जिंदगी तुम्हें मालामाल कर देगी

जिंदगी तुम्हें मालामाल कर देगी

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आज वह इस खूबसूरत देश के एक पहाड़ी नगर का मेयर चुना गया। उसे बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था। उसका छोटा सा घर गुलदस्तों से भर गया था। केवल गुलदस्ते ही नहीं और भी कई खूबसूरत उपहार लोग लाये थे। वह लोगों को किसी भी उपहार के लिए मना कर रहा था। लेकिन लोग आप अपने प्रिय मेयर को कुछ देना चाहते थे।

यह एक ऐतिहासिक क्षण था। वह सोचने लगा क्या इस कामयाबी का हकदार मैं हूँ। उसके हृदय में कई नाम उभरे जो उसके इस इस कामयाबी के पीछे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तरदायी थे।

वह स्मृतियों की गलियों से गुजरता हुआ अपने बचपन में चला गया।

एक लड़का जिसने जब जन्म लिया था तब उसके घर में आनंद नहीं दुख मनाया गया था। उसका बाप उसे अतिरिक्त बोझ कहता था। क्योंकि पहले से घर में पहले से तीन बच्चे थे। घर की आमदनी का मुख्य ज़रिया घोड़ों के अस्तबल पर मज़दूरी से आता था। उसकी माँ तब शहर के प्रमुख के घर पर झाड़ू- पोछा करती थी। घोर गरीबी ही उसके परिवार के जीवन का सत्य था।

वह लड़का जिसे लोग लोरो के नाम से पुकारते थे। थोड़ा बड़ा हुआ तो पता चला। वह एक कान से बहरा है। उसकी माँ उसे सब संतानों में सबसे अधिक प्रेम करती थी। वह कहता था , " माँ , ईश्वर ने मुझ पर खूब कृपा की है। मेरा एक कान तो ठीक बनाया।"

माँ उसे सदा संतों और अच्छे इन्सानों की कहानियाँ सुनाती। वह कहती लोग तुम्हारी आलोचना करें तो उससे कुछ सीखने का प्रयत्न करना।

उसका पिता शराबी था। उस झोपड़ पट्टी में रहने वाले अधिकतर बच्चों के पिता शराबी और जुआरी थे।उसे अपना बाप उतना बुरा नहीं लगता था लेकिन जब वह बिना बात का उसे या उसकी माँ को पीटता था तो बहुत बुरा लगता था।

उसका शराबी पिता रात में आता और उसे आवाज़ देता था। जब वह नहीं सुन पाता , तो उसे पीट देता था। वह रोता हुआ माँ के पास जाता। माँ उसे समझाती। " ऐसा समझ तेरे पिता तेरी देह को मजबूत बना रहे है।"

वह बड़ी ही मायूसी से जवाब देता, " किंतु दर्द होता है।"

उसकी माँ रोते हुए उसे गर्म पानी से सिंकाई करती , मरहम लगाती।

उस मासूम बच्चे पर दुख का एक और पहाड़ टूटा। उसे सबसे अधिक प्रेम करने वाली देवी जैसी माँ चल बसी। माँ की मौत ने उसे हिला कर रख दिया। लेकिन उसे सदा महसूस होता कि उसकी माँ की रूह उसके आस-पास है। अब वह अकेला था। उसके तीनों बड़े भाई को उसके बाप ने दूसरी जगहों पर काम पर लगा दिया था। वे घर नहीं आते थे।

वह जब कभी उदास होता माँ को याद करता।

वह चर्च के स्कूल में जाता था। वहाँ की एक महिला शिक्षक नुरिया मैम उसके हालात से परिचित थी। उसे नुरिया मैडम में अपनी दिवंगत माँ की छवि दिखती थी। नुरिया मैडम जब भी उसे उदास देखती वह अकेले में उसे समझाती थी। " लोरो , अच्छे इंसान बनना। स्वर्ग से तुम्हारी माँ तुम्हें देख रही है। तुम अच्छे काम करोगे , मन लगाकर पढ़ोगे तो जिंदगी तुम्हें मालामाल कर देगी।"

