Ashita Sharma

Romance

4  

Ashita Sharma

Romance

ए डिनर नाईट 2

ए डिनर नाईट 2

21 mins
455


उस छवि को आखों में बसा कर मैं वापस अपने रूम पर आ रही थी।आगे देखा तो आंटी खड़ी थी


"इतनी देर से कहाँ थी? ये कोई टाइम है आने का"(आंटी ने कहा)


"सॉरी आंटी वो तबियत खराब थी तो दवाई लेने चली गयी थी "


"इतनी रात को कोन सी दुकान खुली है? "


(आंटी ने मुझे चुप कराते हुए कड़क अंदाज में कहा।


"अरे आंटी हॉस्पिटल के पास वाली शॉप से लाई हूँ ये देखो "


(मेरे दवाई दिखाने पर आंटी को शांति मिली।)


और मुझ पर इस सब का कोई असर नहीं ना जानें कोनसे ख्यालों में खोई हुई अपने कमरे में आ गयी।एक अलग सी मुस्कान थी मेरे चेहरे पर जैसे काफी अरसे बाद सुकून मिला हो।दी के कॉलेज ग्रुप को कैंप के लिए दिल्ली जाना था तो दी सुबह दिल्ली के लिए निकलने की तैयारी कर रही थी।आंटी का पोता मेरा इंतजार कर रहा था।


"दीदी कल मेरे स्कूल में फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन है और मुझे आपकी हेल्प चाहिए।"


"कल है।"(मैंने खुद की तबियत को देखते हुए उससे ये पूछा)


"हाँ दीदी "


"चल करते है तैयारी मैं एक मिनट में आई "


मैंने दवाई ली और उसके साथ उसके कम्पटीशन की तैयारी में लग गयी।


2 घंटे की मश्कत के बाद उसकी ड्रेस बनी।


थैंक्यू दीदी (उस बच्चे ने मुझसे कहा)


"थैंक्यू से काम नहीं चलेगा कम्पटीशन जीत के आना पड़ेगा।"


"ओके दीदी बाय गुड नाईट।"


(इतना कह कर वो चला गया और मैं राहत की साँस लेकर अपने बेड पर लेट गयी)


कुछ टाइम बाद फ़ोन पर मैसेज ब्लिंक हुआ।जब मैंने देखा तो ये मेरे स्कूल की दोस्त थी सपना।


"कहाँ हो मैडम आज सुबह से?"


सपना मेरे साथ मेरे स्कूल से थी पूरी दुनियां में अब तक वह एक लड़की थी जो मेरे दिल के बहुत करीब थी जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकती थी।जब पहली बार उससे स्कूल में मिली थी उसी दिन से वो मेरे साथ थी।


"कहीं नहीं बस थोड़ी सी तबियत खराब है।"(मैंने उसे जवाब में लिखा )


उसे जवाब देने के बाद मैंने देखा की एक और मेसेज आया हुआ था वो भी किसी अनजान नंबर से मैंने फोटो देखी तो ये कोई और नहीं वही थे जिनके ख्यालों से मैं अभी तक बाहर भी नहीं आ पाई थी।

... (मेसेज में उन्होंने ये भेजा)

"इतनी जल्दी जल्दी याद आ गयी ?"(मैंने लिखा)


"देख ले जाते ही याद कर लिया।"


"मुझे लगा अब तक भूल गए होंगे अच्छा गुड नाईट बोलने के लिए याद किया।"


"क्यू गुड़ नाईट बोलना जरुरी है क्या?(उन्होंने कहा)"


"क्या पता बड़े लोग हो वैसे भी जो रिलेशनशिप्स की हमने टर्मस रखी थी उसमे यही तय किया था की बस गुड नाईट और गुड़ मॉर्निंग।"


"अरे ना ना ऐसा कुछ नहीं वो एग्रीमेंट तो रोज बात करने का बहाना था।"


"आप रोज बात करोगे?"(मैंने झिझक में ही उनसे पूछा)


"क्यू तुझे क्या लगता है?"वैसे तो 12 बज गए अपने कहा था यहाँ से जाते ही भूल जाऊंगा 2 घंटे ज्यादा याद रह गयी।देख ले अब तू ही।"


"क्या देखे जनाब आप हमें क्यों याद रखोगे ना जाने कितनी दीवानियाँ होंगी आपकी।"


"अरे बेटा वहम है आपका कोई दीवानी नहीं है।"


