एक ब्रेक

एक ब्रेक

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"पिछले चार महीने से एक दिन भी छुट्टी नहीं। लास्ट क्वॉर्टर का प्रेसर, जिंदगी एक कुत्ता दौड़ बन कर रह गयी है। कभी फायरिंग, कभी वॉर्निंग, कभी इन्सेंटिव का लालच, कभी प्रमोशन का इंद्र धनुषी छलावा, ओह ! दिमाग़ फट जाएगा।"

हितेश अपनी नव विवाहित पत्नी रम्या से बड़ी बेचारगी से दिल की घुटन को व्यक्त कर रहा था।

रम्या ने उसकी हथेलियों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, "सब ठीक हो जाएगा बस एक गहरी नींद लो।"

यह क्या हुआ ...हितेश जब सुबह -सुबह के लिए बाहर निकला तो देखा फ़ुर्सत का एक अलसाया सा दिन..... गाड़ियाँ बंद, दुकानें बंद, दफ़्तर बंद, फोन बंद, नेट बंद, स्कूल बंद, कॉलेज बंद .......यह किसी दंगे के बाद का कर्फ़्यू नहीं था, ना ही किसी तरह का राजनैतिक हड़ताल।

लोगों ने तय किया था, साल में एकाध बार स्वैच्छिक तरीके से एक ऐसे भी बंद को भी सेलेब्रेट किया जाए त्योहारों की तरह मनाया जाए। लोकल ट्रेन की तरह दिनचर्या की नीरस, ठंडी पटरियों पर दौड़ती भागती जिंदगी पर ब्रेक लगाया जाए। चेहरे से मुखौटे उतारकर आईने में झुर्रियाँ देखने की हिम्मत जुटाई जाए। पैरों से अदृश्य चक्केवाले जूते निकाल कर हरी घास पर नंगे पाँव चला जाए। न्यूज़ चैनलों को म्यूट करके साँसों के खामोश संवाददाता से अपने अंतर्मन की खबर ली जाए। किसी बच्चे के बैग से ब्रश लिया जाए, सादे चौकोर कागज पर थोड़ा सा आसमान ..ढेर सारे परिंदे पेंट किए जाए, सन्नाटों की धूल से लथपथ गिटार को सुरों से साफ किया जाए।

किसी दरख़्त से लिपटकर …कान लगा कर …उसकी हरी बातें सुनी जाए, गीली मिट्टी से कोई मेढ़क के सिर वाले देवता की मूरत बनाई जाए। माउस छोड़कर बॉल पेन उठाई जाए .खराब ही सही …मगर ..कोई कविता लिखी जाए। नहर के कज्जल पानी में ….पाँव डुबोकर बैठा जाए। गंगा नर्मदा के कछारों पर मल्लाहों के सुरीले गीत सुने जाए। जब बाकी चीज़ें बंद हो जीवन की बंद खिड़की को खोल कर जीवन की आँखों में प्रेमिका की नील-नयनों की तरह झाँका जाया उसमें डूबा जाए और दुनिया को सिखाया जाए घोर कोलाहल और भाग दौड़ में आलस और मौन भी जीवन के लिए ज़रूरी है।"

अचानक किसी ने ज़ोर से उसे हिलाया, अरे यह तो स्वप्न था। सामने रम्या उसे जगा रही थी- "ऑफिस नहीं जाना क्या ? बहुत गहरी नींद में थे क्या।"

वह खुश होते हुए बोला- "हाँ, बहुत ही प्यारी नींद थी जहाँ कोई जल्दी और भागमभाग नहीं थी, कुछ सुना तुमने ?

"क्या" ? रम्या ने थोड़े आश्चर्य से पूछा। 

"गौर से सुनो, चिड़ियों का कुदरती संगीत ....बहुत दिन बाद मैंने भी सुना है।"  यह कहकर वह बालकनी की तरफ रम्या का हाथ थामे बढ़ गया।


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