एक और एक ग्यारह
एक और एक ग्यारह
"मेरा कुछ भी कहना आपको अच्छा नहीं लगता है लेकिन बहुत हो गया अब पानी सर के ऊपर से गुजर रहा है अब मैं चुप नहीं रह सकती, समझे रमेश।" मीना ने गुस्से से अपने पति से कहा।
"मैं भी ऐसा ही कुछ कहूँ तो तुम्हारा जवाब क्या होगा?" रमेश ने मीना की तरफ सवाल उछाला।
"क्या मतलब ? साफ़ -साफ़ बताओ मुझे" मीना ने गुस्से से कहा।
"मम्मी ने बताया कि आज सामने वाली आंटी ने माँ से बताया कि तुमने आंटी से कहा है कि तुम्हें माँ घर से निकालना चाहती है", रमेश ने चिढ़ते हुए कहा।
"ये गलत है रमेश, मैंने कुछ नहीं कहा आंटी से मीना ने अपनी सासु माँ के पास आकर कहा, लेकिन आज मैं बात साफ कर देना चाहती हूँ अभी मैं आंटी को बुलाती हूँ।"
"पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो मीना, मम्मी जी आपके लिए भी ये सवाल है, क्या आप दोनों ने कभी सोचा है कि आंटी आप दोनों को क्यों भड़काती है क्योंकि वे आप दोनों के मतभेद के बारे में जानती है, सास बहु का मतलब एक दूसरे पर दोष मढ़ना नहीं, एक दूसरे पर विश्वास करना भी है" रमेश ने समझाते हुए कहा।
तभी दरवाज़े की घंटी बजी, सामने आंटी खड़ी थी, "तेरी सास फिर से तेरी खाट खड़ी कर रही है" उन्होने फुसफुसा कर पूछा।
"आज के बाद मेरी सास के खिलाफ एक शब्द भी मत कहना समझी आप ?"
"मेरी बहू का तरीका थोड़ा गलत है पर बात तो सही है" सासु माँ ने कहा।
आंटी अपना सा मुँह लेकर लौट गई।
रमेश ने दरवाज़ा बंद किया और बोला "इसे कहते हैं एक और एक ग्यारह।" सभी खिलखिला कर हँस पड़े।