"अच्छा जी यकीन हो तो नहीं रहा पर आप कह रहे हो तो मान लेते है।"


"अजी हम दिखते कमीने पर है नहीं (उन्होंने कहा)"


"अच्छा ऐसा क्या।"


"तो कल का क्या प्लान है"(उन्होंने मुझसे पूछा)


'कुछ नहीं कल ऑफिस से छुट्टी लेने की सोच रही हूँ ताकी डॉक्टर को दिखा आउ वरना और बीमार हो जाऊगी।"


"जल्दी दिखा आना ताकि मैं तुमसे मिल कर दिल्ली चला जाऊ।'"


(उनकी ये बात सुन कर मैं धक्क से रह गयी और मैंने उनसे पूछा)

"

"एक ही मुलाकात में इतना लगाव कैसे?"


"अरे मुलाकात तो एक साल पूरानी है आज तो यादे ताज़ा हुई है।"

उनकी बातें सुन कर मैं एक पल के लिए खो गयी मैं सपनों मैं जीने वाली लड़की हर चीज को अपनी किस्मत से जोड़ती हर चीज का होना ना होना को एक मकसद मानती थी।और इस चीज को भी मैं अपनी किस्मत से जोड़ने लगी की शायद जिंदगी ने जो मेरे करीबी मुझसे दूर कर के मुझे दुखी किया है शायद ये वो इंसान है जो मुझे उन अंधेरों से उजालों की और लेके जाएगा शायद ये वही है जो इस हंसी के पीछे छुपे दुःख को देख पाएगा और शायद ये वही है जो मुझे दिल से हंसा पाएगा।

मैं ये सब सोच ही रही थी की अचानक फिर से मेसेज आया


"क्या हुआ?"


(मैं फिर सोच में पड़ गयी पर इस बार दी मुझे देख रही थी और उन्होनें पूछा)


"क्या हुआ तुझे क्या सोच रही है?"


एकदम से उनकी और देखते हुए मैंने बोला कुछ नहीं दी।


"अच्छा मतलब मुझसे छुपाएगी" (दीदी ने थोड़ा मजाक के अंदाज में कहा)


"नहीं दी आपसे क्या छुपाना आपको तो सब पता ही है "


"तो फिर बता क्या हुआ क्या सोच रही है?"(दी ने फिर से पूछा )


"दी इस इंसान का मेरी जिंदगी में आना और फिर मेरा इनकी तरफ ये खिंचाव ये हो क्या रहा है और वो भी ऐसी बाते बोल रहे है तो क्या सच में उन्हें भी मेरी तरह कुछ ऐसा ही अलग सा महसूस हो रहा है।"

(दीदी ने पैकिंग छोड़ कर मेरे पास आकर कहा)

"देख बेटा तू इससे आज मिली है मैं इसी इंसान को बचपन से जानती हूँ मैं ये नहीं बोल रही की वो बुरा है वो बहुत अच्छा है और उसके जितना ख्याल भी कोई नहीं रख सकता मैं तो खुद उसकी फॅमिली को ये बोलती हूँ की दीपू की वाइफ बहुत लकी होगी।तू चाहती थी ना की तू भी खुश रहे और एक फिल्मी लड़का तुझे मिले तेरे फिल्मी सपने पुरे हो और सबसे बड़ी बात तू जिस चीज से हर्ट हो रखी है उस चीज से तुझे इसके अलावा कोई और बाहर भी नहीं निकाल सकता लेकिन फिर भी एक बात ध्यान रखना मेरी इसके साथ रह दोस्त बना लेकिन तू ये कभी मत सोचना की आगे कुछ पॉसिबल है और सबसे बड़ी बात अभी उसके पास वक़्त है तो तेरे साथ है जब नहीं होगा तब बात भी नहीं।बस अपने जज्बातों को इससे मत जोड़ना बाकि वो तुझे बहुत खुश रखेगा।"

इन सब बातों ने मुझे कशमश में डाल दिया तभी एक बात समझ आई जब कुछ समझ ना आये तब सब वक़्त पर छोड़ देना चाहिए वो सब सही कर देगा इसी सोच के साथ में फिर उनसे बात करने लगी।


"यार रिलेशन तो शुरू हो गया है लेकिन उसको और गहरा करने के लिए साथ वक़्त तो बिताना पड़ेगा ना ताकि तू मुझे समझे मैं तुझे"(उन्होंने कहा)


