छोटे दादा जी
छोटे दादा जी
जवानी में ही पत्नी गुजर गई थी लेकिन देवपूजन जी ने विवाह नहीं किया। सारी जिंदगी अकेले ही गुजार दी। उनके बड़े भाई उन्हें अपने पास शहर में रखना चाहते थे मगर उनकी भी विनती ठुकरा कर गाँव में अकेले ही रहे।
वक्त गुजरता रहा और वो सत्तर वर्ष के हो गए एक दिन उन्हें माथे पर ईंट रखे आते हुए देख उनका चचेरा भतीजा सुशील घबरा गया
और दौड़ता हुआ पास आकर उनके माथे से ईंट नीचे उतार कर रखा और उन्हें खाट पर बैठा दिया फिर भाग कर पानी लाया और पूछा -"चाचा जी ये सब क्या है ?"
तुम लोगों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मैं जब तक जिंदा हूँ अपनी जमीन (फील्ड ) पर खेती करूँगा, देवपूजन जी ने पानी पीते हुए बोला।
सुशील - "आप भूल गए चाचा जी ,ये ज़मीन हमने आज से चालीस वर्ष पूर्व सर्वसंमती से स्कूल को खेल के मैदान लिए दान कर दी थी। हमारे पास खेतों की कमी थोड़े है जो हम फील्ड वापस लें, चाचा जी वहाँ बच्चे खेलते है इसलिए ,वो हमारी जमीन नहीं अब वो फील्ड है और दान में दी हुई वस्तु वापस नहीं लेते। सबसे ज्यादा आप ही खुश थे फिर अचानक से आपको क्या हो गया जो ऐसी बातें करने लगे।"
देवपूजन - "देखो मैं कुछ नहीं सुनने वाला मैंने तो आज फील्ड में मूंग की बुआई कर दी है और किसी ने वहाँ ईंटे रखी है ,मैं चार ईट भी लेता आया अब रोज जाऊँगा और फसल की देखभाल भी करूँगा। मैं जा रहा हूँ खाने के समय बुला लेना।"
सुशील - "माँ ....ये क्या हो गया चाचा जी को? आखिर किस चीज़ की कमी है सत्तर वर्ष की आयु में कौन ईंटें ढोता है?"
"तू ज्यादा परेशान ना हो, तेरे चाचा जी को बुढ़ापे की सनक चढ़ गई है। इस उम्र में इंसान जिद्दी हो जाता है। "माँ ने सुशील को समझाया।
"मैं समझ नहीं पा रहा हूँ माँ कि चाचाजी इतने कैसे बदल गए? "सुशील ने माथे पर बल डालते हुए कहा।
"शांत हो जा बेटा शायद इसे ही बुढ़ापे की सनक कहते है।"
माँ ने जाते हुए देवपूजन की तरफ देखते हुए कहा।