Gautam Sagar

Drama Romance Thriller

2.6  

Gautam Sagar

Drama Romance Thriller

लव डायरी

लव डायरी

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फरवरी 14 ( वसंत की एक ख़ुशनुमा शाम )

आकाश! मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती। अगर हम दोनों की शादी नहीं हुई तो मैं जान दे दूंगी। हमारे –तुम्हारे घरवाले कभी नहीं समझेंगे कि हमारा रिश्ता जन्म -जन्मांतर का है। वे मेरी ख़ुशी की बजाय अपना सामाजिक सम्मान बचने में लगे हैं।


1 मार्च (हल्की-हल्की गुलाबी सी ठण्ड)

मैं समझा के थक गई। मेरे माँ -बाप नहीं माननेवाले। वे कहते हैं कि हमदोनों की जाति अलग है। लेकिन वे यह नहीं जानते प्रेम की कोई जाति नहीं होती।


18 मार्च (फागुन के अलमस्त होलियाना मौसम में)

आकाश तुम्हारे माँ-बाप तो राजी है न ! मैं घर से भाग कर तुमसे शादी कर लूंगी। मैं खुद नौकरी करती हूँ। मेरे फैसले मेरे माता -पिता नहीं ले सकते।


29 मार्च (गर्मियों ने दस्तक दे दी थी)

आकाश ,आख़िर हम दोनों आज कोर्ट मैरेज करके एक हो गए। दुःख तो हो रहा है कि मैंने मम्मी -पापा की मर्ज़ी के खिलाफ़ यह फैसला किया...मगर ...क्या कर सकती थी मैं। अपनी लाइफ उनके हाथ में तो नहीं सौंप सकती थी। प्यार के आगे दुनिया में कोई चीज़ नहीं है।


1 मई (चिलचिलाती गर्मी में)

आकाश ! मैं दिन भर ऑफिस में काम करके आती हूँ। फिर तुम्हारी माँ के कामों में हाथ बंटाना, तुम्हारी रोज नयी -नयी चाचियां , मौसियां आती हैं और कहती है हमारी जाति में यह रिवाज है ,वह रिवाज है, पक जाती हूँ सुन सुन कर।


16 मई (आज का तापमान रिकॉर्ड पर था)

आकाश ! हद हो गयी अब मैं इस घर में नहीं रह सकती। कितने दकियानूसी विचार हैं। कल तुम्हारी बड़ी भाभी कह रही थी कि घर में जींस-विंस अच्छा नहीं लगता। पति के साथ एक थाली में खाना मत खाओ। "उन दिनों" यानी पीरियड्स में तुम्हें चौका में घुसना नहीं चाहिए , नियम का पालन करना चाहिए।

अब बताओ यार, क्या मैंने इसलिए तुमसे शादी की थी। तुम भी मुझे वक़्त नहीं देते। अपने बिज़नेस में ही उलझे रहते हो। यार अभी तक हम लोग हनीमून के लिए कहीं घूमने भी नहीं गए हैं.


30 जून (ओह! धूल भरी आंधियों का मौसम) 


एनफ इज़ इनफ। आज तो हद ही हो गयी। तुम्हारी बहन मुझे मेरे कास्ट के नाम पर ताना दे रही है, कह रही थी मेरे भाई ने गलती कि इस जाति की लड़की से शादी की जो हमारे रिवाजों पर सवाल उठती है।

आकाश बताओ , क्या मैं गूंगी गुड़िया हूँ कि तेज़ हँसूँ नहीं , तुम्हारे और मेरे कॉमन पुरुष मित्रों से बात करने में उन्हें एतराज़ हैं।


26 जुलाई (घनघोर बारिश वाली शाम में):

 

डैड , आय ऍम सॉरी! मम्मा, आय एम सॉरी!! मैंने आपलोगों की बात नहीं सुनी और अपनी मनमानी की। अब मुझे पछतावा हो रहा है, अब मैं उस घर में एक दिन भी नहीं रह सकती । अब आकाश भी मेरा फेवर नहीं करता। काश मैं प्यार-व्यार के चक्कर में आप लोगों की कीमती नसीहत को दरकिनार ना करती।


14 अगस्त (बारिश के बाद सुनहरी धूप खिली थी)

आज मैं आज़ाद हो गई। आकाश और मुझमें आपसी सहमति से तलाक हो गया।


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