"हाँ ये बात तो है एक दूसरे को जानना पहचानना हर रिलेशन के लिए जरूरी है" (मैंने जवाब में कहा)


"तो फिर कल मिलते है।"


"पर कल तो आपको दिल्ली जाना है।"


"कोई बात नहीं थोड़ा लेट चला जाउगा।'


(मेरे दिमाग में दीदी की बातें थी तो मैंने सोचा शायद सब जल्दी हो रहा है थोड़ा रुकना चाहिए)

"नहीं नहीं आप जाओ अब तो मिलते रहेंगे वैसे भी कुछ दिन बाद होली है और तब आप आओगे ही तब मिल लेंगे।"

"चल मैं तुझे फाॅर्स नहीं करुगा लेकिन ऐसे परेशान मत हो तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो।"(उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा)


उनकी ये बात सुन कर थोड़ा सा फिर रुक गयी और इसी उलझन में उन्हें गुड नाईट बोल कर सो गयी।सुबह के 5 बजे दीदी के अलार्म ने हमें जगाया दी की ट्रैन थी और फिर दी के पास कॉल आया।


"हाँ दीपू बोल "

"मैं कैब लेकर आया हूँ बाद में अकेला जाउगा दिल्ली इससे अच्छा तेरे साथ ही चल दू।(उन्होंने दीदी से फ़ोन पर कहा)

चल ठीक है आती हूँ।"


(फिर दीदी फटाफट तैयार होकर रूम से निकल दी।)


जैसा की मेरी तबियत ठीक नहीं थी तो मैं आकर सो गयी और ऑफिस से छुट्टी लेके हॉस्पिटल जाना था।करीब 9 बजे मैं रूम से निकली अर्चना जो की दीदी की दोस्त थी मैंने उससे कहा की मुझे डॉक्टर के पास जाना है तो मेरे साथ चल वो मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो गयी और हम दोनों हॉस्पिटल जाके दिखा आये।मैं रूम पर आई तो आंटी ने मेरे लिए खाना बना रखा था मैं देख के दंग थी देखकर की आंटी को मेरी परवाह थी।

खाना खा कर दवाई लेकर मैं सो गयी थी।

जब सो कर उठी तो दी के बिना अच्छा नहीं लग रहा था।अब तो मेरे फ़ोन को भी बजने की आदत सी होने लग गयी थी देखा तो मैसेज आया हुआ था।


"गुड़ मॉर्निंग....."


"वैरी गुड़ मॉर्निंग....."


"अब तबियत कैसी है तुम्हारी??"


"अभी डॉक्टर को दिखा कर आई हूँ पहले से बेहतर हूँ।"(मैं जवाब में कहा)


(अब बातों को जैसे पर से लग गये हो )

"दीपू - वैसे जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था तब तुम मुझे बड़ी उम्र की लगी लेकिन इस बार देखने पर कुछ अलग और प्यारी लगी तो मन हुआ तुमसे बात करने का।"


मैं :- "जब पिछली बार देखा होगा तब आपकी कोई गर्लफ्रेंड होगी इसलिए अच्छी नहीं लगी होऊगी और इस बार कोई नहीं होगी इसलिए लग गयी होऊगी।"


दीपू :- "गर्लफ्रेंड तो कभी नहीं होती जबसे एक बार धोखा मिला है।'"


(इसके बाद उन्होंने मुझे बताया की वो एक लड़की से बहुत प्यार करते थे लेकिन उस लड़की ने उस प्यार को नहीं समझा और उस प्यारे से रिश्ते को खत्म कर दिया)


मैं:- "कोई बात नहीं कोई और भी स्पेशल आपके लिए बना होगा और वो जल्दी ही आएगा जो आपको बहुत प्यार देगा।"(उनका होंसला बढ़ाते हुए मैंने कहा)


दीपू:- 'तुम हो ना।बताओ कितना प्यार दोगी ?"(उन्होंने मसखरे अंदाज में कहा)


मैं:- "अच्छा! बताओ आपको कितना चाहिए ?'(मैंने भी थोड़ा मसखरे होते हुए जवाब दिया)


दीपू:- "सारा जितना भी हो सारा।"


मैं:- "सारा का सारा!!!'


दीपू:- "हाँ सारा का सारा "


मैं :-' अच्छा ठीक है, लेकिन जब मेरा सारा प्यार खाली हो जाएगा तब ?"


