एक मुलाकात एक याद

एक मुलाकात एक याद

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अलार्म के बजते ही अलसायी सी अवनी ने आँख खोलने की जहमत उठाये बिना अंदाजे से उसे बंद कर दिया और फिर से कम्बल में दुबक गयी।

थोड़ी ही देर में उसके फोन की घंटी बजी।


"छुट्टी के दिन भी लोगों को चैन नहीं, ना खुद सोएंगे ना दूसरों को सोने देंगे..." गुस्से से झल्लाते हुए अवनी ने फोन उठाया।

दूसरी तरफ की आवाज़ सुनकर एक झटके में उसकी नींद गायब हो गयी।


"शिवि... तू सच में शिवि ही बोल रही है ना? किसी ने मज़ाक तो नहीं किया सुबह-सुबह।”


दूसरी तरफ से अपने चिर-परिचित अंदाज में खिलखिलाते हुए अवनी के बचपन की सहेली शिवानी ने कहा, "बिल्कुल नहीं मैडम, कोई मज़ाक नहीं है ये। मैं ही हूँ। तेरे शहर में आयी हूँ। जल्दी से अपने घर का पता बता। कितनी मुश्किल से फ़ेसबुक पर तेरे भाई को ढूँढ़कर तेरा नम्बर लिया। तुझे कितना ढूँढ़ा पर मिली ही नहीं।"


"वो मैंने बन्द कर रखा है अपना एकाउंट।" अवनी बोली।


घर का पता बताते और समझाते-समझाते ही अवनी ने मन ही मन पूरे दिन का कार्यक्रम तय कर लिया।

उत्साह में फोन बिस्तर पर फेंककर अवनी कमरे से जाने लगी तो अब तक उसे चुपचाप देख रहे उसके पति जय ने कहा, "अरे अभी तो तुम्हें नींद आ रही थी। किसका फोन आ गया जो मैडम का गुस्सा चेहरे की चमक में बदल गया?"


"अभी तो ये चमक और बढ़ जाएगी जब वो आ जायेगी।" अवनी बोली।


"ये तुम्हारी वहीं खास सहेली तो नहीं जिसके नाम के ताने तुम हमेशा मुझे देती हो कि मैं उस जैसा क्यों नहीं हूँ?" जय ने पूछा।


"हाँ ये वही है मेरी शिवि।" कहती हुई अवनी रसोई में चली गयी।


शिवानी की पसंद का नास्ता मेज पर सज चुका था लेकिन वो अब तक नहीं पहुँची थी।


"इतनी देर तो नहीं लगनी चाहिए थी, पता नहीं कहाँ रह गयी..." बेचैन-परेशान सी अवनी जैसे अपने-आप से ही बातें किये जा रही थी।


"अरे इधर से उधर टहलने की जगह एक बार फोन करके पूछ लो।" जय ने कहा।


"अरे हाँ ये तो मैंने सोचा ही नहीं, थैंक्स जय।” बोलते हुए अवनी ने शिवानी को फोन मिलाया लेकिन फोन नॉट रिचेबल था।


अवनी को कॉलेज का वो दिन याद आने लगा जब उसके जन्मदिन के एक दिन पहले शिवानी ने कहा था, "मैं तो नहीं आने वाली कल कॉलेज।"


और फिर गुस्से में अगले दिन अवनी भी कॉलेज नहीं गयी।


उधर शिवानी केक और ढ़ेर सारे तोहफों के साथ जब अवनी को सरप्राइज देने कॉलेज पहुँची और उसे अवनी के ना आने का पता चला तो उसका दिल जैसे रो पड़ा।


जिन सहपाठियों को वो सिर्फ चेहरे से जानती थी, वो सब भी आकर शिवानी पर हँस रहे थे और मज़ाक बनाते हुए कह रहे थे, "देखो-देखो, जिसके लिए इतनी तैयारी हुई वही गायब है। बेचारी शिवानी के प्यार की किसी को कद्र ही नहीं।"


किसी ने जुमला उछाला, "अरे मेरे लिए छोटी सी पेस्ट्री भी ले आती तो जान कदमों पर रख देते।"


केक और तोहफ़े कॉलेज के चपरासी को देकर गुस्से में पैर पटकती शिवानी घर चली गयी।


अगले दिन कॉलेज आने पर जब अवनी को सारी बात पता चली तो उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी।

उसने सोचा ही नहीं था कि शिवानी ने ना आने की बात मज़ाक में कही थी।

शिवानी की हँसी जितनी प्यारी थी उसका गुस्सा भी उतना ही खतरनाक था।


शिवानी के आने पर डरते-डरते अवनी उसके पास पहुँची और झूठ बोल दिया कि बीमार होने के कारण वो कल नहीं आयी थी।


बीमारी की बात सुनकर शिवानी का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ और उसने कहा, "अगले साल सेलिब्रेट कर लेंगे। चलो अब पढ़ाई में लगो, कम ही दिन रह गए है परीक्षा में।"


