मेदारी और आर्थिक तंगी के चलते पतिदेव का स्वभाव कुत्ते से भी गया गुज़रा हो गया, बात-बात पर सारा खुन्नस मुझ पर निकालना जैसे उनकी आदत बन गई थी। दो ननद को सासु माँ ने सर चढ़ा रखा था, एक चौबीस साल की और दूसरी अट्ठाईस की हो गई फिर भी कोई ले जाने वाला नहीं मिल रहा। दो निकम्मे देवर ना पढ़े लिखे ना कोई नौकरी कर रहे। इन सबके चलते अजय यानी की मेरे पति को दारु की लत लग गई। अब तो रोज़ पीकर आते और भड़ास के तौर पर कभी मेरे गाल पर तो कभी पीठ पर थप्पड़ या लात पड़ जाती। एक परिवार ऐसा भी हो सकता है।
मैं ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी बस दसवीं तक पढ़ी थी पर पढ़ने में होशियार थी। और ज्ञान की धनी तो आसपास के बच्चों को पढ़ा कर थोड़ा बहुत कमा लेती थी। इतने में कोरोना के चलते लाॅक डाउन लग गया। किराने की दुकान बंद हो गई खाने के लाले पड़ गए। इतने लोगों का गुज़रा मुश्किल हो गया। अजय मायूस हो गए, एक दिन मेरी गोद में सर रखकर रोते हुए बोले पूजा चलो खुदकुशी कर लेते है, ऐसी ज़िंदगी से तो मौत अच्छी। कभी अपनी भावनाएं मेरे साथ नहीं बांटने वाला इंसान आज छोटे बच्चे सा रोते हुए टूटकर मेरे सामने बिखर गया। जैसा भी था मेरा पति था, इस मुश्किल समय में कैसे अकेला छोड़ देती। आज तक पाई-पाई जोड़कर मैंने पचास हज़ार रुपये इसलिए जोड़े थे कि ननदों की अचानक शादी करनी पड़ी तो काम आएंगे, कुछ घर खर्च से बचाती तो कभी मायके से कोई आता तो हाथ में दे जाता, और जो मैं ट्यूशन पढ़ाती थी उसमें से बचाया था। मैं खड़ी हुई और संदूक में साड़ी के नीचे छुपाकर रखे पैसे निकाल कर इनकी हथेली पर रख दिए। और कहा लीजिए कुछ दिनों का जुगाड़ है मेरे पास आप चिंता ना करें सब ठीक हो जाएगा।
उनकी आँखों में आँसू आ गए, मुझे गले लगाते बोले पूजा तुम देवी हो, मेरे घर की लक्ष्मी हो। मैं ज़िंदगी की आपाधापी से हारा तुम्हारे उपर अत्याचार करता रहा और तुम चुपचाप सहती रही मुझे माफ़ कर दो। कितना प्रताड़ित किया तुम्हें तुम फिर भी आज मेरा संबल बनकर खड़ी हो। आज के बाद मेरा सारा वक्त तुम्हारा, मेरे सारे सपने तुम्हारे तुम साथ हो तो मैं ज़िंदगी की हर चुनौतियों से लड़ सकता हूँ। और मेरे भाल पर अपने अधर रखकर अजय ने एक वादा रख दिया की आज के बाद मेरी पूजा तुम हो। कहिए और मुझे क्या चाहिए?
अब अजय ने एक नौकरी ढूँढ ली है भले सिर्फ़ दस हज़ार की है। अब उनकी शराब की आदत छूट गई है, सबका गुस्सा मुझ पर निकालते मारना, पिटना बंद हो गया है घरवालों के दमन पर मेरा पक्ष लेकर मुझे रक्ष रहे है मेरी नींव अब मजबूत हो गई है। अब दोनों ननदें भी समझ गई घर बैठे कढ़ाई बुनाई का काम करके अपने खर्चे निकाल रही है। और दोनों देवरों ने भी छोटा-मोटा काम ढूँढ लिया है। धीरे-धीरे जहन्नुम घर में तब्दील हो रहा है, सास-ससुर को मेरी कद्र होने लगी है। तो कहिए ये महामारी मेरे लिए ही आई की नहीं? अब अजय की पनाह में ज़िंदगी जी रही हूँ आनेवाले कल के सपने आँखों में भरे। अब मुझे मेरा परिवार मिल गया है। अनमनी सही पर महामारी ने मेरी ज़िंदगी संवार दी है।