दीपू:-"अरे ! बेटा प्यार कभी खत्म नहीं होता और न ही बनाया जाता है प्यार को तो एक दूसरे में ट्रांसफर कर सकते है मतलब प्यार सब के अंदर पहले से होता है बस फर्क इस बात से पड़ता है की ये प्यार हम किस से शेयर करते है और प्यार का फंडा कुछ ऐसा है की तुम जिससे शेयर करोगी उसे तुमसे भी शेयर करना पड़ेगा नहीं तो एक पास प्यार की कमी और एक के पास बहुत सारा हो जाएगा और फिर जिसके पास कम होगा वो उसे पूरा करने के लिए दूसरे के पास जाएगा।"

(उनकी इन बातों को मैं बड़े ध्यान से सुन रही थी और सुन के ऐसा लग रहा था की जो प्यार को इतनी गहराई से समझता हो वो किसी के साथ प्यार का नाटक क्यों करेगा जैसे ही ऐसा कुछ सोचती तो खुद के खाये हुआ धोखा और दीदी की बातें सामने आ जाती और मैं खुद को रोक लेती)


दीपू :- "बस एक चीज बोलूगां की भविष्य की मत सोचना क्योकिं हम भविष्य की सोच कर हम हमारा वतर्मान खराब कर लेते है।और उम्मीदें ही जो इंसानों को तोड़ देती है तो ना कोई उम्मीद लगाना और ना आगे की सोचना ये रिलेशन हमने खुश रहने के लिए जोड़ा है ना की दुखी रहने के लिए समझी झल्ली।'"


मैं:- "हम्म समझ गयी शर्मा जी(उनकी इस बात से में भी पूरी तरह सहमत थी की उम्मीदें अगर इंसान को जिन्दा रखती है तो उम्मीदे इंसान को तोड़ भी देती है और कुछ रिश्तों को मैंने उम्मीदों की वजह से खो दिया था तो सोचा अब बस कोई उम्मीद नहीं)"

फिर हम दोनों ने एक दूसरे की पसंद नापसंद पूछी और एक दूसरे को और करीब से जानने की कोशिश में लग गए।बातें बढ़ने लगी और खूब बातें होने लगी सुबह शाम सोते जागते जब मैं ऑफिस में होती तो मैसेज में जब घर होती तो कॉल पर बातों का सिलसिला बढ़ता ही चला गया और होली आने वाली थी जैसा की होली है वो अपने घर आते और मैं अपने घर जाती तो मेरा जाना 10 बजे था और उनका आना 7 बजे था तो ये बीच का वक़्त साथ बिताने का हम दोनों ने सोचा।सुबह के 6 बज रहे थे की दी के पास कॉल आया दी ने उठाया तो वो वही थे।दोनों के साथ एक अलग सी चीज थी दोनों एक दूसरे को दीपू बुलाते थे।उन्होंने दी को कहा मेरा फ़ोन ऑफ होने वाला है तो 10 मिनट में तुम दोनों चाय की थड़ी पर आ जाना।

हम दोनों मुँह धोकर चाय पिने निकल गए और देखा तो वो वही बैठे थे।उनको सामने देख कर एक अलग सी ख़ुशी हो रही थी अपने मन में उनकी वो कंजी आँखे मन करता की बस इन आँखों को युही देखती जाऊ पर जैसा की मन में एक चीज थी की सामने वाले को जब ये पता चल जाता है की कोई तुमसे कितना लगाव रखता है तो उस लगाव की कोई कदर नहीं रहती।मन में चल रही इस लड़ाई को उनकी बात ने तोडा।

दीपू:- "तुम लड़कियां भी न कितना टाइम लगाती हो आने में मैंने एक चाय भी पी ली।"


मैं:- "मतलब हद है साथ चाय पिने का प्लान था और जनाब ने अकेले ही पी ली देख लो दीदी चाय में ही साथ ना निभाया क्या करेंगे और तो ये।(मैंने मुँह चिढ़ाते हुए कहा )"


दीपू:- "अरे! नाराज क्या होना एक ही तो चाय पी है एक और पी लेंगे"।

चाय पीते पीते हमने खूब बातें की उन्होंने दी से कहा यार मूवी देखने चलते है ना।


यार मुझे घर जाना है दो दिन बाद होली है और 8 घंटे का सफर (मैंने जवाब में कहा )


