एक ग़लत कदम

एक ग़लत कदम

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सौम्या यही नाम था उसका, हमारे पड़ोस में रहने वाले तिवारी जी की बेटी थी। आज उसे घर लाया जा रहा था, कहां से ? कहीं बाहर गई थी क्या सौम्या ? हां, पिछले कई दिनों से दिखी भी नहीं थी।

मैंने पूछा भी था,तो टाल-मटोल वाला जबाव मिला था, लेकिन आज सारी कहानी सामने थी। आठवीं में ही पढ़ती थी सौम्या! बड़ी चुलबुली और प्यारी बच्ची थी।

सुंदर भी इतनी कि देख कर मन नहीं भरता था। बस यही बात उसकी दुश्मन बन गई। पता नहीं किसने उसे बरगलाया या फुसलाया कि कच्ची उम्र में वह प्रेम के सपने देखने लग गई। पढ़ाई से उसका ध्यान हट गया। आप सोच रहे होंगे कि मुझे यह कैसे पता ?मैं सौम्या के स्कूल में ही टीचर थी। उसे पढ़ाती तो नहीं थी,पर हम शिक्षक जब एक साथ लंच वगैरह करने बैठते तब उसकी क्लासटीचर जरूर मुझसे उसके बारे में डिस्कस करती थी।

यह बात मैंने तिवारी जी से भी कहीं थी ,पर उन्होंने अनसुनी कर दी। आखिर उन्हें अपने बिजनेस और उनकी मिसेज को किटी पार्टी से फुर्सत ही कहां थी ?

और फिर सौम्या लापता हो गई, बहुत पूछ-ताछ की गई सौम्या के बारे में..पर तिवारी जी ने पैसे का जोर दिखाकर पुलिस वालों को भी चुप कर दिया, लेकिन ऐसी बातें छुपती है भला ?

उड़ती-उड़ती खबर हर जगह थी कि सौम्या किसी के संग भाग गई..बदनामी के डर से इस बात को खूब दबाया गया। पर मुझे पूरा भरोसा था कि सौम्या किसी मुसीबत में घिर गई है और आज सौम्या घर आ रही है।

उससे मिलने की बड़ी इच्छा थी। वह मासूम बच्ची जब गाड़ी से उतरी तो उसकी स्थिति उसका दर्द बयान कर रही थी। उसने एक नजर उठा कर मुझे देखा.. आंखों में आंसू छलक रहे थे,ऐसा लग रहा था कि वह न जाने कबसे रो रही होगी! चेहरे पर चोट के निशान भी स्पष्ट दिख रहे थे। तिवारी जी उसे लेकर घर के अंदर चले गए। मेरा मन उससे मिलने को बेताब था। लेकिन कैसे ?

कुछ दिन और निकल गए.. सौम्या स्कूल भी नहीं आई..घर से बाहर भी नहीं निकली,एक अजीब सा सन्नाटा उनके घर पसरा था,आखिर मन नहीं माना और मैं उनके घर चली गई..आप यहां कैसे ?क्या कुछ काम था!सौम्या की मम्मी पूछ बैठी।

जी ! स्कूल में सभी सौम्या के बारे में पूछ रहे हैं,आप उसे स्कूल भेजिए। आखिर ऐसी क्या परेशानी है ?अगर कुछ हुआ भी है तो उसे बदलने की कोशिश कीजिए। इस तरह तो बच्ची घुट जाएगी।

सौम्या की मम्मी मेरी बातों को सुनकर स्तब्ध रह गई-क्या आपको पता है ?

नहीं!पर ऐसी बातें छुपती नहीं। अगर आप अपनी बच्ची से प्यार करती है तो उसका सपोर्ट सिस्टम बनिए ,नकि उसे जिंदगी से दूर एक कैद भरी जिंदगी जीने को मजबूर कीजिए।

सौम्या की मम्मी फूट-फूटकर रोने लगी। मैंने उनके आंसू पोंछे और हिम्मत से काम लेने को कहा और सौम्या से मिलने की इच्छा प्रकट की।

उन्होंने एक कमरे की और इशारा किया। मैं कमरे में पहुंची। सिकुड़ी-सिमटी सौम्या बिस्तर पर डली थी,जैसे बरसों से बीमार हो,ऐसा लग रहा था कि कोई गुबार उसके मन से उमड़ने को बेताब था। सौम्या!बेटा मैं

आई हूं,उठो जरा, बात करनी है तुमसे !