जब वह स्कूल से पढ़ाई करके घर आता तो घर पर उसका पिता और उसकी सौतेली माँ उसे खूब भला-बुरा कहते।उससे दिनभर काम कराया जाता।

उसका पिता उसे बेईमानी भरी बातें बताता कि दुकान से किस प्रकार एक के बदले दो सामान ले आना है। उसका शराबी पिता उसे सिखाता , " इतना ईमानदार बनकर रहने से काम नहीं चलेगा। यह दुनिया तुम्हारी शराफ़त का फ़ायदा उठायेगी। बुरे इंसान से सब डरते है। अच्छे का फ़ायदा सब उठाते है।"

लेकिन जब वह स्कूल जाता तो नुरिया मैडम कहती, “ ईमानदार और अच्छे इंसान बनना। स्वर्ग से तुम्हारी माँ तुम्हें देख रही है। तुम अच्छे काम करोगे , तो जिंदगी तुम्हें मालामाल कर देगी।”

घर में शराबी पिता कहता, " चालाकी से तुम दुनिया पर राज कर सकते हो "

स्कूल में नुरिया मैडम कहती, " प्रेम से सब लोग तुम्हारे बन जा जाएँगे।"

घर में शराबी पिता कहता , " अवसरवादी बनो। जहाँ फ़ायदा दिखे उसी के साथ रहो।"

स्कूल में नुरिया मैडम कहती, " मानवतावादी बनो। किसी की सेवा के बदले कोई लाभ की अपेक्षा मत रखो।"

घर में शराबी पिता कहता, " बहरूपिये की भाँति भेष बदलते रहो।"

स्कूल में नुरिया मैडम कहती, " स्वच्छ जल की तरह पारदर्शी बनो। "

घर में शराबी पिता कहता, “ किसी का कोई खोया सामान मिल जाये तो समझो भूलकर भी भी उसे मत लौटना”

स्कूल में नुरिया मैडम कहती, “पराई वस्तु को पर नियत मत खराब करना। कोई खोयी वस्तु मिले तो कुछ भी करके उसके मालिक तक उस वस्तु को पहुंचा देना।”

समय पंख लगाकर उड़ता रहा।

लोरो के पिता शराब पी पीकर बीमार रहने लगे और चल बसे। सौतेली माँ ने उसे घर से निकाल दिया। वह छोटे-मोटे काम करके अपना जीवन यापन करने लगा। उसने पढ़ाई भी जारी रखी। लोरो की मेहनत ने रंग दिखाया। लोरो ने विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी से उतीर्ण किया। वह ग़रीब बच्चो को मुफ़्त पढ़ाता था। वह कम्यूनिटी के कार्यों में आगे रहता था। वह उसके परिवार और मृत शराबी पिता पर कटाक्ष करने वालों का कोई उत्तर नहीं देता। वह धीरे-धीरे सब के बीच प्रिय हो गया। वह कम्यूनिटी के चुनाव में प्रेसीडेंट बना। लोग उसके हौसले और उसके परोपकार की भावना से प्रभावित होने लगे। नगर के मेयर के पद पर पिछले पचास -पचपन वर्षों से एक ही परिवार का कब्जा था। अब युवा लोग इस वंशवाद का विरोध कर रहे थे। इस बार वे किसी नए व्यक्ति को चुनाव में खड़ा करना चाहते थे। चुनाव की घोषणा हुई। लोरो उसमें उम्मीदवार था। वह निवर्तमान मेयर से भी मिलने गया। नगरवासियों के बढ़ते विरोध से तत्कालीन मेयर को पता था , वह इस बार नहीं जीतने वाला। इसलिए उसने स्वेच्छा से लोरो के लिए पद छोड़ दिया। लोरो निर्विरोध वहाँ का मेयर चुन लिया गया। यह पहली बार हुआ था कि कोई निर्विरोध चुनाव जीता हो।