मेरे इस जवाब से सब चुप मन तो मेरा भी बहुत था तो फिर मैंने कहा चलो ठीक है चलते है पर अभी वाला शो ताकि मैं घर के लिए लेट ना हो जाऊ।

वो दोनों मेरे इस जवाब से बहुत खुश हुए और हम मूवी देखने गए और मूवी थी "बद्री नाथ की दुल्हनियाँ"।

सिनेमा हॉल चारों तरफ अँधेरा और रोमांटिक मूवी और वो भी इनके साथ पहली बार।


टिकट लेके हम लोग अपनी सीट पर बैठ गए और मूवी स्टार्ट।


वो हमारे बीच में थे और दी और मैं बगल में उन्होंने अपना हाथ मेरी और बढ़ाया और मैंने अपना हाथ पीछे हटाया।और इसी तरह दोनों के बीच जुगलबंदी चलने लगी और आखिरकार वो हाथ पकड़ने में कामयाब हो गए।उनके छूने से जो अहसास हुआ उसे शब्दों में कह पाना मुश्किल है लेकिन ना जाने मन क्यूँ बोलने लगा की काश ये हाथ इसी हाथ को हमेशा युही थाम कर रखे।लेकिन ये सब बहुत जल्दी जल्दी हो रहा था मेरे मन ये भावनाएं आना उनका दिल को भाना और उनकी हर अदा पर इस दिल का बार बार उन पर आना।समझ नहीं पा रही थी की ये हो क्या रहा है बस जो वक़्त ने कराया और जो दिल को भाया वो करती चली गयी।

मूवी खत्म।

और अब मुझे जाना था घर से फ़ोन आने लगे।उन्होंने कहा चलो बस स्टैंड तक मैं छोड़ आता हूँ।


वो मुझे लेके बस स्टैंड गए और बस आई उन्होंने मेरी सीट कन्फर्म कराई और जब मैं बैठ गयी तब चले गए।मैं इस बारे में सोच रही थी कोई अजनबी जिसको अभी में 3 दिन से ही जानती थी वो इतनी परवाह कर रहा था।अचानक वो फिर से आये मैं चौंक गयी मैंने पूछा क्या हुआ??


कुछ नहीं आराम से बैठ गयी ना तुम??(उन्होंने मेरी सीट को देख कर मुझसे पूछा)

हाँ मैं बैठ गयी अच्छे से आप परेशान ना हो जाओ आपकी बस निकल जाएगी (मैंने उनको बड़े प्यार से देख कर जवाब दिया)

(वो चले गए और मैं उन्हें जाता देख रही थी और बस चल पड़ी नजारो को देखते देखते मैं एक सोच में डूब गयी)

ये बात उन दिनों की है जब मैं स्कूल में थी और गर्मियों की छुट्टी चल रही तब एक rरात मेरे फ़ोन पर मैसेज आया।


गुड़ नाईट!!


अनजान नंबर थे तो उस वक़्त में डर गयी और मैंने उस मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया और सो गयी।


अगली सुबह मैंने हिम्मत करके उस मैसेज का रिप्लाई किया और पूछा


कौन है आप ?


तो जवाब में आया जी मैं प्रदीप।


मैंने कहा मैं किसी प्रदीप को नहीं जानती तो आप पास मेरे नंबर कहा से आये।


उसने कहा मेरे पास सेव थे पता नहीं कैसे?(उसने मेरे मैसेज के जवाब में कहा)

मैंने उससे पूछा कहाँ से हो कौन हो? काफी सारे सवालों के बाद पता चला की वो पास ही क़स्बे का है तो मेरा डर निकल गया और वो लड़का मुझे समझदार और खुद से एक कदम आगे लगा उसने मुझसे ये भी कहा की तुम चाहो तो ही हम बात करेंगे नहीं तो नहीं।


