सफलता या शॉर्टकट
सफलता या शॉर्टकट
शीर्षक: सफलता या शॉर्टकट
लेखक: विजय शर्मा एरी
रवि एक छोटे से कस्बे में रहने वाला साधारण सा लड़का था। पिता सरकारी स्कूल में क्लर्क थे और माँ गृहिणी। घर में सुविधाएँ सीमित थीं, लेकिन सपने बहुत बड़े। रवि का एक ही सपना था—जल्दी से जल्दी सफल बनना, अमीर होना और लोगों को दिखा देना कि वह भी कुछ कर सकता है।
कॉलेज में पढ़ते समय वह अक्सर सोशल मीडिया पर मोटिवेशनल वीडियो देखता। हर दूसरा वीडियो यही कहता—
“सफलता का शॉर्टकट अपनाओ, मेहनत करने का ज़माना गया।”
“स्मार्ट वर्क करो, हार्ड वर्क नहीं।”
रवि को यह बातें बहुत भाती थीं। उसे लगता था कि क्यों सालों तक मेहनत की जाए, जब एक शॉर्टकट से ही सब मिल सकता है।
पहला शॉर्टकटकॉलेज के एक दोस्त, अमन, ने उसे बताया,
“यार, पढ़ाई-लिखाई छोड़। एक ऑनलाइन ट्रेडिंग कोर्स है। बस तीन महीने में करोड़पति बनने का फॉर्मूला सिखाते हैं।”
रवि ने बिना ज़्यादा सोचे अपने पिता की जमा-पूँजी से कुछ पैसे निकालकर वह कोर्स जॉइन कर लिया। शुरुआत में सब बहुत आसान लगा। ग्राफ ऊपर-नीचे हो रहे थे, कुछ छोटे मुनाफ़े भी हुए। रवि का आत्मविश्वास बढ़ने लगा।
वह घर में शान से कहने लगा,
“पापा, अब पुराने ज़माने की नौकरी का कोई मतलब नहीं। मैं जल्दी ही बड़ा आदमी बनने वाला हूँ।”
पिता चुप रह जाते, लेकिन माँ की आँखों में चिंता साफ़ झलकती।
गिरावट की शुरुआतएक दिन बाज़ार अचानक गिर गया। जो पैसा रवि ने लगाया था, वह कुछ ही घंटों में आधा हो गया। कोर्स वाले गुरु का फोन बंद था, व्हाट्सऐप ग्रुप में सब खामोश।
रवि को पहली बार महसूस हुआ कि शॉर्टकट का रास्ता कितना फिसलन भरा होता है।
लेकिन वह मानने को तैयार नहीं था। उसने खुद से कहा,
“एक बार और कोशिश करता हूँ।”
इस बार वह यूट्यूब पर “बिना मेहनत पैसे कमाने” वाले वीडियो देखने लगा। वहाँ उसे क्रिप्टो, नेटवर्क मार्केटिंग और इंस्टेंट रिच स्कीम्स मिलीं। हर जगह वही वादा—
“30 दिन में लाइफ बदल जाएगी।”
उसने एक नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी जॉइन कर ली। रिश्तेदारों, दोस्तों से प्रोडक्ट खरीदवाने लगा। शुरू में लोग हँसते, फिर नाराज़ होने लगे। धीरे-धीरे रिश्ते टूटने लगे।
एक दिन उसकी मौसी ने साफ़ कह दिया,
“बेटा, पैसे कमाने के चक्कर में इंसान मत खो देना।”
उस रात रवि देर तक सो नहीं पाया।
आत्ममंथनकुछ दिनों बाद कॉलेज के पुराने प्रोफेसर, शर्मा सर, से उसकी मुलाक़ात हुई। सर ने पूछा,
“रवि, आजकल क्या कर रहे हो?”
रवि ने थोड़ी झिझक के साथ सब सच बता दिया—अपने सपने, शॉर्टकट, नुकसान और टूटते रिश्ते।
शर्मा सर मुस्कुराए और बोले,
“बेटा, असली सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। जो शॉर्टकट दिखते हैं, वे अक्सर लंबा चक्कर लगाकर वापस वहीं ले आते हैं—शून्य पर।”
फिर उन्होंने एक बात कही जो रवि के दिल में उतर गई,
“मेहनत ही असली शॉर्टकट है, बस उसमें धैर्य चाहिए।”
रवि ने पहली बार गंभीरता से सोचा। उसने तय किया कि अब वह किसी झूठे सपने के पीछे नहीं भागेगा। उसने अपनी पढ़ाई पूरी करने पर ध्यान दिया और साथ-साथ स्किल सीखने लगा—डिजिटल मार्केटिंग, कंटेंट राइटिंग, और बेसिक कोडिंग।
शुरुआत आसान नहीं थी। कई बार मन करता कि फिर से कोई आसान रास्ता ढूँढे, लेकिन अब उसे अपने पुराने अनुभव याद आ जाते।
वह रोज़ खुद से कहता,
“धीरे सही, लेकिन सही दिशा में चलना है।”
दो साल बाद रवि को एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिली। सैलरी बहुत ज़्यादा नहीं थी, लेकिन आत्मसम्मान बहुत था। कुछ समय बाद उसने फ्रीलांस प्रोजेक्ट्स भी शुरू कर दिए।
एक दिन पिता ने गर्व से कहा,
“बेटा, आज समझ आया कि तू सच में सफल हो रहा है।”
रवि मुस्कुराया। उसे लगा कि यह मुस्कान किसी भी शॉर्टकट से मिली दौलत से कहीं ज़्यादा कीमती है।
निष्कर्षरवि ने यह सीख लिया था कि सफलता का शॉर्टकट ढूँढने में जो समय और ऊर्जा लगती है, अगर वही सही मेहनत में लगा दी जाए, तो मंज़िल अपने आप मिल जाती है।
अब वह दूसरों को भी यही कहता है—
“सपने बड़े रखो, लेकिन रास्ता सच्चा चुनो। क्योंकि असली सफलता वही है, जो मेहनत, धैर्य और ईमानदारी से मिले।”
— विजय शर्मा Erry