शहर के निवासी उसकी जीत में अपनी जीत देख रहे थे। भूतपूर्व मेयर की भी इज़्ज़त रह गई कि उसने बड़प्पन दिखाई। भूतपूर्व मेयर ने नए मेयर को हर संभव सहयोग देने का वायदा भी किया ताकि इस शहर को देश का सबसे शानदार शहर बनाया जा सके।

जनसमूह का प्रेम अपने नए मेयर लोरो पर उमड़ रहा था। उसने आज अपने स्वागत समारोह की पहली पंक्ति में उस शहर के झोपड़पट्टी में रहनेवाले बच्चों को बिठाया था। उसे पता था इन बच्चों के कितने ही बच्चे लोरो बनेंगे। आज स्वागत समारोह में बोलते बोलते लोरो की आँखे भीग आईं। उससे जब पत्रकारों ने उसकी कामयाबी का राज पूछा तो उसने अश्रूपूरित शब्दों में कहा , " इस सफलता का श्रेय मेरी माँ और टीचर नूरिया मैडम को जाता है।"

उसने आगे कहा, " मेरी टीचर कहती थी लोरो , अच्छे इंसान बनना। स्वर्ग से तुम्हारी माँ तुम्हें देख रही है। तुम अच्छे काम करोगे , मन लगाकर पढ़ोगे तो जिंदगी तुम्हें मालामाल कर देगी।”

कितना सही कहती थी।

वह कहती थी "प्रेम से सब लोग तुम्हारे बन जा जाएँगे"

कितना सही कहती थी।

वह कहती थी

“मानवतावादी बनो। किसी की सेवा के बदले कोई लाभ की अपेक्षा मत रखो”

वह कहती थी

“स्वच्छ जल की तरह पारदर्शी बनो”।

भीड़ में से किसी ने तंज़ कसते हुए कहा, " और आपके शराबी पिता क्या सिखलाते थे?"

वह इस अप्रत्याशित प्रश्न से विचलित नहीं हुआ और मुस्कुराते हुए उत्तर दिया , " ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। उन्होंने मेरी देह को मजबूत बनाया। वे मेरी निर्बलता दूर करने के लिए बचपन से ही अपने हाथों को बहुत कष्ट देते थे। और मैं उनकी सीख नहीं सुन पाया क्योंकि वे जब बोलते थे मेरा एक कान जो बेकार है , उससे सुनता था। उनकी कड़वी बातों ने सिखाया दुनिया में कई तरह के लोग होते हैं सब को सहन करना सीखो।

समारोह के अंत में उसने महसूस किया उसकी मृत माँ की रूह स्वर्ग से उसे देखकर मुस्कुरा रही है।

उसे कह रही है लोरो तुम्हें अभी अपनी मंज़िल नहीं मिली है। तुम्हें अभी केवल रास्ता मिला है। तुम इस ज़िम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाना। ईश्वर ने तुम्हें कितने ही लोरो की मदद करने के लिए चुना है। किसी के प्रति हृदय में बदले की भावना मत रखना। अपनी उस सौतेली माँ के लिए भी नहीं जिसने तुम्हें भूखे-प्यासे दिसम्बर की कड़कड़ाती सर्द रात में धक्का देकर घर से निकाल दिया था।

लोरो नुरिया मैडम से मिलने गया। नुरिया मैडम दूर गाँव में थी। उसे लकवा मार गया था। उसका बेटा उनकी देखभाल करता था।

लोरो नुरिया मैडम को अपने साथ शहर चलने को कहा जहां उसका इलाज हो सके। नुरिया मैडम का बेटा बोला, “मैं लोग आपका बहुत अहसानमंद है कि आप मेरी माँ से मिलने यहाँ आए”।

लोरो ने कहा, “ मेरे ऊपर मैडम का समंदर जितना कर्ज है मैं तो एक कतरा भी नहीं चुका रहा हूँ”। 

मैडम नुरिया के बेटे ने अपनी माँ को लोरो की मदद से उठाया और कार में बिठाया। वे सब शहर की तरफ चल पड़े।


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