वह उठी.. आंखों के नीचे स्याह घेरे,पलकें सूजी हुई,होठ़ सूखे हुए,उलझे बाल,डर से कुम्हलाया मुख। देखकर दिल दहल उठा।

ये क्या हाल बना रखा है तुमने,देखा है अपने को आइने में,सब तुम्हारे बारे में पूछते हैं स्कूल में,पढ़ना नहीं है क्या आगे ?

आंटी !साॅरी मैम!मेरी कोई गलती नहीं थी। बस मैं भटक गई थी और एक अनजान डगर पर चली गई थी। कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगी।

रो लो बेटा!जब शांत हो जाए मन तो बताना कि तुम्हारे साथ क्या हुआ ? 

मैम!वह स्कूल के रास्ते में रोज मिलता था। बस मुझे एकटक देखता रहता,मुझे बहुत अच्छा लगता था,सब मुझे सुंदर जो कहते थे। बस यही मेरी गलती है कि मैं उसके आकर्षण में बंधती चली गई। वह मुझसे मीठी-मीठी बातें करने लगा। मुझे नहीं पता था कि दुनिया कितनी खराब है, मैं उसकी बातों में उलझती चली गई,हम रोज मिलते,वह कहता कि दुनिया बहुत सुंदर है और तुम इस दुनिया को अपनी सुन्दरता से जीत सकती हो। तुम कुछ नया करो। मुझे नहीं पता था ,पर शायद उसने भांप लिया था कि मुझे कैसी बातें सुनना पसंद है। और फिर एक दिन उसने कहा कि यहां क्या रखा है तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें इस खूबसूरत दुनिया की सैर कराऊंगा।

बहक गई थी मैं,उसके कहने पर घर में चोरी की,खूब सारे पैसे और कपड़े बैग में भरकर उसके साथ निकल गई "अनजान डगर"पर। वह मुझे यहां-वहां घुमाता रहा। उसने मेरे साथ जबरदस्ती की। मेरे पास कोई चारा नहीं था। उसकी बातों को मानने के अलावा। घर पर फोन करने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि मम्मी-पापा शायद मेरी बात नहीं समझते और फिर एक दिन हमारे पैसे खत्म हो गए। उस रात को हम भूखे ही सो गए थे । रात के बारह बजे वह कुछ खाना और कोल्डड्रिंक लेकर आया। मैंने पूछा -इतनी रात को ये सब!'हां मुझे भूख के कारण नींद नहीं आ रही थी सो होटल वाले से उधार ले आया। 'उसने जबाव दिया। हमेशा की तरह उस पर विश्वास कर लिया। लेकिन मुझपर बेहोशी छा रही थी। फिर मैंने महसूस किया कि पूरी रात मेरे साथ दरिंदगी का खेल खेला गया। मैं बेजान लाश सी पड़ी थी। सुबह उठा ही नहीं जा रहा था। मैंने उससे पूछा-क्या हुआ रात मेरे साथ ?इतना दर्द क्यों ?

वह कुटिलता से हंसा और चला गया। मैं दर्द से तड़पती बिस्तर पर डली थी,तभी एक हट्टा-कट्टा मर्द कमरे में घुसा। उसे देख मैं चीखी। उसे आवाज लगाई। पर वह न आया। मैंने विरोध करने की बहुत कोशिश की,पर हार गई। फिर तो यह सिलसिला ऐसा चला कि मैं बिस्तर से ही लग गई,वह दिन में दो-तीन लोगों को ले आता, पैसे गिनकर जेब में रखता और मुझे उनके हवाले कर देता। मनचाहे तरीके से वे मेरे शरीर को नोंचते-खसोटते। उस दिन मैंने हिम्मत करके उससे पूछ ही लिया-ये है तुम्हारा प्यार,तुम्हारे ऊपर भरोसा करके, तुम्हारा हाथ थाम कर मैं इस अनजान डगर पर चली आई और तुमने मुझे वेश्या बना दिया। ऐसा क्यों किया ?

