एक छुपी सच्चाई, उस माँ की
एक छुपी सच्चाई, उस माँ की
उस अनजान नम्बर से आज फिर फोने आया। टिशा ने भय से फोन नहीं उठाया। थोड़ी देर में फिर फ़ोन की घंटी बजी, वही अनजान नम्बर था। एक बार, दो बार लगातार बजा जा रहा था और टिशा परेशान हुई जा रही थी। दूसरे फोन से टिशा यश को फोन लगती है और बताती है वह अनजान नम्बर वाला फिर फ़ोन कर रहा है और आज तो वह लगातार ही फ़ोन कर रहा है। यश ने पूछा, तुमने बात की। टिशा बोली नहीं। दोनो के बात करते करते ही फ़ोन फिर बजा और वही फ़ोन था। यश ने कहा, "फ़ोन उठाओ और बात करो। पता तो चले क्या चाहता है। घबराओ नहीं वह कुछ नहीं कर सकता। "
टिशा ने फ़ोन उठाया और उसे लाउडस्पीकर पर रखा , उधर से आवाज़ आई, "मुझ से भाग कर कहाँ जाओगी। अगर मैंने उसे सब बता दिया तो वह कभी तुम्हें अपना नहीं मानेगा।" यश सब सुन रहा था। टिशा ने कहा, "क्या चाहते हो तुम। क़्यों परेशान कर रहे हो। तुम्हें तो हम जानते ही नहीं हैं।" वह कहता है, "इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है। मुझे तो बस क़ीमत चाहिए इस बात को उस तक नहीं पहुँचने देने की।" टिश बोली कैसी क़ीमत। वह कहता है, "पाँच करोड़, तुम्हारे लिए तो कुछ भी नहीं है ये, अरबों की मालकिन हो तुम।" टिशा चुप हो गई। चेहरे पर भय और आँखों में आँसु, अब उससे कुछ भी कहा नहींं जा रहा था। वह कहता है, "इंतज़ाम कर लेना और फोन काट देता है।"
टिशा और यश को शादी के दस सालों तक संतान का सुख नहीं मिला था। सब कुछ था उनके पास, नाम, पैसा किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं। अरबों का व्यापार था, देश विदेश में फैला हुआ। बस संतान की कमी इन दोनो को घुन की तरह अंदर ही अंदर खाई जा रही थी। बहुत इलाज कराया, देश में विदेश में, पानी की तरह पैसा बहाया दोनो ने पर सफलता नहीं मिली। हर मन्दिर, दरगाह, गुरुद्वारा, चर्च में इन्होंने याचना की थी संतान के लिए लेकिन टिशा की गोद हरी नहीं हुई।
इलाज के दौरान ये पता चला था की यश की कमी की वजह से टिशा के गर्भ में नन्ही जान अपना वजूद नहीं बना पा रही है। यश ने स्वयं का इलाज भी कराया पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। उस समय डॉक्टर ने सुझाव दिया था कि डोनर से शुक्राणु ले कर टिशा के गर्भ में डाल कर नई ज़िंदगी की लौ जलाई जा सकती है। परंतु टिशा और यश इसके लिए तैयार नहीं थे। देखते देखते उनकी शादी के तेरह साल निकल गए थे संतान के लिए प्रयास करते करते। जब कुछ नहीं हो पाया तो इन्होंने डोनर वाले रास्ते को अपनाने का फ़ैसला किया।
चूँकि यश का समाज में क़द काफ़ी ऊँचा था और ऐसे गर्भधारण को उस समय समाज में सहज मान्यता नहीं थी इसलिए विदेश जा कर डोनर के माध्यम से टिशा ने गर्भधारण किया।
टिशा ने माँ बनने की अदभूत ख़ुशी को महसूस किया। उन नौ महीनों का हर पल, हर दिन टिशा और यश के लिए एकदम ख़ास था। नौ महीने बाद तपन उनकी दुनिया में आया और सब कुछ एकदम से ही बदल गया। टिशा की ज़िंदगी तो तपन के चारों तरफ़ ही घूमती थी पर यश के भी सारे काम, अफिस-बिज़नेस सब तपन के जागने-सोने के अनुसार ही होने लगा था। ज़िंदगी अपनी तेज़ी से चलती रही और तपन अब पंद्रह वर्ष का हो गया है। ऐसे में एक दिन अचानक उस अनजान नम्बर से फोन आता है और वह पूरानी बातें छेड़ देता है, तपन का एक डोनर के माध्यम से टिशा और यश के जीवन में आना। दूसरी बार जब फोने किया तब वह तपन को यह बताने की बात कहता है की यश उसके पिता नहीं है, ये बात वह
