क़ुर्बानी
क़ुर्बानी
दरवेशों और पादरियों जैसी सफ़ेद लम्बी दाढ़ी। चमकती देह पर किस्सों के मसीहा जैसा एक सफ़ेद लबादा। एक दिव्य छाया इस बर्फीली जन्नत के धुंध में बेसाख्ता चक्कर काट रही थी। उसकी स्फटिक-सी पारदर्शी और पाक हथेलियों में ताजे गुलाबों के पुष्प थे , गुलाबों की सुगंध स्वर्गिक थी। उसके नीलम-जैसे नेत्रों में अश्रुजल थवह धुंधभरे मौसम में बादलों को चीरकर कहीं से आया था। उसके दिव्य , ओजस्वी मुखमण्डल पर गहरी वेदना की चाहया थी। उसके चिकने उन्नत ललाटपर विषाद की धूमिल रेखाएं थीं। उन रेखाओं में स्वेदबूंदें अटकी थीं।
आज दुनियाभर के प्रेमीजोड़े उसे पुकार रहे थे। उसकी छवि को अपने महबूब में निरखरहे थे। उसकी स्तुति और प्रशंसा में गीत-संगीत की महफ़िलें सज रही थी। प्रेम के तरह-तरह के उपादान शीशे के दुकानों में विक्रय के लिए रखे गए थे। संसार की हजारों बोलियों और भाषा में उसके नाम का भिन्न भिन्न उच्चारण किया जा रहा थासमाचारपत्र पहले से भरपूर सामग्री आज के दिन प्रकाशित करने के लिए छाँट रखे थे। इस मसीहा का जीवन -वृतांत सोशल मीडिया के हरे समुन्दर में तैर रहा था।
कलीदार गुलाबों की बिक्री में किसी बढ़िया शेयर के भाव की तरह अप्रत्याशित उछाल था। आज प्रेमी-प्रेमिकाओं की आँखों में धरती गोल नहीं ‘हार्ट शेप्ड’ थी। सूरज भी ‘हार्ट शेप्ड’, समोसा भी ‘हार्ट शेप्ड’, पिज्जा भी और टॉयज भी।इस हार्ट शेप्ड वाली दुनिया में कुछ लोग डंडे लिए जगह -जगह प्रेमालाप में लीन प्रेमियों को दौड़ा भी रहे थे। किन्तु विरोध करने वालों की संख्या पुष्पों से लदी डालियों में छिपे ततैये सी अल्प थीं।
उस मसीहा को आज सुबह तक यह सोचकर हर्ष हो रहा था कि उसका सैकड़ों वर्ष पूर्व दिया हुआ प्रेम सन्देश पीढ़ियां भूली नहीं हैं। उसने जिस प्रेम के ज्योतिपुंज को प्रज्वल्लित रखने के लिए करीब दो हजार वर्ष पूर्व प्राणों की आहुति दे दी थी , वह लौ आज करोड़ों हृदयों के दीये में निर्भय रूप से प्रकाशवान हैकिन्तु दोपहर होते -होते उसके मुख पर उदासी की कलुषित छाया छा गयी।एकाएक बादलों के पार के गीत-संगीत-कसमे-वादों की ध्वनियों की जगह चीखें कैसे सुनाई देने लगी। बसंत की सुगंध में बारूद की महक कहाँ से आ गयी।
क्षण प्रति क्षण अचानक बदलते चले गए। प्रेम मसीहा तुरंत नीचे आया तो ह्रदय विदारक दृश्य देख कर उसके मुख से आह निकल आई।
प्रेम मसीहा की पोटली में पिछली शताब्दियों के खुशबूदार प्रेमपत्र हुआ करते थे , किन्तु आज उसकी पोटली के पत्र अधजले मिले।
प्रेम मसीहा अपने पराश्रव्य ध्वनि में प्रतिदिन प्रेमी -प्रेमिकाओं को सुरक्षा प्रदान करने , उन्हें संसार के दुश्मन -ए-इश्क से हिफाजत करने की दुआ परमात्मा से करता था।
वह प्रतिदिन प्रार्थना करता था , " हे ईश्वर , प्रेमीगण के ह्रदय को निर्भयता से भर , नूर से भर , वफ़ादारी से भर , प्रेम से भर।"वह खुद भी अपनी सीमित मसीहाई शक्तियों से वरदानों की वर्षा करता था। आज मसीहा का वरदहस्त नमस्कार की मुद्रा में था। कभी सैंकड़ों -हजारों रुहें प्रेम में डूबकर उसके सामने घुटने टेके बैठीरहती थी।परमानंद की अनुभूति से सराबोर रहती थी।
लेकिन आज मसीहा खुद उस सुन्दर वादी की कोलतार की सड़क पर घुटने टेके बैठा है। चारों ओर ऊँचे बर्फीले सुन्दर पर्वत हैं , इन बर्फीले पर्वतों पर रक्त के धब्बे दृष्टिगोचर हो रहे हैं। वासंती वायु में सिसकियों के स्वर और गनपाउडर की गंध है। प्रेम मसीहा सैनिकवाली वर्दी पहने चिथड़े -चिथड़ेचालीस से अधिक शवों के मध्य बैठा हैं, कुछ भी साबुत नहीं नहीं हैं। कुछ के फेफड़े सांसे ले रहे हैं तो कुछ के दिल बाहर पड़ा धड़क रहे हैं।
ये सैनिक अद्भुत प्रेमी थे। ये अपने गर्भिणी पत्नियों , अपनी प्रतीक्षारत प्रेमिकाओं और स्वप्न बुनती मंगेतरों से दूर आज प्रेम के दिवस को मातृभूमिकी रक्षार्थ ड्यूटी पर थे।
प्रेम मसीहा इनकी रूहों को गले लगा रहा था। प्रेम मसीहा हर रूह से कह रहा था , " वेलेंटाइन डे के दिन वतन पर प्राणों के उत्सर्ग करने वाले हे सैनिकों ! तुम्हारी क़ुरबानी ,मेरी क़ुरबानी से भी श्रेयस्कर हैं। आने वाली पीढ़ियाँ शायद चौदह फरवरी को अब इस बड़ी क़ुरबानी केलिए याद रखे।“