कमल दल
कमल दल
उम्मीद के सागर में किसी बगुला की भांति एक पैर पर खड़ी थी सोनल कि कब जीवन रूपी मछली उसके झोली में आ जाए और वो तृप्त हो जाए बस यही सोच कर वह रोए जा रही थी।
भगवान पर भरोसा रखो बहु , सोनल की सास ने उसे दिलासा देते हुए बोला।
तीन दिन पहले की तो बात है सब कुछ कितना अच्छा था, बिलकुल ठीक घर से गए थे और बुखार के कारण जल्दी लौट आए, दवाई का कोई असर नहीं हुआ तो दूसरे दिन इस अस्पताल में लाना पड़ा समर को डाक्टर कह रहे है कि डेंगू खतरनाक दौर में पहुँच चुका है ,समर के नाक से खून आ आने लगा था। डाक्टर ने भगवान से प्रार्थना करने को कहा है माँ जी सोनल ने सिसकते हुए कहा।
अब भगवान का ही आसरा है बहू वो सब ठीक करेंगे चलो अब तुम कुछ खा लो मैं समर के पास रहती हूँ। सासु माँ ने कहा।
जब तक समर को होश नहीं आता मैं कुछ नहीं खाऊँगी, आज चौथा दिन है माँ जी ,मैं समर के साथ रहती हूँ आप और बाबू जी सो जाइए नहीं तो आपकी तबियत खराब हो जाएगी ,आपके आने से मुझे सहारा हो गया माँ जी।
सोनल ने माँ से कहा।
माँ सोने चली गई ,सोनल समर के बिस्तर के पास बैठ कर बुरे ख्यालों से दो चार होने लगी उसे अपनी जिंदगी बेमानी लगने लगी थी तभी समर को होश आ गया रात के दो बज रहे है समर ने अपना हाथ सोनल के हाथ पर रखा पर वो यकीन नहीं कर पा रही थी उसने कस कर समर का हाथ पकड़ लिया वो हँस भी रही थी रो भी रही
थी सासू माँ को आवाज दी उस दिन मानो भोर ने जल्दी दस्तक दी थी लेकिन सोनल के लिए तो बीती रात ही कमल दल फूले थे जीवन रूपी सागर में जहाँ वह अपने प्रियतम के साथ अपलक उन्हें निहार रही थी।