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Vijay Erry

Inspirational Others

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यादों के रंग

यादों के रंग

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शीर्षक: यादों के रंग

लेखक: विजय शर्मा एरी

शहर के सबसे पुराने मोहल्ले की एक तंग-सी गली में स्थित था वर्मा स्टूडियो। लकड़ी का जर्जर बोर्ड, जिस पर कभी सुनहरे अक्षरों में लिखा था— फोटोग्राफी हर पल को अमर बनाती है—अब धुंधला पड़ चुका था। इसी स्टूडियो के भीतर, एक कोने में बैठे थे अर्जुन वर्मा, जिनकी आँखों में उम्र से ज़्यादा यादों की सिलवटें थीं।

अर्जुन आज भी वही पुराना कैमरा संभाले बैठे थे—ब्लैक एंड व्हाइट ज़माने का कैमरा। दुनिया रंगीन हो चुकी थी, लेकिन अर्जुन की दुनिया अब भी यादों के श्वेत-श्याम फ्रेम में कैद थी।

आज सुबह ही पोस्टमैन एक पुराना लिफ़ाफ़ा छोड़ गया था। लिफ़ाफ़े पर लिखे अक्षर देख अर्जुन का दिल ज़ोर से धड़क उठा—

“अर्जुन के नाम…
 — मीरा”

मीरा…
एक नाम नहीं, एक पूरी दुनिया।

मीरा और अर्जुन की पहली मुलाक़ात कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में हुई थी। मीरा रंगों की दीवानी थी—उसके दुपट्टे से लेकर उसकी बातों तक सब कुछ रंगीन। वह कहा करती—

“ज़िंदगी अगर रंगीन न हो, तो तस्वीरें भी बेजान लगती हैं।”

अर्जुन हँसकर जवाब देता— “और अगर तस्वीरें न हों, तो रंग भी खो जाते हैं।”

धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई। अर्जुन हर दिन मीरा की तस्वीरें खींचता—कभी मुस्कुराती हुई, कभी गुस्से में, कभी बारिश में भीगती हुई। मीरा मज़ाक में कहती—

“मेरी पूरी ज़िंदगी तुम्हारे कैमरे में क़ैद हो चुकी है।”

लेकिन ज़िंदगी हमेशा कैमरे की तरह फोकस में नहीं रहती।

मीरा के पिता को अर्जुन का पेशा पसंद नहीं था।
“फोटोग्राफ़र? इससे घर नहीं चलता,”
यह वाक्य मीरा की शादी तय होने से पहले आख़िरी बार अर्जुन ने सुना था।

मीरा ने बहुत कोशिश की, लेकिन हालात जीत गए। मीरा किसी और की हो गई, और अर्जुन…
अर्जुन तस्वीरों का।

शादी के बाद मीरा शहर छोड़कर चली गई। जाते समय वह अर्जुन को एक फोटो एलबम दे गई। एलबम के पहले पन्ने पर लिखा था—

“अगर कभी मैं भूल जाऊँ, तो ये तस्वीरें मुझे याद दिला देना।”

अर्जुन ने वही एलबम सालों तक सीने से लगाए रखा।

आज, इतने सालों बाद आया यह लिफ़ाफ़ा।

अर्जुन काँपते हाथों से पत्र खोलता है।

“अर्जुन,
ज़िंदगी ने मुझे बहुत कुछ दिया, बहुत कुछ छीना भी।
अब जब रंग आँखों से धुंधले होने लगे हैं,
तो मैं एक बार फिर अपनी ज़िंदगी को देखना चाहती हूँ—
तुम्हारे कैमरे की नज़र से।
अगर मुमकिन हो, तो मुझसे मिलो।”

पत्र पढ़ते-पढ़ते अर्जुन की आँखें भीग गईं।

अगले ही दिन अर्जुन उस पते पर पहुँचा। एक शांत-सा आश्रम। व्हीलचेयर पर बैठी थी मीरा। बाल सफ़ेद, आँखों में थकान… लेकिन मुस्कान वही।

“तुम्हारा कैमरा अब भी ज़िंदा है?”
मीरा ने पूछा।

अर्जुन ने धीरे से कहा— “उसमें आज भी तुम्हारे रंग बसते हैं।”

अर्जुन ने मीरा की नई तस्वीरें लीं—
झुर्रियों के साथ आई मुस्कान,
थकी आँखों में छुपा सुकून,
और बीते कल की हल्की-सी चमक।

मीरा ने तस्वीरें देखीं और बोली— “देखो अर्जुन, अब मेरी ज़िंदगी में रंग कम हैं… लेकिन सच्चे हैं।”

कुछ दिन बाद मीरा इस दुनिया से चली गई।

अर्जुन ने उसकी आख़िरी तस्वीर स्टूडियो की दीवार पर टाँग दी।
उस तस्वीर के नीचे लिखा—

“ज़िंदगी चाहे जैसी भी हो,
 यादें हमेशा रंगीन रहती हैं।”

आज भी वर्मा स्टूडियो खुलता है।
आज भी लोग आते हैं।
और अर्जुन, हर तस्वीर खींचते समय बस यही सोचता है—

तस्वीरें सिर्फ़ चेहरों को नहीं,
 ज़िंदगी के रंगों को अमर करती हैं।



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