एक भाभी ऐसी भी
एक भाभी ऐसी भी
"मम्मी आज स्नेहा का जन्मदिन है। उसने बुलाया है, तो क्या मैं चली जाऊँ?" परी ने अपनी माँ के गले से लटकते हुए पूछा।
"हाँ चली जाना। पर जल्दी आ जाना।"
परी की माँ ने उसके बालों में अपनी उंगलियाँ फिराते हुए कहा।
"थैंक्यू माँ" बोल कर परी ने माँ के गालों पर प्यारी सी पारी ले ली। और जा कर तैयार होने लगी।
स्नेहा शहर के बहुत बड़े उद्योगपति की इकलौती बेटी है। जो स्वभाव की बहुत अच्छी है। उसके अंदर अपने पैसों का जरा भी घमंड नहीं है।
स्नेहा और परी की दोस्ती अभी नई-नई है। पर कुछ दिनों में ही दोनों बहुत अच्छी सहेलियाँ बन गई है। कॉलेज में दोनों हमेशा साथ ही रहती है। परी आज पहली बार स्नेहा के जन्मदिन पर उसके घर जा रही है। तो उसके लिये एक अच्छा सा गिफ्ट लेकर पहुँच गई परी अपनी सहेली के घर।
स्नेहा ने परी को गले लगा उसका स्वागत किया। और बाहर ही अपने पापा से मिलवाया..... "पापा जी ये मेरी दोस्त परी है। "
परी ने भी हाथ जोड़कर नमस्ते किया "नमस्ते अंकल"
"खुश रहो बेटा!! जाओ- जाओ अन्दर जाओ। स्नेहा अपनी दोस्त को अन्दर ले जाओ। और ख्याल रखना सभी का। "स्नेहा के पापा ने रॉबिले अंदाज में कहा।
स्नेहा परी को जल्दी से अन्दर ले गई। परी आँखें फाड़े स्नेहा का घर देख रही थी। घर क्या था पूरी हवेली थी।
जिसका इतने अच्छे से रख रखाव किया गया था कि नये घरों की दीवारें भी उनकी चमक देख कर शरमा जाये। परी के घर के दो कमरों के बराबर तो सिर्फ स्नेहा का अकेले का कमरा था। जिसे बहुत हो आलीशान तरीके से सजाया गया था।
स्नेहा खुद भी आज किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी। हल्के पिंक कलर का गाउन, कानों में डायमंड के कुंडल, और हाथों में डायमंड के ही ब्रेसलेट में अटैच अंगूठी।
परी के लिये ये सभी कुछ एक सपने जैसा था। क्योंकि वो एक मिडिल क्लास परिवार से थी। उसके जन्मदिन को एक जोड़ी नये कपड़े और परिवार के साथ माँ के हाथ का बना हुआ केक काट कर मना लिया जाता है।
पर यहाँ तो पार्टी में जैसे पूरा शहर ही आया हो।
पार्टी पूरे शबाब पर थी और अब केक काटने की बारी थी। तो स्नेहा अपने मम्मी और पापा के साथ आगे बढ़ी।
पर परी को एक बात बहुत अजीब लगी। स्नेहा के पापा के होते हुए भी उसकी मम्मी ने कोई श्रृंगार नहीं किया था। न चूड़ी न बिन्दी न ही सिंदूर। बस एक सूती साड़ी में लिपटी एक दम सिंपल सी थी वो।
पहले तो परी को लगा जैसे फिल्मों, सीरियलों में दिखाते है कि बड़े लोग अपनी बीबी को ज्यादा महत्व नहीं देते वैसा ही कुछ होगा। पर थोड़ी ही देर में परी की ये गलतफहमी भी दूर हो गई। क्योंकि स्नेहा के पापा उसकी मम्मी को सभी से मिलवा रहे थे। और बहुत रिस्पेक्ट भी कर रहे थे। फिर क्या वजह होगी उनके ऐसे रहने की?? परी के मन में हजारों सवाल उठ रहे थे?? पर ये समय नहीं था स्नेहा से अपनी मन की दुविधा दूर करने का। तो यूं ही सवालों से घिरी परी सुबह स्नेहा से कॉलेज में मिलने का वादा कर अपने घर आ गई।
रात में भी परी के दिमाग में स्नेहा की मम्मी का ख्याल आता रहा। सुबह जब परी कॉलेज पहुँची तो पहली फुर्सत में ही उसने स्नेहा से उसकी मम्मी के सुहागन होने के बाद भी बिना श्रृंगार के रहने का कारण पूँछ लिया??