तपन को बता देगा और उसे वह डी॰ एन॰ ए॰ टेस्ट भी कराने को कहेगा। साथ ही वह मीडिया में भी इस बात को फैला देगा। अब वह यह सब नहीं करने के पाँच करोड़ माँग रहा है।
टिशा थोड़े भय में है कि तपन को यदि ये सारी बात पता चलेंगी तो वह क्या करेगा, कहीं उसका हँसता-खेलता छोटा सा परिवार टूट तो नहीं जाएगा। आज के फ़ोन के बाद वह थोड़ी विचलित भी हुई। व्यथित टिशा घर के मंदिर में हाथ जोड़ कर चुप चाप बैठ जाती है। वह सोंचती है, पैसा दे भी दें तो क्या भरोसा कि वह व्यक्ति फिर मुँह नहीं खोलेगा। उसने यह भी सोंचा की तपन को ये बातें नहीं पता है इसलिए ही तो वह भय में है की क्या होगा, यदि सारी बातें, अच्छे से समझा कर तपन को बता दी जाएँ तो फिर कोई कुछ भी कहे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। अपने आप को दृढ़ करती हुई टिशा ने निश्च्य किया कि इस समस्या का निवारण करने के लिए वह अकेली ही काफ़ी है।
यश भी जल्दी ही घर आ गया था। टिशा ने यश से कहा की आज वह तपन को उसके पैदाइश की सारी बातें सच-सच और विस्तार से स्वयं बता देगी। वह अनजान व्यक्ति इसलिए डरा रहा है क्योंकि सच अभी छुपा हुआ है, जब कुछ छुपा ही नहीं होगा तो फिर डर कैसा रहेगा। यश ने भी बताया कि इस फोन नम्बर का पता करने के लिए उसने पुलिस की मदद ली है। जल्द ही उस फ़ोन वाले का भी पता चल जाएगा। समाज में अपने क़द की वजह से यश की पहचान शहर के हर बड़े महकमे वाले से थी।
शाम में टिशा ने तपन को अपनी शादी से लेकर तपन के आने तक की सारी कहानी सुनी। साथ ही ये भी बताया की इस बात को लेकर एक अनजान व्यक्ति उसे परेशान कर रहा है और इसे छुपाने के एवज़ में वह पाँच करोड़ रुपय माँग रहा है। तपन ने पूछा, "माँ ये बताओ क्या तुम्हें पता है कि वह डोनर कौन है।" टिशा ने बताया, "नहीं।अस्पताल इस बात को गुप्त रखता है और मुझे भी नहीं पता है।" बहुत ही मार्मिक समय था माँ, बेटा और पिता के लिए जब सारी सच्चाई बताई जा रही थी। बात ख़त्म होने पर तपन टिशा से कहता है "माँ तुम मेरी माँ हो और यश का हाथ पकड़ कर कहता है आप मेरे पिता, यही सच है। मेरे आने से पहले और आने के बाद का हर पल आपने मेरे लिए जिया है। मैंने भी आपको ही जाना है, जिसकी कोई पहचान ही नहीं उससे कैसा रिश्ता।"इसके साथ ही ये रात इन तीनों के लिए महत्वपूर्ण हो गई थी।
सुबह फिर फ़ोन आया, टिशा ने एक ही घंटी में उठा लिया और उसे पैसे के लिए मना कर दिया और उसे आगाह भी कर दिया की वह उसे छोड़ेगी नहीं। जब टिशा फोन पर बात कर रही थी तभी यश ने पुलिस को फ़ोन कर उस अनजान के फ़ोन आए होने की सूचना ड़े दी थी। आधे घंटे में पुलिस वाले यश को पुलिस स्टेशन आने को कहते है क्योंकि वह आदमी पकड़ लिए गया था। टिशा और यश पुलिस स्टेशन पहुँचते हैं। पूछताछ के दौरान वह आदमी बताता है की वह उस अस्पताल में काम करता था और वहाँ की फ़ाइलों से उसे चला था टिशा और यश के बच्चे के बारे में और फिर ये भी पता चल की ये बहुत ही अमीर हैं तो वह इसका फ़ायदा उठाना चाहता था। उसे डोनर के बारे में कुछ भी पता नहीं था।
अंततः सब ठीक हो गया और टिशा ने यह समझ लिया था की सच छुपाने से डर बनता है और अगर दृढ़त से उसे उजागर कर दिया जाए तो फिर कोई उसका फ़ायदा नहीं उठा सकता। साथ ही हर मुश्किल का सामना करने के लिए व्यक्ति स्वयं ही काफ़ी है अगर वह हिम्मत कर ले।