एक परिचय ऐसा भी
एक परिचय ऐसा भी
एक परिचय ऐसा भी मैं अपने लेखन को हमेशा सकारात्मक रखने का प्रयास करता हूँ। एक सज्जन का अभी लिखा जा रहा यह अनाम परिचय इसका अपवाद है।
वास्तव में अपनी स्वास्थ्यवर्धक दिनचर्या में, मैं एवं रचना (मेरी पत्नी) कई वर्षों से प्रतिदिन प्रातः काल, तुलसी की पाँच पत्तियों का खाली पेट सेवन किया करते हैं। जब कभी हमारे गमले में तुलसी का पौधा छोटा होता है तब मैं अपनी सोसाइटी में लगी तुलसी से अपने भ्रमण के बाद, दो तीन दिन में एक बार तुलसी की कुछ पत्तियाँ तोड़ कर घर लाता हूँ।
आठ दिन पूर्व ऐसी ही वॉक के बाद, जब मैं तुलसी के पौधों से पत्तियां तोड़ रहा था तब एक सज्जन जो कि मेरे ही समवयस्क हैं, ने मुझे संबोधित करते हुए कहा -
हैलो सर, आप पौधों से पत्तियां खींच कर नहीं तोड़ा करें।
चूंकि मैं पौधे से धैर्य सहित एक एक पत्ती तोड़ा करता हूँ। अतः मैंने इसके उत्तर में कहना चाहा था - सर, मैं तुलसी के पौधों को खींच कर पत्तियां नहीं तोड़ता हूँ।
मैं यह कह नहीं पाया था। मेरे मुँह से पहला शब्द ही निकला था कि उन्होंने इस बार मुझे रोकते हुए इंग्लिश में कहा -
वी आर सपोज्ड टू मेंटेन ब्यूटी इन अवर सोसाइटी। आई डोंट वांट एनी एक्सप्लनेशन फॉर दैट, प्लीज।
यह कह कर वे आगे बढ़ गए थे। उनका इस तरह से एकतरफा कहा जाना मुझे व्यथित कर गया था। अगर उन्होंने मुझे बात विशेष के लिए आगाह किया था तो उन्हें मेरी इस पर सफाई भी सुन लेनी चाहिए थी। उनका ऐसा नहीं करने से मुझे अपमान अनुभव हुआ था।
मैंने आवश्यक पत्तियां तोड़ीं थीं। तदुपरांत व्यथित हृदय, घर की ओर पग बढ़ाते हुए मैं सोच रहा था कि एक चर्चित व्यक्ति ने कुछ वर्ष पहले कहा था -
हमें कभी कभी अपना अपमान भी सहन कर लेना चाहिए।
यह विचार करने पर भी मुझे अपमान सहन करने में, कुछ और मिनट लग गए थे। मैंने घर आकर यह बात रचना से भी नहीं कही थी कि क्यों उन्हें भी यह बता कर दुखी करूं।
उन सज्जन और मेरी सोसाइटी एक ही है। इसके तीन चार दिन बाद भ्रमण में मुझे वह सज्जन पुनः सामने से आते दिखाई दिए थे। इस बार वे, मेरे एक ऐसे परिचित व्यक्ति के साथ थे जिनसे मेरा परस्पर हाथ जोड़कर अभिवादन का आदान-प्रदान होता है। उनसे मेरी कभी कभी कुछ शब्दों की बातचीत भी हो जाती है। मैंने हाथ जोड़कर उनसे नमस्कार किया था। तत्पश्चात मैं उन सज्जन से भी नमस्कार करना चाहता था मगर मैंने, उन्हें मेरे से दृष्टि चुराते हुए अनुभव किया था।
उस दिन मैं आगे बढ़ जाने पर मैं सोच रहा था, यह सोसाइटी मेरे लिए भी उतनी ही अपनी है जितनी उन सज्जन के लिए है। इस सोसाइटी में मैं और मेरी दो बेटियों का परिवार, 3 अलग अलग फ्लैट्स में रहते हैं। अगर इन सज्जन को इस सोसाइटी की सुंदरता एवं व्यवस्थाओं से प्यार है तो उतना ही मुझे भी इससे लगाव है।
मेरे मन में प्रश्न आया था, क्या कारण है कि उस दिन, इन सज्जन ने मुझसे इस तरह से डोमिनेटिंग होकर बात की थी?
उस दिन मैं सोच रहा था, कई बार अकारण ही कोई अपरिचित व्यक्ति हमें अच्छा नहीं लगता है। यह एक तरह की केमेस्ट्री होती है जो आपस में मैच नहीं होने से, किसी को कोई व्यक्ति पसंद नहीं आता है। फिर मेरे मन से यह बात आई गई हुई थी।
सोसाइटी एक छोटी सी दुनिया है। इसके निवासी चाहें या नहीं चाहें मगर उनका आपस में आमना सामना तो होता ही रहना है।
आज भ्रमण में वे मुझे फिर दिखे थे। वे दो अन्य लोगों से किसी चर्चा में थे। उनका ध्यान या तो मेरी ओर गया नहीं था या फिर उन्होंने मुझे देख कर अनदेखा किया था।
मुझे उनके दर्शन से पुनः उस दिन का कटु प्रसंग स्मरण आ आया था। मैं सोच रहा था, उनकी जगह मैं होता तो मैं कभी ऐसा दर्शन नहीं बनना चाहता जो किसी के मन में कटुता उत्पन्न करे।
इस आलेख में यह नकारात्मक घटना लिखने का आशय यही है कि मैं ही नहीं आप सभी को भी ऐसा दर्शन नहीं बनना चाहिए। ‘हमारा दर्शन देना’ किसी को प्रिय भले नहीं लगे मगर ऐसा अप्रिय भी न लगे, ऐसे हमारे व्यवहार एवं कर्म होने चाहिए।
उन सज्जन से अगर मेरी कभी बात हुई तो मैं उनसे सादर नमन अवश्य करूँगा। ताकि उनके मन में मेरे लिए कोई चिढ़ हो तो वह दूर हो जाए। साथ ही मैं इस बात से अलग उनमें कोई अच्छाई (गुण) देखने का प्रयास करूँगा जिससे उनके दर्शन से मुझे उनकी वह अच्छाई स्मरण आने लगे।
आखिर हमें साथ इस सोसाइटी में ही रहना है। फिर हमें यह भी तो पता नहीं कि हम कब तक इस छोटी सी दुनिया में हैं।
तुलसी की पत्तियाँ उसके औषधीय गुणों के लिए सेवन की जाती है। दुनिया में अनेक व्यक्ति हैं जो “औषधीय दान” करके उससे पुण्य अर्जित करना चाहते हैं।
