एक छोटी सी फांस

एक छोटी सी फांस

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बड़ी सोच में उलझा हुआ था राहुल। कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे। 

अभी दो साल ही हुए हैं राहुल की शादी को, निर्मला के साथ। राहुल के परिवार में मां और पिता हैं । कोई बहन भाई नहीं है। राहुल की मां यानी मीना जी हमेशा से एक बेटी के लिए तरसती रही। इकलौते बेटे की धूमधाम से शादी करेंगे तो बहू के रूप में एक बेटी भी आ जाएगी, ये सोच मीना जी ने अपने दिल को समझा लिया था।

राहुल के लिए जब मीना जी और उनके पति राघव जी ने निर्मला को पसंद किया था तो उन्हें लगा था कि उनकी बरसों की ख्वाहिश पूरी होने वाली है। कोई कसर नहीं छोड़ी थी उन लोगों ने शादी में और ना ही लड़की वालों को परेशान किया था बल्कि शादी का खर्चा भी आधा आधा बांट लिया था।

फिर निर्मला ऐसा अजीब सा व्यवहार क्यों करती है, राहुल की समझ में नहीं आ रहा था। ऐसे प्रत्यक्ष रूप में तो वो कुछ नहीं कहती लेकिन किसी के आते ही उसका चढ़ा हुए मुंह सब कह जाता है। अब तो रिश्तेदार आने में कतराने लगे हैं। बड़ा अजीब सा ही व्यवहार उसका घर में भी रहता है। कभी तो मां के साथ अच्छे से रहती और कभी मुंह सा बनाए रखती। हालांकि कुछ गलत नहीं बोलती थी। ऐसा लगता है जैसे बोलना ही नहीं चाहती। 

मीना जी और राघव जी ने राहुल से कहा कि अब उन्हें अलग हो जाना चाहिए ताकि निर्मला भी खुश रह सके तो राहुल को ऐसा लगा कि मानो पिघला सीसा कानों में पड़ गया हो।

उसे एक बार तो उसे निर्मला पर बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर उसने खुद को शांत किया। राहुल शांत होकर शुरू से सोचना शुरू करता है। जब निर्मला शादी होकर आई थी तो बहुत खुश रहती थी। मम्मी पापा के साथ भी सारा दिन हंसी खुशी रहती थी । दो तीन महीने सब ठीक से चला फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि निर्मला बदल गई।

राहुल ने बहुत सोचा लेकिन उस कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपने मम्मी पापा से पूछा। वो दोनो भी राहुल की बात से सहमत थे लेकिन कारण नहीं समझ पाए। आखिर में राहुल ने अकेले में निर्मला से बात करने की सोची।

पहले तो निर्मला ने ऐसा कुछ मानने से मना कर दिया लेकिन राहुल प्यार से उसका हाथ पकड़कर पूछता ही रहा। आखिर में निर्मला रो पड़ी। उसने बोला की मैं तो बेटी बनकर ही आई थी और सब अच्छा ही चल रहा था । फिर मौसीजी यानी मीनाजी की बहन मिलने आई। निर्मला ने बताया कि जब वो चाय नाश्ते का सामान ला रही थी तो उसने मौसी जी को मम्मी से कहते सुना कि बहू को कस के पकड़ कर रख। ज्यादा आज़ादी मत दे और राहुल और बहू की ज्यादा बनने भी मत दिया कर। मैं हैरान रह गई और इंतज़ार करती रही कि मम्मी शायद अब मौसी जी को कुछ कहेंगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मुझे लगा कि मम्मी भी इस बात से सहमत हैं। बहुत धक्का लगा मुझे। आप ही बताइए कि मैं क्या करती।

राहुल ये सुन कर बड़ा हैरान हुआ। अपनी मौसी का तो उसे पता था कि वो अपनी बहुओं को परेशान रखती हैं लेकिन उसकी मम्मी क्यों चुप रही उसे समझ नहीं आया। वो निर्मला को लेकर मम्मी पापा के पास गया और सारी बात उनको बताई। और अपनी मम्मी से चुप रहने का कारण पूछा।

मीना जी ने कहा निर्मला बिल्कुल सही कह रही है, ऐसा ही हुआ था और मैं इसलिए चुप रह गई थी कि तेरी मौसी से बहस करने वाली बात हो जाती, समझना उसने कुछ था ही नहीं। और मैं निर्मला के सामने ये बखेड़ा नहीं चाहती थी। ना ही निर्मला ने सब सुन लिया ये मुझे पता चला। 

एक छोटी सी फांस मेरा घर बर्बाद कर देती और मुझे पता भी नहीं चलता। कभी कभी हम लड़ाई रोकने के लिए चुप रह जाते हैं लेकिन दूसरे पर इस का क्या असर होगा हम समझ नहीं पाते। उन्होंने निर्मला को बोला कि मैंने हमेशा तुम्हें बेटी माना लेकिन अपनी बहन का बर्ताव छुपाने के लिए ऐसा करा। आगे से हम सब कुछ भी बुरा लगने पर डिस्कस ज़रूर करेंगे, ये कहकर मीना जी ने निर्मला को गले लगा लिया।

कई बार एक छोटी सी फांस सब ख़त्म कर देती है। इस फांस को समय पर निकालना ज़रूरी होता है नहीं तो ज़ख्म बन जाते हैं और परिवार में इस फांस को निकालना किसी एक कि नहीं बल्कि हर किसी की ज़िम्मेदारी होती है।


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