स्नेहा ने परी का सवाल सुन एक लम्बी सी सांस लेकर बताना शुरू किया.......
" देख परी मेरे दो बुआ है। एक पापा से बड़ी और एक छोटी। जब मेरे पापा की शादी हुई तब बड़ी बुआ की शादी हो चुकी थी। और छोटी बुआ की शादी मेरी मम्मी के सामने ही हुई। पर भगवान ने उनकी किस्मत में ज्यादा दिन का वैवाहिक सुख नहीं लिखा था।
एक बार एक पारिवारिक समारोह में जब मेरे दोनों फूफा एक ही गाड़ी से जा रहे थे तो उस गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया। और मेरी दोनों बुआ एक साथ विधवा हो गई।
बड़ी बुआ तो फिर भी कुछ दिन अपनी ससुराल में रही। पर छोटी बुआ को उनके ससुराल वालों ने अपने बेटे की मौत का जिम्मेवार ठहरा कर उन्हें ससुराल से निकाल दिया। तो बुआ अपने मायके में आकर ही रहने लगी।
थोड़े दिनों बाद ही बड़ी बुआ भी यहीं आ गई। क्योंकि पति बिना ससुराल, ससुराल नहीं होता।
घर में दो - दो बहनों को सफेद लिबास में देख कर सभी का कलेजा मुँह को आता था। पर ईश्वर के आगे किसकी चलती है। पापा ने छोटी बुआ की शादी के बारे में भी सोचा। पर इस समाज ने हमेशा उन्हें ये बोल कर नकार दिया कि "जिसकी किस्मत में पहले पति का सुख नहीं है। क्या पता शादी होते ही दूसरा पति भी न रहे। "
घर में रुपये पैसे की कमी न थी। और मेरी माँ भी अपनी ननदों से बहुत प्यार करती थी। सो उन्हें मायके में रहने में कोई परेशानी नहीं हुई।
पर अपनी दो विधवा ननदों के रहने से मेरी माँ ने भी ये सोच कर श्रृंगार करना छोड़ दिया कि कहीं उनकी बिन्दी, चूड़ी देख कर उनका दिल न दुखे। और तभी से उन्होंने चटक रंग भी छोड़ दिये।
वो सिर्फ सादा और हल्के रंग ही पहनती है। मेरी दोनों बुआ ने बहुत कहा कि.. .......
"भाभी आप हम लोगों की वजह से यूँ न रहिये। आप का सुहाग है तो सुहागनों की तरह ही रहे। "
पर मेरी माँ ने हमेशा यहीं कहा कि "मेरा सुहाग आप लोगों की दुआओं से हमेशा अमर रहेगा। उसके लिये में कुछ पहनूं न पहनूं कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। "
स्नेहा ने ये सब बताते - बताते भर आई आँखों को साफ करते हुए कहा :- "पता है परी, भले ही मेरी माँ श्रृंगार नहीं करती। पर मेरे पापा माँ के इस त्याग से जो उनकी इज्जत करते है। दोनों बुआ जो उनका सम्मान करती है। वो तो अतुलनीय है। मेरी माँ जैसा शायद ही इस दुनिया में कोई और हो। "
इतना बोलते हुए स्नेहा का चेहरा अपनी माँ के लिये गर्व से खिल उठा।
और परी के मन में भी इतना सब सुन कर स्नेहा की माँ के लिये बहुत इज्जत और सम्मान जाग उठा था।
चाहे आज का जमाना हो या पुराना जमाना हर जमाने में भाभी और ननद के झगड़े ही होते सुने हैं। कभी-कभी तो अगर ननद किसी वजह से मायके में आकर रहती है, तो उसे अपनी भाभी के गुस्से का सामना करना पड़ता है। पर आज परी ने पहली बार ऐसी भाभी के बारे में सुना था जिन्होंने अपनी ननदों के लिये अपने शौक, अपनी खुशियों का भी त्याग कर दिया था।
तभी पीरियड शुरू होने की घंटी सुनाई दी और दोनों सहेलियाँ अपने आंसू पोंछते हुए क्लास की तरफ चल दी।