हमने एक दूसरे को देखा नहीं एक दूसरे के बारे में इतना जानते नहीं लेकिन जैसा की मुझ में था की जब कोई गलती नहीं की तो डरना क्यूँ और मेरे ख्याल में किसी लड़के से बात करना कोई गलत काम नहीं है तो वो बातचीत मैंने जारी रखी।कुछ दिनों बाद वो कब आदत बन गया पता नहीं चला और 6 महीने बाद हमने एक दूसरे को देखने का फैसला किया।और हम मिले ये प्यार था या कुछ और मैं समझ नहीं पाई बस उससे बातें करना अपनी बातें शेयर करना अच्छा लगता था।उसे मैं अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा मानने लगी थी और नहीं चाहती थी की वो दूर हो और इस तरह उसके साथ चलते चलते जिंदगी के 6 साल पुरे कर लिए और एक दिन जिसके बारे में मैंने कभी ख्यालों में भी नहीं सोचा था वो दिन आ गया वक़्त ने कुछ ऐसे हालात पैदा किए की ये साथ छूट गया।मैंने काफी कोशिश की इस साथ को फिर से साथ करने की लेकिन उसकी तरफ से हर रस्ता बंद नजर आया।

अपनी जिंदगी के 6 साल किसी के साथ बिताये और एक दिन पता लगे की अब वो साथ नहीं है ना वो बातें है और ना ही जो पहले था अब है।खुद को उस चीज से निकालने का कोई जरिया नहीं ढूंढ पा रही थी बस हर पल खुद को गलत समझना की में सुंदर नहीं हूँ ये वो बोल गया जिसने मेरे साथ 6 साल बिताये खुद को पुरे दिन कोसना और हंसना बोलना सब बंद हो चूका था मेरा।इससे निकलने के लिए खुद को पुरे दिन व्यस्त कर लिया और शाम होते होते खुद को पूरी तरह थका लेना ताकि जाते ही बस सो जाऊ।


इस सब से लड़ते लड़ते खुद को आगे ले आयी उसकी याद आती तब अलग अलग नंबर से उसे फ़ोन करके उसकी आवाज सुन लेती थी और वो अच्छे से जानता था की ये में हूँ लेकिन फिर भी उसने ना कभी पलट के पूछा ना कभी उसने मेरी खबर ली।कहने को 6 साल को मैंने इस एक पहरे में पुरे कर दिए लेकिन इन 6 सालों में जो भी में सीखी,जानी और 2 समझदारी की बातें बोल पाती थी वो उसी की वजह से थी में प्यार की परिभाषा नहीं जानती लेकिन उसने जो भी महसूस कराया उसे प्यार ही मानती थी।पर जो भी उस वक़्त हालत बने उससे यही साबित हुआ की उसे अब मेरी जरूरत नहीं थी।


इन चीजों से दूर होने के लिए भगवान से यही सवाल पूछती थी की क्या सच में मैं इतनी बुरी हूँ की किसी के प्यार के लायक नहीं हूँ।

इस सोच में थी ही की अचानक फ़ोन बजा।ये कोई और नहीं शर्मा जी थे।मैंने फ़ोन उठाया


कहाँ पहुंची तुम ?


अभी तो घर थोड़ा दूर है पर 10 बजे तक पहुंच जाऊगी।(मैंने जवाब दिया)


ठीक है ध्यान से जाना और पहुंच कर मुझे बता देना और ज्यादा लेट हो तो खाना भी खा लेना और डर लगे तो मुझे फ़ोन कर लेना।


अच्छा जी इतनी चिंता।


और नहीं तो क्या अब आप हमारी हो तो आपकी चिंता नहीं करेंगे तो किसकी करेंगे।(उन्होंने प्यार दिखाते हुए कहा)


जी जरूर।


(फ़ोन नेटवर्क की वजह से कट गया लेकिन मुझे ख़ुशी हुई की यार कितने दिन हुए है और किसी को इतनी परवाह कैसे? फिर दिमाग लगाती तो सोचती बेटा वो दिल्ली का लड़का है और ये सब नार्मल है उसके लिए इतना मत सोच प्यार व्यार के चक्कर में वो नहीं पड़ सकते और ना तू दुबारा धोखा खाने की तैयारी मत कर)


रात हो गयी घर अब भी दूर था।घर से फ़ोन आने लगे कहाँ पहुंची और एक फ़ोन उनका भी था।


कहाँ पहुंच गयी ?(उन्होंने फिर उत्सुकता से पूछा )


बस थोड़ी दुरी पर हूँ पहुंचने वाली हूँ।(मैंने खुश हो कर जवाब दिया अच्छा जो लग रहा था)


ठीक है पहुंच कर एक बार कॉल कर देना ध्यान से।


ठीक है परेशान न हो आप मैं पहुंच जाऊगी थोड़ी देर में।


( और कुछ टाइम बाद मैं मेरे घर थी और पहुंच कर मैंने उन्हें बताया की मैं पहुंच गयी हूँ और ये सुन के उन्होंने बस ये कहा ठीक है)


