एक छोटी गलती
एक छोटी गलती
एक छोटी गलती
लेखक: विजय शर्मा Erry
कहते हैं, इंसान की ज़िंदगी में सबसे महँगी चीज़ उसकी एक छोटी-सी गलती होती है। वही गलती, जो पल भर में होती है, लेकिन उसके साए में पूरी उम्र कट जाती है।
रमेश वर्मा एक साधारण-सा आदमी था। न बहुत अमीर, न बहुत गरीब। शहर के एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी करता था। सुबह समय पर दफ्तर जाना, शाम को समय पर घर लौट आना—यही उसकी ज़िंदगी की दिनचर्या थी। उसकी पत्नी सुमन एक समझदार और संस्कारी महिला थी। उनका एक बेटा था—आदित्य, जो आठवीं कक्षा में पढ़ता था और पढ़ाई में होशियार था।
रमेश को हमेशा अपने ईमानदार होने पर गर्व था। वह दूसरों को अक्सर समझाया करता,
“गलत रास्ते से मिली सफलता, असल में असफलता होती है।”
लेकिन शायद नियति को उसकी परीक्षा लेनी थी।
लालच की दस्तक
एक दिन दफ्तर में रमेश को पता चला कि उनके विभाग में एक बड़ा टेंडर पास होने वाला है। इस टेंडर से जुड़ी फाइलें उसी की टेबल से होकर गुजरनी थीं। उसी शाम एक ठेकेदार—शर्मा जी—रमेश से मिलने आए।
“वर्मा जी,” उन्होंने मुस्कराते हुए कहा,
“आप तो बहुत ईमानदार आदमी हैं, इसलिए सीधे बात कर रहा हूँ। अगर फाइल जल्दी और सही तरीके से आगे बढ़ जाए, तो… आपकी कुछ मदद हो जाएगी।”
रमेश ने तुरंत मना कर दिया।
“नहीं शर्मा जी, मैं ऐसा कोई काम नहीं कर सकता।”
शर्मा जी मुस्कराए, जैसे उन्हें यही उम्मीद थी। जाते-जाते बस इतना कहा,
“सोच लीजिएगा… आजकल ज़माना बड़ा महँगा है।”
उस रात रमेश देर तक सो नहीं पाया। घर का किराया बढ़ने वाला था, आदित्य की कोचिंग की फीस बाकी थी, और सुमन पिछले कई दिनों से अपनी बीमारी को छुपा रही थी।
“क्या सच में ईमानदारी से सब कुछ मिल जाता है?”
यह सवाल पहली बार उसके मन में उठा।
वह एक गलती
कुछ दिनों बाद शर्मा जी फिर आए। इस बार उनके हाथ में एक लिफाफा था।
“बस एक छोटी-सी मदद,” उन्होंने धीरे से कहा।
रमेश का हाथ काँप रहा था। दिमाग कह रहा था—नहीं।
लेकिन दिल और हालात कुछ और कह रहे थे।
उसने लिफाफा ले लिया।
वही पल उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मोड़ था।
एक गलती।
उस रात घर आकर रमेश ने सुमन की तरफ देखा। मन में अपराधबोध था, लेकिन उसने खुद को समझाया—
“मैंने ये परिवार के लिए किया है।”
गलती का असर
शुरुआत में सब ठीक लगा। पैसों से घर की परेशानियाँ कुछ कम हो गईं। सुमन का इलाज अच्छे अस्पताल में हुआ। आदित्य को अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया।
लेकिन रमेश के चेहरे से सुकून गायब हो गया था। हर फोन कॉल उसे डराने लगी। हर दस्तक उसे चौंका देती।
एक दिन दफ्तर में एंटी करप्शन की टीम आ गई।
“रमेश वर्मा?”
“जी…”
उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
पूछताछ शुरू हुई। सबूत थे। शर्मा जी ने खुद को बचाने के लिए सब उगल दिया था।
रमेश को सस्पेंड कर दिया गया।
टूटता परिवार
जब रमेश घर पहुँचा, तो सुमन ने उसके चेहरे पर सब कुछ पढ़ लिया।
“क्या हुआ?” उसने काँपती आवाज़ में पूछा।
रमेश फूट-फूटकर रो पड़ा।
“मैंने… एक गलती कर दी, सुमन।”
सुमन कुछ देर चुप रही, फिर बोली,
“गलती इंसान से होती है, रमेश… लेकिन उसे मान लेना भी हिम्मत है।”
आदित्य को जब स्कूल में पिता के बारे में बातें सुनने को मिलीं, तो वह चुप रहने लगा। उसकी आँखों में सवाल थे, लेकिन वह कुछ पूछता नहीं था।
सजा और आत्मबोध
मामला कोर्ट तक गया। रमेश को छह महीने की सजा और नौकरी से बर्खास्तगी मिली।
जेल की सलाखों के पीछे बैठा रमेश हर रात खुद से एक ही सवाल करता—
“क्या वह एक पल की गलती इतनी बड़ी थी?”
जवाब हर बार हाँ में मिलता।
लेकिन वहीं, उसी जेल में, उसने कई ऐसे लोगों को देखा जो गलती के बाद भी अपनी गलती को सही मानते थे। रमेश ने ठान लिया—
“अगर बाहर गया, तो अपनी गलती को अपनी ताकत बनाऊँगा।”
नई शुरुआत
छह महीने बाद रमेश बाहर आया। दुनिया पहले जैसी नहीं थी। लोग ताने देते थे। रिश्तेदार दूर हो गए थे।
लेकिन सुमन और आदित्य उसके साथ खड़े थे।
रमेश ने एक छोटा-सा काम शुरू किया—ईमानदारी से। धीरे-धीरे उसने बच्चों को नैतिक शिक्षा देने के लिए छोटे-छोटे सेमिनार शुरू किए।
वह बच्चों से कहता,
“बेटा, गलती होना बुरा नहीं… लेकिन गलती को दोहराना सबसे बड़ी भूल है।”
आदित्य अपने पिता को नए रूप में देख रहा था—टूटा हुआ नहीं, बल्कि मजबूत।
अंत नहीं, सीख
सालों बाद रमेश को लोग एक पूर्व अपराधी के रूप में नहीं, बल्कि एक सीख देने वाले इंसान के रूप में जानने लगे।
उसने अपनी ज़िंदगी से यही सीखा था—
“एक गलती इंसान को गिरा सकती है,
लेकिन वही गलती अगर समझ बन जाए,
तो इंसान को सबसे ऊँचा भी उठा सकती है।”
रमेश आज भी कहता है—
“काश, वह गलती न की होती…
लेकिन अगर की, तो उससे सीखना ज़रूर आ गया।”
— विजय शर्मा Erry
