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Sony Tripathi

Romance

3  

Sony Tripathi

Romance

एक छोटी सी पहल

एक छोटी सी पहल

3 mins
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मैं रसोई घर में दोपहर के खाने की तैयारी कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी, मैं जल्दी जल्दी हाथ धुलकर पहुँची तो शिशिर का नाम देखकर जल्दी से फोन उठाया। उनकी खनकती आवाज सुनते ही मैं समझ गई कि लद्दाख की टिकट कन्फ़िर्म हो गई हैं। शिशिर ने फोन उठते ही बातों की झड़ी लगा दी। मोहतरमा खुश हो जाइये लद्दाख की फिजाओ में सैर के लिए, जल्दी जल्दी पैकिंग कर लो परसो कि टिकट बुक हो गई हैं, और हाँ स्वेटर व जैकेट अच्छे से पैक कर लेना वहाँ सर्दी बहुत पड़ती हैं। मोटर बाईक से पहाड़ों में घूमने का एक अलग ही मजा हैं। मैंने हँसते हुए कहा अरे बस बस जनाब घर आयेंगे या सारी बाते फोन पर ही करेंगे। यह सुनकर इन्होंने हँसते हुए शाम को मिलते हैं कहते हुए फोन रख दिया। मैंने जल्दी से सारे काम निपटा कर सामान की लिस्ट बनानी शुरू कर दी। तभी मुझे उस विडियो का खयाल आया जिसे मैंने कुछ दिनों पहले ही एक सोशल नेटवर्किंग साईट पर देखने के बाद अपने मित्रों के साथ साझा किया था। जिसमें बताया गया था कि किस तरह हम लोग जाने अनजाने प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहे हैं और कैसे प्रदूषण को रोकने में एवं पर्यावरण को बचाने मे अपना योगदान दे सकते हैं। यह सब याद आते ही मैंने अपनी मिलटन की पानी की बोतल धुल कर पैक कर ली ताकि बार बार वन टाईम प्लास्टिक, "बिसलेरी की बोतल न लेनी पडे़। कुछ कुछ बाते मुझे पहले से याद थी जैसे माहवारी के समय पहाड़ी प्रदेशों की सैर करने से बचना चाहिये क्यों कि बर्फ़ कि प्रेज़र्विन्ग गुण की वजह से ऐसा कूड़े का जल्दी विघटन नहीं हो पाता है और प्रदूषण का कारण बनता हैं। यह सोचकर ही मैंने शिशिर से इस समय पर टिकट बुक करवाने के लिए कहा था यद्यपि इस समय पर टिकट मिलना कठिन था पर शायद मेरी एक अच्छी पहल की वजह से हि टिकट मिल गए थे। मैंने चिप्स और बिसकिट के पैकेट के रैपर को रखने के लिए एक पेपर बैग रख लिया ताकि कूडे़ को नियत जगह फेंका जा सके। फिर मैंने अपने और शिशिर के कपडे़ पैक करना शुरू किए। बाकी जरूरी दवाइयों कि लिस्ट भी मैंने तैयार कर ली। इस तरह चेक लिस्ट की सहायता से मैंने पैकिंग शुरू की ताकि कुछ छूटने न पाए। शाम को जब शिशिर घर आए तो पैकिंग और लिस्ट देखकर बोले कि तुमने तो मेरे लिए कोई काम ही नहीं छोड़ा हैं। वाह क्या किस्मत हैं मेरी ऐसी बेगम नसीबों से मिलती हैं। मैंने कहा बस बस बहुत हो गए तारीफों के पुल, अच्छा आप बुरा न माने तो एक बात कहूं क्यों न हम लोग बूकिन्ग वाले से बात करके थोड़ी दूरी बाईक से तय करके होटल से किसी सहयात्री के साथ कार पुल कर ले इससे पैसे भी बचेंगे और प्रदूषण भी कम होगा। इन्हें घूरते हुए देखकर मैंने बुझते हुए कहा कि रहने दे अगर आपका मन नहीं है तो। इन्होंने खिलखिलाकर हँसते हुए कहा इतना दिमाग कहा से लाती हो मेरी "ग्रेटा थन्बर्ग " नेकी और पूछ पूछ कर। इसी बात पर गरमा गरम अदरख वाली चाय और प्याज के पकौडे़ मिल जाए तो शाम बन जाए। मैं हँसते हुए यह कहते हुए "जो हुक्म मेरे आका " रसोई की ओर चल दी।



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