एक पाती

एक पाती

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अरुण और वरुण के पापा,

जिन्दगी में कभी आपको पत्र नहीं लिखा। कभी जरुरत ही महसूस नहीं हुई। जब भी मन की बातें कहने का मन हुआ आपको अपने आस पास ही पाया। आज शादी के ४० बरस पूरे होने पर न जाने क्यों आपको एक पत्र लिखने की जरुरत महसूस हो रही है। आप तो मेरी जिन्दगी से चुपचाप ऐसे चले गए कि मुझे कुछ सोचने और समझने का मौका ही नहीं मिल पाया। मेरे मन को तसल्ली इसी बात कि रही कि आप अपने दोनों बेटों के बच्चों को अपनी गोद में खिलाने का अरमान पूरा कर गए। उस वक्त हिम्मत कर मैंने अपने मन को जैसे तैसे मनाकर तुम्हारे बिना भी जीना सीख लिया।

पर आज मुझे महसूस हो रहा है कि आप कुछ जल्दी ही चले गए। आपके जाने के बाद हमारें दोनों बेटों के खुशहाल परिवार के संग मुझे खुश देखकर नाते रिश्तेदार कहा करते थे कि मैं बहुत ही भाग्यशाली हूं जो मेरे दोनों बेटे साथ ही रहते हैं। सच कहूं अरुण के पापा ! उस वक्त मेरी आंखें खुशी से छलछला जाती थी पर फिर पता नहीं मेरे परिवार को लोगों की नजर लग गई या फिर बदलते जमाने का रंग। दो साल हुए वरुण अपने बीवी बच्चों के संग अलग रहने चला गया। मुझे बहुत दुख हुआ पर बाद में इस बारें में और सोचा तो लगा ठीक ही हुआ जो वह अलग रहने चला गया। आपकी पढ़ी लिखी दोनों बहुओं की आपसी तकरार और कानाफूसी धीरे धीरे झगड़े का स्वरूप लेने लगी थी। मैं परेशान हो चली थी। मुझसे किसी बात में बीच में बोलने का हक़ तो जैसे आपके जाने के बाद से ही छीन लिया गया था। बस एक मूक दर्शक बनकर मुझे सब कुछ देखना और सहना होता था।

वरुण के अलग होने के बाद मेरे दो महीने तो अरुण के यहां आराम से गुजरे। मैं यह समझ रही थी कि मेरी बड़ी बहू छोटी की तुलना में थोड़ी समझदार और व्यावहारिक है पर उस दिन मैं गलत साबित हो गई जब सुबह-सुबह अरुण ने मुझे साफ शब्दों में वरुण के यहां दो महीने के लिए रहने जाने को कहा। मुझसे किसी ने मेरी इच्छा जानने की दरकार ही नहीं की। मैंने जब कुछ बोलना चाहा तो बहू ने रिश्तों के फर्ज और कर्ज की दुहाई देते हुए मेरा बंटवारा करके ही दम लिया। मैं वरुण के घर पहुंचा दी गई।

आपके रहते जब जब किराये का मकान खाली करना पड़ता था तो सबसे ज्यादा दिक्कत मुझे ही होती थी। कई बार तो मैं आपसे इस बात को लेकर लड़ भी पड़ती थी और अपना एक मकान खरीद लेने को कहती थी। तब आप ही मुझे समझाते थे कि अरुण और वरुण अच्छी तरह से पढ़ लिख जायेंगे तो अपना खुद का मकान भी आ जाएगा। बस फिर आपने अपनी कमाई का अच्छा खासा हिस्सा और मैंने अपनी बचत के रूपये उनकी अच्छी पढ़ाई के लिए लगा दिए। अरुण जब नौकरी पर लगा और फिर उसने अपना मकान खरीदा तो लगा मेरा एक अधूरा रह गया सपना मेरे बेटे ने साकार कर दिखाया। हमारा भी एक अपना मकान हो गया और इसके साथ ही बार बार मकान बदलने की झंझट से भी मुक्ति मिल गई।

इसके बाद वर्षो बाद आज फिर एक बार घर छोड़ना पड़ा पर इस बार सब साथ कहां थे ? मैं अकेली ही थी। जिन्दगी भर एक या दूसरी तरह हर परिस्थिति से समाधान कर खुशी से अब तक की अपनी जिन्दगी पसार कर दी थी सो इस बार भी अरुण का घर छोड़ते हुए अपने मन से समाधान कर ही लिया। मैं कहां किसी और के घर जा रही थी ? अपने छोटे बेटे के यहां ही तो जाना था।

वरुण के पापा, सालभर से बारी बारी दो-दो महीने दोनों बेटों के घर रहकर एक बात आज अच्छी तरह से समझ आ गई कि यह मेरे बेटों का घर जरुर है पर इस घर में मेरे लिए कोई जगह ही नहीं है। मेरी जिन्दगी तो जैसे इन दो घरों के बीच उलझकर रह गई है। घर क्या है - बस एक आसरा है सर्दी, गर्मी और बरसात से बचने का। दोनों घरों में रोज एक ही दिनचर्या होती है। अरुण और वरुण तो सुबह जल्दी घर से निकल जाते हैं और देर रात को लौटते हैं। दोनों बहुएं शापिंग, पार्टी और उनकी सहेलियों के बीच मस्त रहती हैं। बच्चें जितना भी समय घर पर रहते हैं मोबाइल और टीवी से चिपके रहते हैं। मुझसे बोलने के लिए और मेरी बात सुनने के लिए अब यहां किसी को भी समय नहीं है। सबके साथ होकर भी मैं अकेली ही हूं।

कभी मैं सोचती हूं कि अपने दोनों बेटों की पढ़ाई में सारा रुपया न लगाकर कम से कम एक कमरें का छोटा सा मकान आपने समय रहते ले लिया होता तो आपके जाने के बाद शायद मुझे अपने बेटों के बीच बटीं हुई जिन्दगी नहीं जीना पड़ती। मैं भी आज अपने हिसाब से अपने घर में रहकर अपनी जिन्दगी जी पा रही होती।

जानती हूं यह सब आपसे कहकर अब कोई फायदा नहीं क्योंकि आप तो हो ही नहीं मुझे सुनने के लिए। फिर भी एक पत्र लिखकर अपना मन हल्का कर रही हूं । आज जब सारे रिश्ते फायदे और नुकसान के बीच उलझकर रह गए हैं तब ये कागज और पेन ही तो मेरी बात कहने का आसरा रह गए हैं। कम से कम ये सुन तो लेते है मुझे।

तुम्हारी ही

उर्मिला।


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