एक लघु कथा बचत
एक लघु कथा बचत
"ठहरो"
इस कड़कती हुई आवाज को सुनते ही हेमंत के मन की उड़ान और मोटरसाइकिल की गति दोनों को ब्रेक लग गये।
बाँध किनारे पीपल के पेड़ की ओट से दो साये निकल आये।
एक ने रिवाल्वर कनपटी से सटाया और दूसरे ने तीव्रता से उसकी सभी जेबें खाली कर ली।
कमेटी के तमाम पैसो समेत उस निर्दयी ने उसकी नन्ही परी की पायल भी निकाल ली जिसकी वजह से इतनी देर हुई थी।
जान की खैर मनाते हुए हेमंत ने ज्यों ही मोटरसाइकिल स्टार्ट की, एक फुला हुआ पर्स रौशनी से नहा गया। जो हड़बड़ी के कारण लुटेरों की जेब से गिर गया था।
हेमंत ने हार्न देकर पुकारा, ओ भाई साहब, आपका पर्स गिर गया।
लुटेरे हैरत में पड़ गये, हमने तुम्हारा सारा धन लूट लिया फिर भी? गजब आदमी हो ।
हेमंत मुस्करा उठा,, कोई गजब नहीं, सब कुछ ना लुटना तुम्हारे बस का नहीं, जो तुम लूट सकते थे लूट लिए, लेकिन मेरे पास और भी कई अनमोल चीजें है जिन्हें हम खुद बचा सकते हैं, मैं वही बचा रहा हूँ ।।
