एक चाँदनी एक सितारा
एक चाँदनी एक सितारा
तीन दिन से लता जी अनशन पर बैठी थी क्योंकि उनके छोटे बेटे राघव ने अपने साथ कॉलेज में पढ़ने वाली सिया को अपने जीवन संगिनी के रूप में पसंद कर लिया था। ऐसे तो खूबसूरत सिया राघव के पूरे घर को पसंद थी, पर न जाने क्यों लता जी के मन में ये गलतफहमी बैठी हुई थी कि गोरी और खूबसूरत लड़कियां बदतमीज और फूहड़ होती हैं, घर और रिश्तों को अच्छे से संभाल नहीं पाती। उनकी बड़ी बहु कुसुम उनकी ही पसंद की थी थोड़े दबे रंग की पर दबे रंग में अक्सर एक बहुत बड़ी खासियत होती है तीखे नैन नक्श की तो देखने में तो कुसुम भी सांवले रंग की होने के बावजूद बहुत आकर्षक थी, ऊपर से जिस तरह उसने सारी घर की जिम्मेदारी संभाल ली और रिश्तों को भी जितना मान दिया कि लता जी के मन में ये बात और गहरी बैठ गयी कि सांवली लड़की ही घर को जोड़ कर रख सकती हैं, गोरी लड़की तो अपने रंग के घमंड में ही रहेगी।
सब समझा के थक चुके थे लताजी को कि ईश्वर प्रदत्त दिए रंग रूप का स्वभाव से क्या लेना है? पर लता जी को ये समझ नहीं आ रहा था, अंत में जब राघव ने ये फैसला सुना दिया कि आपकी मर्जी के बिना सिया से शादी नहीं करूंगा, पर अगर सिया से मेरी शादी नहीं हुई तो किसी से भी नहीं होगी, तो बेटे के मोह में लता जी को हाँ करनी ही पड़ी। पर शादी होने के बाद भी वह सिया से थोड़ी खिंची रहती, स्वभाव से अच्छी थी इसलिए बहू को ताने तो नहीं मारती पर कुसुम और सिया के साथ जो व्यवहार करती उसमें सिया को समझ आ जाता कि शायद मम्मी जी मुझसे खुश नहीं। पर वो चुप रहकर लताजी का दिल जीतने की कोशिश करती। कुसुम और सिया दोनों बहनों की तरह रहती, हँसती खिलखिलाती और सारे घर की जिम्मेदारी दोनों मिल कर बखूबी निभाती। अब लता जी का मन भी सिया के प्रति थोड़ा पिघल रहा था और गोरे रंग को लेकर वो जिस पूर्वाग्रह से ग्रसित थी वो उन्हें गलत लगने लगी थी। पर अहम के कारण स्वीकार नहीं कर पाती। ऐसे में सिया की गोद में दो नन्ही कलियों ने एक साथ कदम रख दिया। ईश्वर की महिमा के कारण एक बेटी का रँग-रूप अपने पिता की तरह सांवला हो गया और दूसरी बिल्कुल सिया पर।
सब ये सोच रहे थे कि कहीं रंगभेद के कारण अब लता जी अपनी पोतियों में भी कोई भेदभाव न करें, पर सबके आश्चर्य की तब कोई सीमा नहीं रही जब लता जी ने खुश होते हुए दोनों पोतियों को एक साथ अपने गोद में उठा लिया। राघव ने चिढ़ाते हुए कहा कि माँ तेरी एक पोती तो बिगड़ैल निकलेगी। हँसते हुए लताजी कहने लगी कि कभी कभी बड़े लोगों से भी गलती हो जाती है, मैं ये अच्छे से समझ गयी कि ईश्वर प्रदत्त दिए रंग रूप का किसी के स्वभाव से कोई लेना देना नहीं होता। गुण और व्यवहार मनुष्य के घर परिवार, समाज और परिस्थिति पर निर्भर होता है ।
मेरी एक पोती चाँदनी और दूसरी सितारा है, दोनों का अपनी जगह है, अपना महत्व है और इनकी किलकारियों से ही मेरे घर उजियारा है, न कि इनके रंग रूप से। सब खुश थे कि देर से ही सही, पर लता जी को सच समझ आ गया था।