एक अनोखी अनुभूति
एक अनोखी अनुभूति
"Opposites always attract". यह कहावत अक्सर सुनने में आती है, अक्सर इंसान अपने से विपरीत व्यक्तित्व की ओर आकर्षित होता है। विपरीत लिंग के प्रति एक अलग सा एहसास हर इंसान के अंदर जागृत होता है। जिसे हम कभी आकर्षण का नाम दे देते हैं तो कभी पहले प्यार का या प्रेम का।
किशोरावस्था में व्यक्ति जब अपने सुरक्षित पारिवारिक परिवेश से बाहर निकलकर, नए लोगों व नए परिवेश में प्रवेश करता है तो उसे कई नई अनुभूतियां होती है उसी में से एक है किशोर अवस्था का पहला प्रेम ।व्यक्ति अपने से विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होता है और एक विशेष प्रकार की अनुभूति उस व्यक्ति विशेष के लिए रखने लगता है।
स्मिता अपने आप में मनमौजी और अल्हड़ व आकर्षित लड़की थी, अच्छे नंबरों से अपना स्कूल पूरा कर स्मिता आज पहली बार कॉलेज जा रही थी वैसे वह कॉलेज परिसर में बने आवासी मकान में ही रहती थी क्योंकि उसके पिताजी साइंस डिपार्टमेंट के एचओडी थे, लेकिन कॉलेज में पहली बार प्रवेश कर रही थी
उत्साह से परिपूर्ण वह जैसे ही कॉलेज गेट के पास पहुंची, गेट के पास चार- पांच बाइक में कुछ लड़कों का झुंड खड़ा हुआ था, जो नए कॉलेज के स्टूडेंट की रैगिंग कर रहा था, इन सबसे बेपरवाह स्मिता कॉलेज के पास खड़े गेटकीपर को अपना आईडी कार्ड दिखा कर अंदर प्रवेश कर ही रही थी कि कुछ लड़कों ने आकर उसका रास्ता रोक लिया, स्मिता उन लोगों को "एक्सक्यूज मी" कहकर अंदर जाने की कोशिश कर रही थी तो उसी में से एक लड़का स्मिता से बोला "हेलो मैडम क्यूरी, आपने अपना इंट्रोडक्शन हम लोगों को नहीं दिया, हम इस कॉलेज के सीनियर स्टूडेंट्स हैं पहले हमें अपना इंट्रोडक्शन दीजिए फिर आप अंदर जा पाएंगी"।
अपने अल्हड़पन में स्मिता ने जवाब देते हुए कहा "सर मेरा नाम स्मिता पांडे है।"
यह सुनकर बाइक के पास खड़ा लड़कों का झुंड हंसने लगा। यह देखकर स्मिता थोड़ी नर्वस हो गई।
फिर लड़कों के झुंड से एक और लड़का आकर स्मिता के पास खड़ा हो गया जिसका नाम पल्लव था।
बड़े ही दबंगाई से पल्लव स्मिता को देखकर बोला "96 परसेंट मार्क्स लेकर आई हो पर दिमाग में पूरा भूसा भरा हुआ है, इसके भूसे में तीली तो लगानी पड़ेगी, क्यों मैडम एचओडी की बिटिया रानी।"
यह सुनकर स्मिता की आंखों में आंसू आने लगे, इससे पहले कभी किसी ने उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया था।
"जाओ लड़के -लड़कियों के साथ लाइन में खड़ी हो जाओ" पल्लव रौब दिखाता हुआ स्मिता से बोला।
स्मिता मासूमियत भरा चेहरा लिए जाकर और लड़के- लड़कियों के साथ लाइन में खड़ी हो गई।
बारी- बारी से पल्लव और उसके दोस्तों के निर्देशानुसार सामने लगे हुए गुलमोहर के पेड़ के पास जाकर दोनों हाथ जोड़कर अच्छे से झुक के जोर से चिल्लाकर गुलमोहर दादा नमस्ते बोलना था।
एक-एक करके सब लड़के- लड़कियां यह काम कर अपने अपनी कक्षा में की ओर जाने लगे जब स्मिता की बारी आई तो डरे होने के कारण बहुत जोर से यह नहीं बोल पाई।
यह देखकर पल्लव स्मिता के पास गया और बोला "मैडम जी जरा जोर से बोलिए दादा गुलमोहर सो रहे हैं उन्हें जगाइए ना।"
यह सुन घबराती स्मिता जोर से बोलने की कोशिश करते हुए बोलने लगी "दादा गुलमोहर नमस्ते, अब जाग जाओ।"
स्मिता की बात सुन लड़कों का झुंड और जोर से स्मिता पर हंसने लगा। फिर पल्लव स्मिता को देखते हुए बोला मैडम जोर से बोलिए
दो-तीन बार इस तरह से करने के बाद आखिर स्मिता ने यह वाक्य बोल दिया और उसे कक्षा में जाने की अनुमति मिल गई लेकिन स्मिता की आंखों से छलकते आंसू और उसकी घूरती हुई निगाहें पल्लव के अंदर एक तूफान उत्पन्न कर गई थी।
रोज पल्लव गेट में खड़ा हुआ स्मिता को मिलता और स्मिता उस गुलमोहर के पेड़ के पास जाकर "दादा गुलमोहर नमस्ते अब जाओ बोलती।"
