एक हज़ारों में मेरी बहना है
एक हज़ारों में मेरी बहना है
"टीना तुमने राखी पर अपने भाई-भाभी को देने के लिए गिफ्ट्स ले लिए, तो मैं बिल बनवा लेता हूँ, देखो नंदिनी के लिए ये सूट कैसा लग रहा है"?
टीना ने बिना सूट की तरफ देखे हुए ही कह दिया, "अच्छा ही होगा आखिर अपनी प्यारी बहन के लिए ले रहे हो।" "कभी तो मूड अच्छा रखा करो...न जगह देखती हो ना माहौल बस शुरू हो जाती हो" अखिल ने झुंझलाते हुए कहा ।
घर आ कर अखिल जल्दी से नंदिनी के कमरे में गया पर नंदिनी वहां नहीं थी। उसने बेतहाशा पूरे घर में ढूंढ लिया पर नंदिनी का कहीं अता-पता नहीं था, तभी सामने से शीला काकी आती हुई नज़र आयी ।अखिल एकदम उनके पास पहुँच गया और अपनी बहन के बारे में पूछने लगा, शीला काकी ने उसके हाथ में एक खत और कुछ कागज़ पकड़ाते हुए कहा "बेटा अब मेरा इस घर में कोनो काम नहीं है, हम भी सोच रहे हैं, अपना सामान बाँध लें।" अखिल उनके हाथ से पत्र लेकर पढ़ने लगा और बोला "मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा की यह हो क्या रहा है।" पत्र नंदिनी ने लिखा था
मेरे प्यारे भैया या यूँ कहूं मेरे सब कुछ,
आपने मेरा दामन, दुनिया भर की ख़ुशियों से भरना चाहा पर कहीं ना कहीं मुझे लगने लगा था की मैं आपके और भाभी के रिश्ते में अड़चन बन रही हूँ। मैंने यही पास के दिव्यांग लोगों के आश्रम में अपना नाम लिखवा लिया है। मैं अगर आपको यह सब बताती तो आप मुझे कभी वहां नहीं जाने देते। इसलिए मैंने शीला काकी को यह पत्र दे दिया है, आप और भाभी हमेशा खुश रहना राखी पर यही दुआ करुँगी।"
आपके लिए
आपकी छोटी बहन
अखिल एकदम सदमे में आ गया और वहीं नंदिनी के कमरे में ज़मीन पर बैठ गया और अतीत की यादों में खो गया। नंदू जब सिर्फ पांच साल की थी, अखिल उससे दस साल बड़ा था। राखी पर उसके लिए उसके जैसी एक प्यारी सी गुड़िया लाया था।
उनके मम्मी-पापा कहीं बाहर गए हुए थे, आज पहुँचने वाले थे, तभी मम्मी-पापा की गाड़ी का हॉर्न बजा। नंदू गेट की तरफ भागी..."मम्मी देखो भैया मेरे लिए कितनी प्यारी गुड़िया लाये हैं, पापा देखो"।अखिल उसके पीछे भगा नंदू रुक, नंदू मम्मी-पापा को अंदर आने दे पर वो उसकी पकड़ से दूर भागती चली गयी और गाड़ी से टकरा गयी। पापा ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, इस चक्कर में उनकी गाड़ी सड़क पर लगे हुए बिजली के खम्बे से टकरा गयी। उन तीनों को जबरदस्त चोटे आयी। हॉस्पिटल में उनके मम्मी- पापा हमेशा के लिए उन मासूमों को छोड़ कर चले गए और "नंदिनी अब कभी चल नहीं पाएगी" कहते हुए डॉक्टर का भी गला भर आया, एक पल में सब कुछ उजड़ गया। अखिल इस सब का ज़िम्मेदार खुद को ठहराता था कि न उसने नंदिनी को गुड़िया दी होती, ना ही वो बाहर भागती, मम्मी-पापा को गुड़िया दिखाने। आज मम्मी-पापा भी उनके साथ होते और नंदिनी भी एक दम ठीक होती। मासूम अखिल के कन्धों पर तो अचानक से कितना वजन पड़ गया। ऐसे समय में रिश्तेदार भी मुंह मोड़ लेते हैं। एक बस शीला काकी ही थी जो दिन-रात इन बच्चों की सेवा में लगी रहती थी। अखिल को बिज़नेस की कोई समझ नहीं थी, नतीजा यह हुआ सारा बिज़नेस उसके चाचा-ताऊ ने हड़प लिया और उन बहन- भाई को सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया। शीला काकी उन्हें अपने घर ले गयी और अखिल से कह दिया "तू नंदिनी की बिलकुल चिंता मत कर।"