वह कुटिलता से हंसा। प्यार !मैं इसमें विश्वास नहीं रखता। इससे पेट नहीं भरता,उसके लिए पैसा चाहिए और पैसा कमाने का ये आसान उपाय है। चुपचाप वही कर जो मैं कहूं। नहीं तो बेच दूंगा तुझे कोठे पर। समझ ले यही मेरा प्यार है कि तू अभी तक यहां है,ऐसी न जाने कितनी अभी तक कोठे पर पहुंच गई है और गुमनामी की ज़िंदगी जी रही हैं। जितना खुश होके तू ये सब करेगी, उतना ही पैसा ज्यादा मिलेगा। देख तेरी सुंदरता के सही दाम लगवा दिए मैंने, ये रख पैसा कस्टमर आने को है ,टिपटाप हो जा।

मैं पत्थर बन गई थी। अब तो घर वापस आने का भी कोई फायदा नहीं था। मां-बाप को तो शायद इज्जत ज्यादा प्यारी थी ,सो उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं कराई थी शायद। यही सोच हथियार डाल दिए। वह मेरा भरपूर उपयोग कर रहा था। अब वह मुझे कस्टमर के साथ बाहर भी भेज देता। उसी चक्कर में होटल पर पड़ी रेड में , मैं पुलिस वालों के हाथ लग गई, उन्होंने मुझसे सब पूछा तो मैने बता दिया। तब मम्मी-पापा को बुलाकर उन्हें सौंप दिया गया। पता नहीं कितने लोगों ने मेरी आत्मा

को कुचला आंटी! कहते-कहते वह मेरे गले लग गई। मिसेज तिवारी यह सब बाहर खड़ी सुन रही थी ,बेटी की दर्द भरी दास्तान ने उनकी रूह को झिंझोड़ कर रख दिया। दौड़कर अंदर आई-मेरी बच्ची!माफ़ कर दे। तू इस मुसीबत में हमारे कारण फंसी। यदि हमने तुझे इन अनजान खतरों से वाकिफ कराया होता या तेरा भरोसा जीता होता तो तुझे ये कष्ट न झेलना पड़ता। न तू उस अजनबी के फेर में पड़ती और न उसका हाथ पकड़ कर अनजान रास्ते पर चली जाती। सब मेरी गलती है बेटा।

मां-बेटी फूट-फूटकर रो रहीं थी। थोड़ी देर बाद सब शांत हुआ।

देखिए !मुझे आपसे यही कहना है कि आप इसके साथ हर कदम पर खड़ी रहें। इसकी मनोदशा को समझें, कोशिश करें कि वह उस दर्द या तकलीफ को जल्दी भूल जाए और फिर सेअपनी जिंदगी की शुरूआत कर सके। यह उस दर्द से जितनी जल्दी अनजान हो जाए, वही इसके लिए बेहतर है। बेटी मां की गोद में दुबकी हुई थी। और मां उसके दर्द को अपने आंचल में समेटरही थी। मैं आंखों मेंउम्मीद लिए वहां से चली आई थी। बस एक

सवाल मन को बैचेन कर रहा था-कि "ये अनजान रास्ते कब तक मासूम बेटियों की जिंदगी को जहन्नुम बनाते रहेंगे। "

(क्यों नहीं हम अपने बच्चों को इन खतरों से आगाह करतेहैं। बच्चों में तो दुनियादारी की समझ नहीं होती फिर दुनिया की भयावहता से उनका परिचय कराना और उन्हें सावधान रहने के लिए प्रेरित करना किसकी जिम्मेदारी है। क्या उनके व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों को मां-बाप को नहीं पहचानना चाहिए। काश, सौम्या की मां ने थोड़ा

समय सौम्या को दिया होता ? या उसे समझने का प्रयास किया होता तो ?


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