इस तरह से तीन चार महीने निकल गए और स्मिता में अब इतना आत्मविश्वास आ गया था कि वह बिना डरे जाकर उस गुलमोहर के पेड़ के पास अपने सीनियर के द्वारा किए गए वाक्य आराम से बोल कर आ जाती। उसे नियमित रूप से पल्लव कॉलेज गेट पर खड़ा हुआ मिलता बिना कुछ कहे दोनों एक दूसरे को देखते और अपनी-अपनी कक्षाओं में चले जाते।
चार-पांच दिन से पल्लव को स्मिता कॉलेज गेट पर सुबह नहीं दिखी, स्मिता को ना देखकर मानो उसके अंदर जो तूफान चल रहा था वह और तेज होने लगा ,उसे लगा मानो उसके अंदर कुछ टूट रहा हो। परेशान होकर वह कॉलेज आवासीय कॉलोनी में जाकर स्मिता के पिता के बारे में पूछने लगा तो उसे पता चला कि स्मिता के पिता यानी कि साइंस के एचओडी का ट्रांसफर कहीं दूसरे शहर में हो गया है और पूरा परिवार वहां शिफ्ट हो गया है।
स्मिता के शहर छोड़ कर जाने का बहुत गहरा प्रभाव पल्लव पर पड़ा, अब पल्लव बहुत ही शांत व एकांत रहने लगा, स्मिता की स्मृति उसे परेशान करने लगी, स्मिता का मासूम चेहरा हमेशा पल्लव की आंखों के सामने आता तथा उसकी याद पल्लव को बहुत परेशान करती।
इस तरह से समय काटने लगा और फाइनल एग्जाम भी सर पर आकर खड़े हो गए अतः परंपरा के अनुसार फाइनल ईयर स्टूडेंट की फेयरवेल पार्टी का आयोजन किया गया। तथा फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट की वेलकम पार्टी भी साथ में आयोजित की गई, जिसमें सीनियर स्टूडेंट्स ने अपने नए साथियों के साथ रैगिंग टाइम पर की गई बदतमीजियों के लिए कार्ड व फूल देखकर क्षमा याचना की तथा नए स्टूडेंट ने भी अपने सीनियर्स के उज्जवल भविष्य के लिए के शुभकामनाएं दी।
इसी दौरान स्मिता का मित्र एक हाथ से बना हुआ कार्ड लेकर मंच पर पहुंचा और उसे पढ़ने लगा,
उस कार्ड में लिखा हुआ था "मैं मैडम क्यूरी यानी कि स्मिता पांडे अपने नए कॉलेज में बहुत खुश हूं लेकिन अपने पहले कॉलेज के कुछ महीने मुझे बहुत याद आते हैं, खासकर पल्लव सर और उनका गैंग, इस फेयरवेल पार्टी में मैं पल्लव सर का आभार व्यक्त करती हूं जिन्होंने मेरे अल्हड़पन को खत्म कर, एक नई हिम्मत मेरे अंदर विकसित की, जिसके कारण मैंने इंटर कॉलेज वाद विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया, और पल्लव सर अब मेरे दिमाग में भूसा नहीं रहा, आपके और पूरे सीनियर स्टूडेंट्स के बेहतर भविष्य की शुभकामना की आशा करती हुई और मैं स्मिता आप सबको बधाई भेज रही हूं"।
स्मिता का यह संदेश सुन पल्लव का चेहरा खिल उठा, पार्टी के बाद पल्लव स्मिता के मित्र से मिला और स्मिता के बारे में जानकारी ली, स्मिता के मित्र ने उसे बताया कि परीक्षा के बाद स्मिता आपसे अवश्य मिलेगी।
पल्लव ने अच्छे से अपनी परीक्षा की तैयारी की और परीक्षा देने के बाद निर्धारित स्थान व तारीख पर स्मिता से मिलने पहुंचा, स्मिता पहले से वहां पर पल्लव का इंतजार कर रही थी और उसने वही कपड़े पहने थे जिसे वह कॉलेज में पहले दिन पहन के आई थी। पल्लव स्मिता के कपड़ों से ही उसे पहचान गया और उसके पास जाकर बोला "हेलो मैडम क्यूरी"
हंसती स्मिता बोली "मैं मैडम क्यूरी नहीं स्मिता पांडे हूं"
और एक बुकलेट आगे बढ़ाते हुए पल्लव को दी। बुकलेट पल्लव ने देखी, उस पर लिखा हुआ था नमस्ते गुलमोहर दादा, अब तो आप जाग चुके होंगे और वह बुकलेट जैसे पल्लव ने खोली उसमें गुलमोहर के सूखे पत्ते तथा फूल चिपके हुए थे।
पल्लव आश्चर्यचकित होकर स्मिता को देखते हुए बोला "तुम्हें सब याद है, और उसी गुलमोहर के पेड़ के पत्ते हैं ना यह?"
स्मिता चेहरे पर मुस्कान रखते हुए बोलिए "हां यह उसी गुलमोहर पेड़ के पत्ते हैं।"
दोनों ने साथ समय बिताया और तय किया कि वह अपनी -अपनी पढ़ाई पूरी कर जीवन में एक सफल व्यक्ति बनने के बाद दोबारा फिर से मिलेंगे।
जहां पहले प्रेम के एहसास ने मदमस्त पल्लव को जीवन की एक किरण दी, वही अल्हड़ स्मिता को हिम्मत और हौसला जिससे उसने अपने जीवन में कई मुसीबतों को हराया।