मैंने सोचा था शायद मुझसे बात करनी होगी पर उन्हें तो ये जानना था की में अच्छे से पहुंच तो गयी ना मन ही मन में बहुत खुश थी।


होली हो या दीपावली का त्यौहार मुझे बस दूर से आनंद लेना अच्छा लगता है तो अपने परिवार के साथ अच्छा वक़्त बिता कर में जयपुर वापस आ गयी रात के सफर के कारण में बहुत थकी हुई थी तो आज ऑफिस की से छुट्टी ले ली थी।और आज मेरे खास किसी बहुत खास इंसान जो की मेरी जिंदगी में बहुत अहम् हिस्सा रखते है उनका जन्मदिन था पर वो मेरे साथ नहीं थे तो मैंने सोचा में उनका जन्मदिन तो जरूर मनाऊंगी।


नहा धो कर में मार्किट चली गयी मेरे बर्थडे बॉय के लिए मिठाई और केक लाने।सामान लेकर जब वापस आयी तो दीदी शर्मा जी के बड़े भैया जो उनके बचपन से साथ थे उनसे मिलने जा रहे थे और कहा थोड़ी देर में आ जाऊगी।


मुझे भूख लग रही थी तो मैंने सोचा खाना बना लू में खाना बना के हटी तो शर्मा जी का फ़ोन आया।


कहाँ है?


(उन्होंने फ़ोन उठाने पर हेलो से पहले ये बोला जबकि मैंने बताया भी नहीं था की में आ गयी हूँ क्योकि इस लगाव की तरफ में बढ़ी तो कल को फिर मेरा भरोसा टूटेगा और में दुखी होऊ इससे अच्छा में अभी ही इन सब से दूर रहूं लेकिन झूठ नहीं बोलती इसलिए अब भी नहीं बोल पाई )

आप कहाँ हो?(मैंने पूछा)

शर्मा जी :- मैं तो घर हूँ सोचा तू आ गयी होगी तो पूछ रहा हूँ।


मैं :-" हाँ मैं आज सुबह ही आई हूँ।(मैंने सोचा घर है तो मेरे लिए तो आने से रहे)"


शर्मा जी :-" अच्छा मतलब तू आ गयी चल तो फिर 20 मिनट में तेरे रूम के बाहर मिल"।


मैं :- "हैं अभी (उनके ये बोलते ही मैं तो एकदम से धक्क से रह गयी) "


मतलब आप यही हों।


शर्मा जी :-" हाँ अब जल्दी बाहर मिल"।


मैं :- "यार खाना खा रही हूँ खाना खा के फिर मिलते है मतलब 20 मिनट बाद"।


शर्मा जी :"-ठीक है"।

(इतने में दी आ गए मैंने उन्हें बताया की उनका फ़ोन आया था तो वो मिलने आ रहे है)


दीदी:- हाँ पता है मुझे उसका कॉल आया था मेरे पास जब में मन्नू के पास बैठी थी (मन्नू शर्मा जी के बड़े भैया) और उसने कहा की तेरे नंबर दे तो मन्नू ने मुझसे पूछा की ये क्या चल रहा है ? तो मैंने बता दिया जो भी चल रहा है।


मैं :-" मैं बुरी तरह से डर गयी और सहम के बैठ गयी"।


दीदी :-" डरने की जरूरत नहीं है जा मिल उससे और उसे कुछ मत बताना जो भी अभी बात हुई लेकिन तू ध्यान रखना की जो भी हो हद में हो अब उसके बड़े भाई को सब पता है तो ध्यान रखना"।


(मैं बस चुप चाप दी को सुन रही थी और मन में सोच रही थी की यहां तो कोई रिश्ता बना भी नहीं है और अभी से ये सब मन में ये था कही मेरी वजह से दी और उन दोनों भाइयो के बीच कोई परेशानी ना बन जाऊ वो बाहर थे तो अभी मेरा जाना जरूर था।)

मैं बाहर निकली और वो बाहर बाइक पर बैठे मेरा इंतजार कर रहे थे और उन्हें देख के फिर से में खुश हो गयी और सब भूल गयी ना जाने किस रौशनी के साथ जन्मा है ये इंसान की इसकी परछाई भी किसी भी बुरे माहौल को अच्छा बना दे अजीब सी चमक एक अलग सा आकर्षण जो मुझे आज तक एक इंसान को छोड़ के किसी में भी ना दिखाई दिया।