अवनी और शिवानी दोनों ने अच्छे नम्बरों से परीक्षा पास की।

शिवानी आगे पढ़ने के लिए बाहर चली गयी और दोनों का संपर्क टूट गया।


नौ वर्षों के बाद आज अवनी ने शिवानी की आवाज सुनी थी।

अवनी मन ही मन सोच रही थी, "हो न हो शिवि को पता चल गया है कि मैंने उसे झूठ कहा था कि जन्मदिन के दिन मैं बीमार थी, वो मुझसे उसी बात का बदला ले रही है, इसलिए नहीं आ रही है। वो चीजें रखकर भूल सकती है लेकिन बात कभी नहीं भूल सकती।"


अवनी की आँखों से आँसू बहने लगे थे। तभी अपनी आँखों पर किसी का स्पर्श पाकर अवनी ने नज़र उठायी तो सामने शिवानी खड़ी थी।

"ऐ पुष्पा, आई हेट टीयर्स रे।" कॉलेज के ज़माने का अपना पसंदीदा डायलॉग बोलते हुए शिवानी अवनी के गले लग चुकी थी।


थोड़ा संयत होने पर अवनी ने कहा, "इतनी देर कहाँ लगा दी? पता है मैं कबसे इंतज़ार कर रही हूँ और तुम्हारा पसंदीदा इडली-ढोकला भी।"


"अरे वाह इडली-ढोकला बना है, जल्दी परोसों पेट में चूहे कूद रहे है।" कहती हुई शिवानी डायनिंग टेबल पर आ चुकी थी।


"हाँ और अब तक किसी को नास्ता छूने नहीं दिया आपकी सहेली ने।" शिकायती लहजे में बोलता हुआ जय भी टेबल पर आ चुका था।


शरारती अंदाज में शिवानी ने भी कहा, "हाँ तो क्यों छूने देगी? जिसके लिए बना है पहले वो खाएगी और उसकी सहेली। फिर किसी और कि बारी।"


जय उठते हुए बोला, "ठीक है फिर हम चलते है। अपनी कोई पूछ ही नहीं तो।"


"अरे जीजू साली हूँ थोड़ा मज़ाक का हक बनता है ना।" शिवानी ने मुस्कुराते हुए कहा।


अब तक चुपचाप दोनों की बातें सुनती हुई अवनी बोली, "थोड़ा नहीं पूरा हक बनता है। चलो अब सब लोग खा लो पहले।"


अपना नास्ता खत्म करके जय ने कहा, "आप दोनों सहेलियां जश्न मनाइए। मैं चलता हूँ वरना खलल पड़ेगी।"


अवनी ने उसे रोकना चाहा तो जय प्यार से बोला, "कुछ वक्त सिर्फ दोस्तों का होता है, उसमें बँटवारा नहीं होना चाहिए।"


जय को दरवाजे तक छोड़कर जब अवनी आयी तो शिवानी ने एक पैकेट निकालकर उसे देते हुए कहा, "इसी के चक्कर में देर हो गयी। आधे रास्ते पहुँचकर याद आया की होटल में ही छोड़ दिया था इसे।"


"तुम्हारे भुलक्कड़पन की आदत नहीं जाएगी..." कहते हुए

अवनी ने पैकेट खोला तो उसमें शिवानी के बनाये हुए क्राफ्ट्स थे जो अवनी को बहुत पसंद थे।


अवनी हैरानी से बोली, "तुम्हें याद था कि मुझे तुम्हारी बनायी चीजें पसंद है?"


"बिल्कुल याद था। वैसे ही जैसे तुम्हें मेरा इडली-ढोकला याद था।" शिवानी बोली।


बातों-बातों में आज अवनी ने कॉलेज में जन्मदिन के दिन बीमार पड़ने वाली झूठी बात शिवानी को बता दी।


"देखो तुमने ही कहा था तुम नहीं आओगी इसलिए मैं गुस्से में नहीं आयी कि हर दिन आती है मैडम और मेरे जन्मदिन के दिन नहीं आना है बस।" अवनी ने सफ़ाई देते हुए कहा।


शिवानी अपना माथा पकड़कर बोली, "अरे बेवकूफ, मैं तो बस तुम्हें चिढ़ा रही थी ताकि सरप्राइज का मज़ा बढ़ जाए। मुझे क्या पता था कि तुम इतनी घोंचू हो कि मज़ाक भी नहीं समझोगी।"


ये सुनकर अवनी ने बहुत अफ़सोस से कहा, "सच में काश हमारे घर पास-पास होते या आज की तरह फोन होता तो मेरा केक, मेरे गिफ्ट्स चपरासी को नहीं मिलते।"


"चलो आज उस दिन की कमी पूरी करते है।" कहते हुए शिवानी केक निकालकर टेबल पर रख चुकी थी।

अवनी खुशी से चहकते हुए बोली, "एक साथ इतनी खुशी देकर तुम तो धड़कन बढ़ा रही हो मेरी। देखना अटैक न आ जाए।"


"कुछ नहीं होगा, चलो अब केक काटो।" शिवानी ने अवनी के हाथ में छुरी देते हुए कहा।


अवनी शिवानी का हाथ पकड़कर बोली, "हम दोनों काटेंगे और दोनों का जन्मदिन मनाएंगे।"

केक काटकर उससे एक-दूसरे के चेहरे पर कलाकारी करते हुए मानों दोनों सहेलियों का बचपन लौट आया था।


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