एक ऐसी भी लव स्टोरी

एक ऐसी भी लव स्टोरी

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संजय को चौदह साल की उम्र में ही पहला प्यार हो गया था।संजय उस समय आठवीं क्लास में था, उम्र कम थी लेकिन मॉर्डन ज़माने में लोग इसी उम्र में प्यार कर बैठते हैं।

 संजय का ये पहला प्यार उसकी क्लास में पढ़ने वाली लड़की “दीपिका” के साथ था। दीपिका अमीर घराने की लड़की थी, उम्र यही कोई 13 -14 साल ही होगी और दिखने में बला की खूबसूरत थी। दीपिका के पापा का प्रापर्टी डीलिंग का काम था, अच्छे पैसे वाले लोग थे।संजय

मन ही मन दीपिका को दिल दे बैठा था लेकिन हमेशा कहने से डरता था। संजय के पिता एक स्कूल में अध्यापक थे। उनका परिवार भी सामान्य ही था इसीलिए डर से संजय कभी प्यार का इजहार नहीं करता था।

इस प्यार के बहाने संजय की एक गन्दी आदत सुधर गयी। संजय आये दिन स्कूल ना जाने के नए नए बहाने बनाता था लेकिन आज कल टाइम से तैयार होके चुपचाप स्कूल चला आता था। माँ बाप सोचते बच्चा सुधर गया है लेकिन बेटे का दिल तो कहीं और अटक चुका था।समय ऐसे ही बीतता गया…लेकिन संजय की कभी प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं हुई बस चोरी छिपे ही दीपिका को देखा करता था। हाँ कभी -कभी उन दोनों में बात भी होती थीं लेकिन पढाई के टॉपिक पर ही.. संजय दिल की बात ना कह पाया।

समय गुजरा,,आठवीं पास की, नौवीं पास की…अब दसवीं पास कर चुके थे लेकिन चाहत अभी भी दिल में ही दबी थी।

आज स्कूल का अंतिम दिन था। संजय मन ही मन उदास था कि शायद अब दीपिका को शायद ही देख पायेगा क्यूंकि संजय के पिता की इच्छा थी कि दसवीं के बाद बेटे को बड़े शहर में पढ़ाने भेजें।

स्कूल के अंतिम दिन सारे दोस्त एक दूसरे से प्यार से गले मिल रहे थे, अपनी यादें शेयर कर रहे थे। दीपिका भी अपनी फ्रेंड्स के साथ काफी खुश थी आज..सब एन्जॉय कर रहे थे,, अंतिम दिन जो था लेकिन संजय की आँखों में आंसू थे।

संजय चुपचाप क्लास में गया और दीपिका के बैग से उसका स्कूल परिचय पत्र निकाल लिया। उस कार्ड पर दीपिका की प्यारी सी फोटो थी। संजय ने सोचा कि इस फोटो को देखकर ही मैं अपने प्यार को याद किया करूंगा।

 बैंक से लोन लेकर पिताजी ने संजय को बाहर पढ़ने भेज दिया। दीपिका के पिता ने भी किसी दूसरे शहर में बड़ा मकान बना लिया और वहां शिफ्ट हो गए। संजय अब हमेशा के लिए दीपिका से जुदा हो चुका था।

समय अपनी रफ़्तार से बीतता गया,, संजय ने अपनी पढाई पूरी की और अब एक बड़ी कम्पनी में नौकरी भी करने लगा था, अच्छी तनख्वाह भी थी लेकिन जिंदगी में एक कमी हमेशा खलती थी – वो थी दीपिका। लाख कोशिशों के बाद भी संजय फिर कभी दीपिका से मिल नहीं पाया था।


घर वालों ने संजय की शादी एक सुन्दर लड़की से कर दी और संयोग से उस लड़की का नाम भी दीपिका ही थी। संजय जब भी अपनी पत्नी को दीपिका नाम से पुकारता उसके दिल की धड़कन तेज हो उठती थी। आखों के आगे बचपन की तस्वीरें उभर आया करतीं थी। पत्नी को उसने कभी इस बात का अहसास ना होने दिया था लेकिन आज भी दीपिका से सच्चा प्यार करता था।

एक दिन संजय कुछ फाइल्स तलाश कर रहा था कि अचानक उसे दीपिका का वो बचपन का परिचय पत्र मिल गया। उसपर छपे दीपिका के प्यारे से चेहरे को देखकर संजय भावुक हो उठा कि तभी पत्नी अंदर आ गयी और उसने भी वह फोटो देख ली।

पत्नी – "यह कौन है ? जरा इसकी फोटो मुझे दिखाओ।"

संजय – "अरे कुछ नहीं, ये ऐसे ही बचपन में दोस्त थी।"

पत्नी – "अरे यह तो मेरी ही फोटो है, ये मेरा बचपन का फोटो है,, देखो ये लिखा “सरस्वती कान्वेंट स्कूल” यहीं तो पढ़ती थी मैं।"

संजय यह सुनकर ख़ुशी से पागल सा हो गया – "क्या है तुम्हारी फोटो है ? मैं इस लड़की से बचपन से बहुत प्यार करता हूँ।"

दीपिका ने अब संजय को अपनी पर्सनल डायरी दिखाई जहाँ दीपिका की कई बचपन की फोटो लगीं थीं। संजय की पत्नी वास्तव में वही दीपिका थी जिसे वह बचपन से प्यार करता था।

दीपिका ने संजय के आंसू पौंछे और प्यार से उसे गले लगा लिया क्यूंकि वह आज से नहीं बल्कि बचपन से ही उसका चाहने वाला था।


 संजय बार बार भगवान् का शुक्रिया अदा कर रहा था!!


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