हम लोग पास के गार्डन में चले गए और घास में बैठ गए एक दूसरे के सामने।वो अपने कॉलेज के किस्से सुनाने लगे की हमने कितनी मस्ती की है और जो भी चीजे उन्होंने अब तक दिल्ली में की वो सुनाये जा रहे थे और कितने घंटे निकल गए लेकिन बातों का सिलसिला चल रहा था।ये पहली बार था जब हम दोनों पहली बार अकेले में मिले थे।बातें बताते बताते उन्होंने अचानक मेरे गाल पर एक किस किया और मैं सोचती उससे पहले ये सब हो गया।


मैंने उनकी तरफ देखा और कहा ये क्या था ?

शर्मा जी :"-कुछ नहीं दिल ने कहा तो बस कर दिया में दिल की सुनता हूँ कल पर कुछ नहीं छोड़ता ना मलाल रखता हूँ मन में"।


(मैं शर्म से लाल हो गयी थी और कहने को कुछ भी नहीं था न ही दिमाग कुछ सोच पा रहा था पर मन बहुत खुश था)


उसके बाद हम खाने के लिए एक कैफ़े में चले गए और खाना मंगवाया।

मैं:- "शर्मा जी कुछ बोलना चाहती हूँ बोलू" ?


शर्मा जी :-" हाँ क्या हुआ बोल ना"।


मैं :-" मान लो कल को बड़े भईया को पता लग जाये हमारे बारे में तो "?


शर्मा जी :-" हाँ तो कोई बात नहीं"।


मैं :- "आप समझ नहीं रहे वो मेरे बारे में सब जानते है तो उनके दिमाग में ये नहीं आएगा वो लड़की जो कल तक किसी और के साथ थी आज मेरे ही भाई के साथ।(में कहते कहते रुक गयी)"


शर्मा जी :-" तू इतना क्यों सोच रही है तुझे पता भी है मेरा भाई मेरा हीरो है मैं जब किसी की नहीं सुनता तब मेरा भाई वो इंसान है जिसकी में सुनता हूँ मैं सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ तो अपने भाई से और जब मैं इतना प्यार करता हूँ तो सोच मेरा भाई मुझसे कितना प्यार करता होगा तो पागल वो तो मेरी ख़ुशी में खुश होगा ना"।


ये सब सुन के मेरे मन को शांति मिली क्योकि मुझे गवारा नहीं था की एक किसी भी लड़की की वजह से दो भाई का रिश्ता बिगड़े।

शर्मा जी :- "क्या हुआ??अरे! पागल तू परेशान मत हो मुझ पर छोड़ दे और सोचना बंद कर बस खुश रह"।


मैं उन्हें देख के मुस्कुरा रही थी और भगवान को बार बार धन्यवाद बोल रही थी की ऐसा इंसान मेरी जिंदगी में आया।


हमने खाना शुरू किया इतने में दीदी का फ़ोन आया।


दीदी :-" कहाँ हों तुम दोनों ??सुबह से शाम होने को आई तुम दोनों का कोई पता नहीं"।


मैं :- "हाँ दीदी बस निकल रहे है"।

खाना खा के हम लोग वहां से निकले।और पहुंच गए मेरे रूम के बाहर और दी का वेट करने लगे।शर्मा जी आज रात को ही दिल्ली जा रहे थे और पता नहीं अब कभी मुझसे मिलने आएंगे भी के नहीं मैं इन आँखों को देख पाउगी भी की नहीं।


वो बोले देख मैं मस्त रहता हूँ ना।


मैंने जवाब में कहा की जो इंसान ज्यादा हँसता और ज्यादा बोलता है वो उतना ही अंदर से अकेला होता है मैं कुछ नहीं बस इस हंसी के पीछे छुपे इंसान को जानना है बस।


कुछ पल को सब रुक गया और हमारी आँखे एक दूसरे की आँखों में और वक़्त से यही मांग रही थी की यही रुक जाये।

कुछ देर बाद दी आये और हमारी नजरे हटी।दी से मिलकर उन्होंने हम दोनों को अलविदा कहा और बस वो चले गए।

मैं और दी रूम पर आ गये।


इस एक और मुलाकात के बाद उस इंसान को और करीब से जानने का मन हुआ और लगा की शायद ये वही है।


to be continued..........




















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