सिलिकॉन जेनेरेशन
सिलिकॉन जेनेरेशन
"क्या माँ ! यह कैसी लड़कियों की तस्वीर मँगवाई हो। देखो एक दम देहात और कस्बे की लड़कियां लग रहीं हैं। "
"बेटे ! यह सब पढ़ी लिखी संस्कारी घरों की लड़कियां है। अपने ही जान –पहचान वालों से ये रिश्ते आए हैं।"
"नो माँ ! मैं इसमें से किसी से शादी नहीं करने वाला। माँ ! तुम्हारा यह बेटा आईआईटी और आई आईएम से पास आउट है। तुम जानती हो यह कितना कितना बड़ा टैग है। कितनी ही कंपनी करोडों रुपये के पैकेज देने को तैयार है और तुम अपने हीरे को इन वाहियात अंगूठियों में जड़ना चाहती हो। मम्मा ! आई एम फ्रोम न्यू सिलिकॉन जेनेरेशन। लेट मी डिसाइड फॉर माइ लाइफ।“
मोहित को आखिर में प्यार हो गया। उसे एक सोशल साइट पर अल्ट्रा मॉडल लड़की मिली। दोनों में चैटिंग हुई। बाद में डेटिंग हुई।
माँ - “ बेटे ! यह कैसी लकड़ी है। माँ यह नए जमाने की लड़की है।"
मोहित - "लेकिन पता नहीं क्यों मुझे इसका चाल चलन ठीक नहीं लग रहा है।“
पिता जी – “देखो ! मैंने कर्ज ले लेकर तुम्हें क्या इसलिए पढ़ाया –लिखाया कि तुम ऐसी बेहूदा हरकत करो। क्या तुमने अपनी डिग्रियों से यहीं संस्कार पाया है या हमने संस्कार में कोई कमी रह गई।"
मोहित :- "पापा ! आप स्टोन एज की सोच रखते हैं। आज के सिलिकॉन एज में संस्कार वगैरह डस्ट बिन की चीज़ है। मैंने फ़ाइनल डीसीजन ले लिया है।“
पिता जी :- अगर तुम्हें अपनी ही मनमानी करनी है तो करो। हमसे पूछने की क्या जरूरत है।
"अगर आप मेरी पसंद को स्वीकृति नहीं देते है तो मैं भी अब आप लोगों के बिना रह सकता हूँ। आई डोंट केयर।"
वह तमतमाता हुआ सारे रिश्ते तोड़ कर वहाँ से निकाल पड़ा ।
कुछ साल बाद !
डायरी का एक पीला पन्ना
माँ, पिता जी
शायद मैं अब कुछ ही महीने जीवित रहूँगा। आप दोनों के खिलाफ जाकर शादी करना मुझे काफी महंगा पड़ा। मैं यह आपको बता भी नहीं पाऊँगा। मैंने जिस लड़की से शादी की थी, मेरे से पहले उसके कई लड़कों से अफेयर थे। उसने मुझे यह सब छुपा लिया था। उसने मेरी शानदार लाइफ स्टाइल और पैसे के कारण शादी कर ली। कुछ दिन बाद पता चला वह एच आई वी से ग्रसित है। वह मुझे छोड़ कर अपने किसी पूर्व प्रेमी के साथ दुबई चली गई। अब उसका मुझ से कोई संपर्क नहीं है।
मैं अब अपनी मौत से अकेले लड़ रहा हूँ। मुझे भी उससे द्वारा इस रोग का संक्रमण हो चुका है। डॉक्टर तो कहते हैं कि मैं बच जाऊंगा। लेकिन मेरी देह और मेरी आत्मा को सही जवाब मालूम है। मैं आप दोनों को सॉरी कहने भी नहीं आ सकता।
आज जीवन का मर्म समझ में आ रहा है। ऊंची पढ़ाई से भला –बुरा सोचने की शक्ति नहीं आती है , वे तो केवल संस्कार से आते हैं। जिसे मैं भूल चुका था। अब इसकी सजा भुगतने को तैयार हूँ।
उसकी धँसी आंखेँ और कमजोर शरीर को देख कोई नहीं कह सकता था यह चार साल पहले का वह मोहित है जो हिन्दी फिल्मों के नायकों की भांति दिखता था और एक कॉर्पोरेट लीडर की तरह बातें करता था। अब वह एक जर्जर भवन की तरह था जिसमें पछतावों के डरावने प्रेत रहते थे।