अखिल भी नंदू की तरफ से थोड़ा बेफिक्र हो, जहाँ जो काम मिल जाता कर लेता और घर में चार पैसे कमा कर लाता। शीला काकी की चार शादी-शुदा बेटियाँ थी। वो भी अपनी माँ की तकलीफ़ समझती थी और इन मासूमों के लिए भी जो भी उनसे बन पड़ता कर देती थी। नंदिनी के लिए अब शीला काकी और उसका भाई ही उसकी दुनिया थे। धीरे-धीरे अखिल ने अपना काम ठीक-ठाक जमा लिया। अब सब अखिल से शादी करने के लिए कहने लग गए थे, पर अखिल ने अपनी बहन की वजह से ज़िन्दगी भर कुँवारा रहने का फैसला कर लिया था। ऐसे ही कुछ साल और निकल गए अब नंदिनी भी अपने भाई को अकेला नहीं देखना चाहती थी, और वह भी रोज़-रोज़ अखिल से कहने लगी थी की "भैया-भाभी ले आओ, मेरी वजह से आप अपनी ज़िन्दगी मत ख़राब करो।" अखिल भी सबको कब तक मना करता परन्तु वो ही हुआ जिसका डर था, टीना को शुरू से ही नंदिनी का काम करना अखरता था। जैसे-तैसे अखिल के डर की वजह से वो नंदिनी का थोड़ा बहुत काम करती क्योंकि अब शीला की भी उम्र हो गयी थी, कुछ वो अपनी सूनी गोद की वजह से भी चिड़चिड़ी हो गयी थी। नंदिनी ने घर में बच्चों को संगीत सीखना शुरू कर दिया ताकि वो अपने भैया-भाभी पर ज़्यादा बोझ ना बने पर टीना को संगीत की आवाज़ से भी सख़्त नफरत होने लगी। रोज़- रोज़ घर में लड़ाइयाँ रहने लगी।
"अखिल...अखिल..खाना खा लो" टीना ने अखिल को हिलाते हुए कहा पर वो तो बिलकुल बेसुध सा पड़ा रहा, जैसे आज एक बार फिर उसकी ज़िन्दगी से रौशनी चली गयी हो। दो-तीन दिन से अखिल न किसी से कुछ बोला न ही अपने काम पर गया बस टीना के कमरे के एक कोने में बैठा हुआ रोता रहता था।
टीना को लगने लगा जैसे उसने अपने ही हाथों अपना परिवार उजाड़ दिया हो। बहन-भाई के रिश्ते में दरार बन कर आज उसे बहुत आत्मगलानी हो रही थी। राखी पर सुबह- सुबह अचानक से अखिल के कानों में आवाज़ आयी "भैया कहाँ हो, कहाँ हो भैया" अखिल लड़खड़ाते हुए बाहर आया। टीना नंदिनी की व्हील चेयर पकड़ कर खड़ी थी।अखिल ने कस कर उसे गले लगा लिया, जैसे उसकी सांस कहीं अटक गयी थी वो वापिस आयी हो। टीना ने अखिल और नन्दिनी से माफ़ी मांगते हुए कहा "मुझे माफ़ कर दो, मैंने तुम दोनों के अटूट रिश्ते को समझा ही नहीं ।आज से नंदिनी मेरी नन्द नहीं मेरी बेटी है।" शीला काकी ने सबको बहुत आशीर्वाद दिया तभी अखिल ने नंदिनी को सूट देते हुए पूछा "देख मैं तेरे लिए लाया था, कैसा लगा"? नंदिनी ने आँसू पोंछते हुए कहा "भैया आप ही मेरा सबसे बड़ा गिफ्ट हो, जिसे आज भाभी ने मुझे लौटा दिया है।" अखिल ने उसके सर पर मारते हुए कहा "पगली आगे से कहीं गई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा," आज उनका आंगन एक बार फिर भाई-बहन के प्यार से महक उठा था।